---विज्ञापन---

Religion

बांके बिहारी मंदिर में इत्र सेवा क्यों की जाती है? जानिए कारण

वृंदावन के बांके बिहारी मंदिर एक ऐसा अद्भुत स्थान है, जहां एक ही मूर्ति में साक्षात श्रीकृष्ण और राधारानी का समाहित हैं। बांके बिहारी मंदिर में प्रभु के बाल स्वरूप की पूजा की जाती है। इसके साथ ही यहां पर कई परंपराओं और मान्यताओं का पालन किया जाता है। इन्हीं में से एक इत्र सेवा है। बांके बिहारी मंदिर में ठाकुर जी को इत्र अर्पित किया जाता है। इसके पीछे काफी खास कारण छिपा हुआ है।

Author Written By: News24 हिंदी Author Published By : Mohit Tiwari Updated: Aug 15, 2025 22:44
banke bihari temple

वृंदावन का बांके बिहारी मंदिर भगवान श्रीकृष्ण के भक्तों के लिए एक पवित्र और आध्यात्मिक स्थल है। इस मंदिर में भगवान बांके बिहारी के बाल स्वरूप की पूजा-अर्चना की जाती है और यहां की परंपराएं और सेवाएं इसे अनूठा बनाती हैं। इनमें से एक विशेष परंपरा इत्र सेवा है, जिसमें ठाकुर जी को सुगंधित इत्र अर्पित किया जाता है। माना जाता है कि बांके बिहारी की मूर्ति में भगवान श्रीकृष्ण और राधारानी दोनों के भाव समाहित हैं।

बांके बिहारी मंदिर में इत्र सेवा भगवान श्रीकृष्ण के प्रति भक्ति और प्रेम का प्रतीक है। श्रीकृष्ण को रसमय और मनमोहक स्वरूप का प्रतीक माना जाता है, जो सौंदर्य, प्रेम, और आनंद से परिपूर्ण हैं। इत्र अपनी सुगंध से मन को मोह लेता है और ठाकुर जी के उस रसमय स्वरूप को और अधिक निखारता है। यह सेवा भगवान को प्रसन्न करने और उनके प्रति अपनी श्रद्धा व्यक्त करने का एक तरीका है।

---विज्ञापन---

मंदिर में इत्र सेवा का आयोजन विशेष रूप से भक्तों द्वारा किया जाता है, जिसमें सुगंधित इत्र को ठाकुर जी के चरणों में अर्पित किया जाता है या उनके विग्रह पर छिड़का जाता है।

क्यों की जाती है इत्र सेवा?

इत्र सेवा के पीछे का कारण बांके बिहारी जी के बाल स्वरूप और उनकी लीलाओं से जुड़ा है। श्रीकृष्ण को वृंदावन में गोपियों के साथ रासलीला करने वाले, फूलों और सुगंध से प्रेम करने वाले स्वरूप के रूप में जाना जाता है। पुष्प और उनकी सुगंध उनके प्रिय हैं। इस कारण भक्त इत्र के माध्यम से प्रभु को सुगंध अर्पित करने का भाव रखते हैं।

---विज्ञापन---

मंदिर की मान्यता के अनुसार, बांके बिहारी जी का स्वरूप इतना मनमोहक है कि उनकी एक झलक भक्तों को मंत्रमुग्ध कर देती है। इत्र की सुगंध उनके इस आकर्षण को और बढ़ाती है, जिससे भक्तों का मन और अधिक भक्ति में लीन हो जाता है। यह सेवा स्वामी हरिदास जी की परंपरा से भी जुड़ी है, जिन्होंने बांके बिहारी जी को अपनी साधना से प्रकट किया था। स्वामी हरिदास जी भक्ति संगीत और रागों के माध्यम से ठाकुर जी की सेवा करते थे और इत्र सेवा उनकी भक्ति की रसमयी परंपरा का हिस्सा मानी जाती है।

क्या कहते हैं शास्त्र?

हिंदू धर्म के ग्रंथों में सुगंध और इत्र का उपयोग भगवान की पूजा में विशेष महत्व रखता है। श्रीमद्भागवत पुराण में श्रीकृष्ण की लीलाओं का वर्णन करते हुए यह बताया गया है कि वे सुगंधित पुष्पों, चंदन, और अन्य सुगंधित पदार्थों से प्रसन्न होते हैं। भागवत पुराण में गोपियों द्वारा श्रीकृष्ण की सुंदरता और उनके प्रति प्रेम का वर्णन करते हुए सुगंधित वस्तुओं का उल्लेख किया गया है, जो उनकी भक्ति को और गहरा करता है।

इसके अलावा, विष्णु पुराण और पद्म पुराण में भी भगवान विष्णु और उनके अवतारों की पूजा में सुगंधित द्रव्यों के उपयोग का उल्लेख है। विशेष रूप से, पद्म पुराण में यह कहा गया है कि भगवान को अर्पित की जाने वाली सुगंधित वस्तुएं, जैसे चंदन और इत्र, उनकी कृपा प्राप्त करने का एक शक्तिशाली माध्यम हैं।

किस समय की जाती है इत्र सेवा?

बांके बिहारी मंदिर में इत्र सेवा का आयोजन विशेष अवसरों पर और भक्तों की इच्छा के अनुसार किया जाता है। यह सेवा आमतौर पर शृंगार आरती या राजभोग आरती के समय की जाती है, जब ठाकुर जी को सुंदर वस्त्र, आभूषण और सुगंधित पदार्थ अर्पित किए जाते हैं। मंदिर के सेवायत भक्तों द्वारा लाए गए इत्र को ठाकुर जी के चरणों में अर्पित करते हैं, और इसकी सुगंध पूरे मंदिर में फैल जाती है।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

ये भी पढ़ें- जन्माष्टमी पर कान्हा को अर्पित करें ये भोग, प्रसन्न हो जाएंगे भगवान श्रीकृष्ण

First published on: Aug 15, 2025 10:44 PM

संबंधित खबरें