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Religion

ब्रह्मा, विष्णु और महेश, इन त्रिदेव में महान कौन हैं? महर्षि भृगु ने ऐसे की पहचान, जानें पूरी कथा!

ब्रह्मा, विष्णु और महेश, इन त्रिदेवों में महान कौन हैं? इस महाप्रश्न का उत्तर किसी देवता या ऋषि-मुनि के पास नहीं था और न ही किसी एक को लेकर सहमति थी। फिर इसकी जांच और परीक्षा के लिए महर्षि भृगु को दायित्व दिया गया। महर्षि भृगु ने अपने तरीके से जान लिया कि इन तीनों देवों में सबसे महान कौन हैं और क्यों हैं?

Author Edited By : Shyam Nandan Updated: Mar 12, 2025 14:21
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एक बार सरस्वती नदी के तट पर ऋषि-मुनि एकत्र हुए। वे चर्चा कर रहे थे कि त्रिदेव यानी ब्रह्मा, विष्णु और महेश में सबसे श्रेष्ठ कौन हैं? इस पर सहमति नहीं बन सकी, इसलिए उन्होंने परीक्षा लेने का निश्चय किया। यह कार्य महर्षि भृगु को सौंपा गया, जो ब्रह्माजी के मानस पुत्र थे।

ब्रह्माजी की परीक्षा

महर्षि भृगु सबसे पहले ब्रह्मलोक पहुंचे। वहां उन्होंने न तो प्रणाम किया, न स्तुति की। यह देख ब्रह्माजी को क्रोध आ गया। उनका मुख लाल हो गया, आंखों में गुस्से की ज्वाला भड़क उठी। लेकिन वे यह सोचकर शांत हो गए कि भृगु उनके ही पुत्र हैं। वे अपने क्रोध को नियंत्रित कर गए। इस घटना से महर्षि भृगु को उनका उत्तर मिल चुका था।

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भगवान शिव की परीक्षा

इसके बाद भृगु जी कैलाश पहुंचे। भगवान शिव उन्हें देखकर प्रसन्न हुए और आलिंगन करने आगे बढ़े। लेकिन भृगु ने उनका आलिंगन अस्वीकार कर दिया और बोले, ‘महादेव! आप धर्म की मर्यादा का उल्लंघन करते हैं और दुष्टों को वरदान देकर संसार को संकट में डालते हैं। इसलिए मैं आपका आलिंगन नहीं कर सकता।’ यह सुनकर भगवान शिव क्रोधित हो उठे। उन्होंने त्रिशूल उठाया और भृगु को मारने ही वाले थे कि माता सती ने किसी तरह उनका क्रोध शांत किया।

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भगवान विष्णु की परीक्षा

इसके बाद महर्षि भृगु वैकुण्ठ पहुंचे। वहां भगवान विष्णु माता लक्ष्मी की गोद में विश्राम कर रहे थे। भृगु जी ने सीधे उनके वक्ष पर पैर से प्रहार किया। भगवान विष्णु तुरंत उठकर खड़े हो गए। वे न क्रोधित हुए, न ही कोई शिकायत की।

बल्कि, वे हाथ जोड़कर बोले, ‘महर्षि! आपके चरणों पर चोट तो नहीं लगी? क्षमा करें, मैं आपको आते हुए देख नहीं पाया, इसलिए स्वागत नहीं कर सका। आपके चरणों का स्पर्श पवित्र करने वाला है।’ इतना कहकर वे उनके पैर दबाने लगे।

भगवान विष्णु के इस विनम्र और प्रेमपूर्ण व्यवहार से भृगु मुनि की आंखों से आंसू बहने लगे। वे ऋषियों के पास लौटे और अपनी परीक्षा का पूरा वर्णन किया। सभी ऋषि-मुनि समझ गए कि भगवान विष्णु ही सबसे श्रेष्ठ हैं क्योंकि उनमें सबसे अधिक क्षमा, धैर्य और करुणा है। तभी से वे भगवान विष्णु की पूजा-अर्चना करने लगे। वास्तव में, ऋषियों ने यह परीक्षा मनुष्यों के संदेह दूर करने के लिए ही की थी, ताकि वे सही मार्ग को पहचान सकें।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक शास्त्र की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Edited By

Shyam Nandan

First published on: Mar 12, 2025 02:17 PM

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