Ganesh Visarjan 2025: बीते 27 अगस्त को गणेश चतुर्थी का पर्व मनाया गया था। इसके बाद से करीब 10 दिनों तक यह पर्व मनाया जाता है। हालांकि कुछ लोग डेढ़ दिन, तीन दिन, पांच दिन, सात दिन या दसवें दिन तक गणपति प्रतिमा घर पर रखते हैं। इसके बाद वे धूमधाम से प्रतिमा विसर्जित करते हैं। दरअसल यह उत्सव भक्तों के लिए आध्यात्मिक और भावनात्मक रूप से गहरा अर्थ रखता है। गणेश चतुर्थी के दौरान, भक्त अपने घरों और सार्वजनिक पंडालों में भगवान गणेश की मूर्तियों की स्थापना करते हैं और उनकी पूजा-अर्चना करते हैं। विसर्जन के दिन, भक्त मूर्ति को जलाशयों, जैसे नदियों, तालाबों, या समुद्र में विसर्जित करते हैं, यह विश्वास रखते हुए कि गणपति उनकी प्रार्थनाओं को स्वीकार कर अपने लोक में लौट रहे हैं।
कब है गणेश प्रतिमा विसर्जन 2025?
भक्त अनंत चतुर्दशी के दिन, जो 2025 में 6 सितंबर को होगी, मूर्ति विसर्जन करते हैं। इस दिन गणपति प्रतिमा विसर्जन का शुभ समय सुबह 7 बजकर 36 मिनट से 9 बजकर 10 मिनट तक रहेगा। इसके बाद दोपहर 12 बजकर 17 बजे से शाम 04 बजकर 59 बजे तक भी मुहूर्ति है। शाम को 6 बजकर 37 मिनट से रात 8 बजकर 2 मिनट तक मूर्ति विसर्जन का मुहूर्त है।
इन सामग्रियों की कर लें व्यवस्था
इस दिन सबसे पहले, पूजा के लिए एक स्वच्छ स्थान का चयन करें और पूजा सामग्री जैसे फूल, दूर्वा, मोदक, अगरबत्ती, कपूर, दीपक, चंदन, कुमकुम, हल्दी, अक्षत (चावल), पंचामृत (दूध, दही, घी, शहद, और शक्कर का मिश्रण), और गंगाजल तैयार रखें। इसके बाद, गणपति प्रतिमा को साफ करें। एक साफ कपड़े से प्रतिमा को धीरे से पोंछकर आसपास के पूजा स्थल को स्वच्छ बनाएं। विसर्जन के लिए उपयुक्त स्थान, जैसे नदी, तालाब, समुद्र, या कृत्रिम विसर्जन कुंड, पहले से चुन लें
पूजा स्थल की तैयारी
विसर्जन से पहले गणपति की पूजा के लिए पूजा स्थल को विशेष रूप से तैयार करना आवश्यक है। एक चौकी पर लाल या पीला कपड़ा बिछाएं और उस पर गणपति प्रतिमा को सम्मानपूर्वक स्थापित करें। प्रतिमा के सामने एक दीपक जलाएं और अगरबत्ती प्रज्वलित करें ताकि पूजा स्थल में पवित्रता और सकारात्मक ऊर्जा का संचार हो। एक थाली में पूजा सामग्री जैसे कुमकुम, हल्दी, चंदन, फूल, और मोदक व्यवस्थित रूप से रखें। यह सुनिश्चित करें कि पूजा स्थल शांत और स्वच्छ हो, ताकि आप पूर्ण भक्ति के साथ गणपति की पूजा कर सकें।
पूजा शुरू करने से पहले संकल्प लें। इसके लिए अपने हाथों में जल, अक्षत, और फूल लेकर गणपति से प्रार्थना करें कि आप उनकी पूजा और मूर्ति विसर्जन विधिपूर्वक करेंगे। संकल्प के दौरान आप यह मंत्र पढ़ सकते हैं। ‘ॐ विष्णुर्विष्णुर्विष्णु: श्रीमद्भगवतो महापुरुषस्य विष्णोराज्ञया प्रवर्तमानस्य अद्य श्री गणेश विसर्जनं करिष्ये।’ इस मंत्र का अर्थ है कि आप भगवान विष्णु की आज्ञा से गणेश प्रतिमा विसर्जन करेंगे। संकल्प लेते समय मन में यह भाव रखें कि आप गणपति को श्रद्धापूर्वक विदाई दे रहे हैं और उनकी कृपा से सभी कार्य निर्विघ्न पूर्ण होंगे।
गणपति करें आह्वान
