Ganesh Chaturthi 2024: इस साल गणेश चतुर्थी उत्सव की शुरुआत 7 सितंबर को हुई थी। इस दस दिवसीय गणपति उत्सव का समापन अनंत चतुर्दशी व्रत के दिन 17 सितंबर को हो जाएगा। आइए इस शुभ उत्सव के मौके पर जानते हैं कि देश में कहां पर भगवान गणेश की पूजा मानव रूप में होती है? जी हां, सही पढ़ा आपने, अपने देश में एक ऐसा भी मंदिर है, जहां बिना सूंड वाले गणपति स्थापित हैं यानी यहां विघ्नहर्ता श्री गणेश की पूजा मानव रूप में होती है।
कहां है यह मंदिर?
भगवान गणेश का नाम लेते ही उनकी लंबी सूंड और बड़े-बड़े कान वाला दिव्य चेहरा नजरों के सामने आ जाता है। ऐसे में कोई उनकी बिना सूंड वाली प्रतिमा या विग्रह की बात करेंगे तो आश्चर्य होना स्वाभाविक है। बिना सूंड वाली प्रतिमा वाला देश का इकलौता मंदिर गुलाबी नगरी जयपुर में है। कहते हैं, यहां यह मंदिर इस शहर की स्थापना से पहले से है। इस मंदिर को गढ़ गणेश मंदिर के नाम से जाना जाता है, जो जयपुर शहर की उत्तरी दिशा में अरावली पर्वत पर स्थित है।
365 सीढ़ियां करती हैं साल प्रतिनिधित्व
अरावली पर्वत पर स्थित यह मंदिर दूर से देखने पर जयपुर के मुकुट की तरह दिखाई देता है। कहा जाता है कि गढ़ गणेश का मंदिर राजस्थान के सबसे प्राचीन मंदिरों में से एक है। इस मंदिर तक पहुंचने के लिए लगभग 500 मीटर की चढ़ाई करनी पड़ती है, जिसके लिए सीढ़ियों की संख्या 365 है। मान्यता है ये सीढ़ियां साल के 365 दिनों का प्रतिनिधित्व करने के लिए बनाई गई हैं।
किसने की थी स्थापना?
अरावली पर्वत पर गढ़ गणेश की स्थापना महाराजा सवाई जयसिंह द्वितीय ने की थी, जो जयपुर के संस्थापक भी थे। मंदिर की स्थापना जयपुर शहर की नींव रखने से पहले की गई थी। कहते हैं कि इस मंदिर की स्थापना तांत्रिक विधि से की गयी थी। इससे जुड़ी एक महत्वपूर्ण बात यह भी है कि इस मंदिर में भगवान गणेश का मुंह जयपुर शहर की ओर किया हुआ है। ऐसा इसलिए किया गया है ताकि प्रथम पूज्य गणपति की नजर पूरे शहर पर बनी रहे।
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सवाई जयसिंह द्वितीय ने किया था अश्वमेध यज्ञ
इतिहास के अनुसार, यह मंदिर जिस पहाड़ी पर स्थित है, उसकी तलहटी में ही सवाई जयसिंह द्वितीय ने अश्वमेध यज्ञ का आयोजन किया था, जिसके बाद इस मंदिर की स्थापना हुई और उसके बाद ही जयपुर शहर की नींव पड़ी।
क्यों स्थापित है यहां बिना सूंड वाले गणेश की मूर्ति?
यह सवाल आपके मन में उठ रहा होगा कि यहां बिना सूंड वाले गणेश की मूर्ति क्यों स्थापित है? दरअसल, यहां ऐसा इसलिए है क्योंकि यहां भगवान गणेश की जो मूर्ति है, वह उनके उस बाल स्वरूप है, जिनका युद्ध अभी भगवान शिव से नहीं हुआ था। भगवान गणेश का शिवजी युद्ध होने से पहले का रूप मानव स्वरूप था।
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