पूजा के अगले चरण में गणपति का आवाहन और ध्यान करना होता है। मन में गणपति का ध्यान करें और उनके आवाहन के लिए मंत्र पढ़ें: ॐ गं गणपतये नमः। इस मंत्र के साथ गणपति को अपने हृदय में स्थापित करने का भाव रखें और उनकी कृपा के लिए प्रार्थना करें। प्रतिमा पर गंगाजल का छिड़काव करें और उन्हें अपने सामने उपस्थित मानकर पूजा शुरू करें। यह प्रक्रिया गणपति के प्रति आपकी भक्ति को और गहरा करती है और पूजा को एक आध्यात्मिक अनुभव बनाती है। इस दौरान मन को शांत रखें और गणपति के विघ्नहर्ता स्वरूप का स्मरण करें, जो सभी बाधाओं को दूर करते हैं।
ऐसे करें पूजा
सबसे पहले, प्रतिमा पर पंचामृत, दूध, और गंगाजल से अभिषेक करें, फिर शुद्ध जल से स्नान कराएं। इसके बाद, प्रतिमा को लाल या पीले रंग का नया वस्त्र अर्पित करें और फूलों का हार चढ़ाएं। गणपति के मस्तक पर चंदन, कुमकुम, और हल्दी का तिलक लगाएं, जो उनकी पवित्रता और शुभता का प्रतीक है। गणपति को 21 दूर्वा (दूब घास) और ताजे फूल अर्पित करें, क्योंकि दूर्वा उन्हें विशेष रूप से प्रिय है। इसके बाद, मोदक, लड्डू, या अन्य मिठाई का भोग लगाएं। आप फल, नारियल, और पान-सुपारी भी चढ़ा सकते हैं। अंत में, अगरबत्ती और दीपक जलाकर गणपति को अर्पित करें और कपूर से आरती करें।
मंत्र जाप और स्तुति
पूजा के अंतिम चरण में गणपति के मंत्रों का जाप और स्तुति करना महत्वपूर्ण है। गणपति के मंत्र जैसे ॐ गं गणपतये नमः का 108 बार या यथासंभव जाप करें। इसके अलावा, इस मंत्र (वक्रतुण्ड महाकाय सूर्यकोटि समप्रभ। निर्विघ्नं कुरु मे देव सर्वकार्येषु सर्वदा।।) का भी पाठ करें। यह मंत्र गणपति से सभी कार्यों में निर्विघ्नता प्रदान करने की प्रार्थना करता है। मंत्र जाप के दौरान मन को एकाग्र रखें और गणपति के विघ्नहर्ता और सिद्धिदाता स्वरूप का स्मरण करें। इसके बाद, गणपति की स्तुति करें।
ढोल-नंगाड़ों के साथ होता है प्रतिमा विसर्जन
गणपति मूर्ति विसर्जन की प्रक्रिया भक्तों के बीच एक विशेष उत्साह और भक्ति का माहौल पैदा करती है। विसर्जन से पहले, भक्त मूर्ति की अंतिम आरती करते हैं और भगवान गणेश से अगले वर्ष फिर से आने की प्रार्थना करते हैं। इसके बाद, मूर्ति को एक भव्य जुलूस के साथ जलाशय तक ले जाया जाता है। इस जुलूस में ढोल-नगाड़ों, भक्ति भजनों और नृत्य का समावेश होता है, जो उत्सव को और भी जीवंत बनाता है। भक्त ‘गणपति बप्पा मोरया, मंगल मूर्ति मोरया’ जैसे नारे लगाते हैं, जो उनके उत्साह और श्रद्धा को व्यक्त करते हैं। जलाशय में मूर्ति को सावधानीपूर्वक विसर्जित किया जाता है और भक्त इस समय बप्पा को भावनात्मक विदाई देते हैं।
महाराष्ट्र में होता है भव्य आयोजन
गणपति विसर्जन का उत्सव भारत के विभिन्न हिस्सों में अलग-अलग रीति-रिवाजों के साथ मनाया जाता है। महाराष्ट्र में, विशेष रूप से मुंबई और पुणे में, यह उत्सव भव्य जुलूसों और सामुदायिक भागीदारी के लिए प्रसिद्ध है। गिरगांव चौपाटी और जुहू बीच जैसे स्थान हजारों भक्तों को आकर्षित करते हैं। कर्नाटक, आंध्र प्रदेश, और तमिलनाडु में भी विसर्जन की परंपराएं उत्साह के साथ मनाई जाती हैं।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।
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