Buddha Purnima 2025: बुद्ध पूर्णिमा का व्रत धार्मिक और आध्यात्मिक दृष्टि से बहुत खास माना जाता है है। इस व्रत को करने अथवा इस दिन की कथा को पढ़ने या सुनने से व्यक्ति के जीवन में सुख, समृद्धि, और शांति आती है। मान्यता है कि इस दिन किया गया दान कई जन्मों के पापों को नष्ट करता है। खासकर स्त्रियों के लिए यह व्रत सौभाग्य, संतान सुख, और पति की लंबी उम्र का वरदान देता है।
पुराणों के अनुसार, भगवान कृष्ण ने माता यशोदा को बताया कि 32 पूर्णिमा व्रत करने से भगवान शिव और देवी चंडी की कृपा प्राप्त होती है, जो जीवन के सभी कष्टों को दूर करती है। यह व्रत मनोकामनाएं पूरी करने और अचल सौभाग्य देने वाला माना जाता है। बुद्ध पूर्णिमा 2025 में जो 12 मई को मनाई जा रही है। इस दिन व्रत कर सकते हैं और अगर व्रत नहीं भी कर रहे हैं तो कथा को जरूर पढ़ें या सुनें।
बुद्ध पूर्णिमा व्रत की कथा
द्वापर युग में एक दिन माता यशोदा ने भगवान श्रीकृष्ण से प्रार्थना की कि वे उन्हें ऐसा व्रत बताएं, जो स्त्रियों को मृत्युलोक में विधवा होने के डर से बचाए और उनकी सभी मनोकामनाएं पूरी करे। भगवान श्रीकृष्ण ने मुस्कुराते हुए कहा कि वैशाख पूर्णिमा का व्रत, जिसे बुद्ध पूर्णिमा व्रत भी कहते हैं, ऐसा ही शक्तिशाली है। उन्होंने बताया कि अगर कोई स्त्री या पुरुष 32 पूर्णिमाओं तक विधिपूर्वक यह व्रत करता है, तो उसे भगवान शिव की कृपा से सौभाग्य, संतान सुख और जीवन के सभी कष्टों से मुक्ति मिलती है। यशोदा ने उत्सुकता से पूछा कि इस व्रत को सबसे पहले किसने किया था तब भगवान श्रीकृष्ण ने एक प्राचीन कथा सुनाई।
प्राचीन काल में कातिका नाम की एक समृद्ध नगरी थी, जहां चंद्रहास नाम का राजा राज करता था। उसी नगरी में धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण अपनी सुंदर और गुणवान पत्नी रूपवती के साथ रहता था। उनके पास धन-धान्य की कोई कमी नहीं थी, लेकिन संतान न होने के कारण वे बहुत दुखी थे। एक दिन कातिका में एक महान योगी आएं, जो सभी घरों से भिक्षा लेते थे, लेकिन धनेश्वर के घर से कभी नहीं आए। धनेश्वर ने इसका कारण पूछा, तो योगी ने कहा कि वे संतानहीन के घर का अन्न नहीं लेते हैं, क्योंकि उसे पतित माना जाता है। यह सुनकर धनेश्वर को काफी ठेस लगी और उन्होंने योगी से संतान प्राप्ति का उपाय पूछा।
केवल 16 वर्ष तक ही जीवित रहेगी संतान
इस पर योगी ने धनेश्वर को देवी चंडी की उपासना करने की सलाह दी। उन्होंने कहा कि अगर वह जंगल में जाकर सच्चे मन से व्रत और साधना करेंगे, तो उनकी मनोकामना जरूर पूरी होगी। धनेश्वर ने यह बात अपनी पत्नी रूपवती को बताई और जंगल में तप करने चले गए। सोलह दिन की कठिन साधना के बाद देवी चंडी उनके स्वप्न में प्रकट हुईं और वरदान दिया कि उन्हें जल्द ही संतान प्राप्ति होगी, लेकिन उसकी आयु सिर्फ 16 साल होगी। जब उन्होंने संतान की दीर्घायु का उपाय जानना चाहा तो उन्हें पता चला कि अगर वे अपनी पत्नी के साथ 32 पूर्णिमाओं का व्रत और आटे के दीपक बनाकर भगवान शिव की पूजा करेंगे तो संतान दीर्घायु हो सकती है।
इसके बाद सुबह धनेश्वर ने जंगल में एक आम के पेड़ पर सुंदर फल देखा, लेकिन वह उसे तोड़ न सके। इस पर उन्होंने भगवान गणेश का स्मरण किया। भगवान गणेश जी की कृपा से उन्हों वो फल मिला और वे उसे लेकर घर लौट आए। उन्होंने रूपवती को स्नान और शुद्ध होने के बाद वह फल खाने को दिया। फल खाने से रूपवती गर्भवती हो गईं और समय आने पर उन्हें एक सुंदर पुत्र की प्राप्ति हुई। उन्होंने उसका नाम देवीदास रखा। वह बालक चांद की तरह सुंदर, बुद्धिमान, और सुशील था। रूपवती ने देवी चंडी के आदेशानुसार 32 पूर्णिमा व्रत शुरू कर दिए।
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देवीदास का हुआ विवाह
जब देवीदास 16 साल का होने वाला था तो उसके माता-पिता को उसकी आयु की चिंता सताने लगी। उन्होंने फैसला किया कि उसे काशी पढ़ने भेजा जाए। रूपवती ने अपने भाई यानी देवीदास के मामा के साथ उसे काशी पढ़ने के लिए भेजा। उन्होंने उसके मामा को नहीं बताया कि वो अल्पायु है। रास्ते में एक गांव में रुकते समय एक ब्राह्मण की बेटी का विवाह होने वाला था। उस कन्या ने देवीदास को देखकर उससे शादी की इच्छा जताई। देवीदास ने अपनी कम आयु की बात बताई, लेकिन कन्या ने कहा कि उसका भाग्य उसी के साथ है। इस कारण देवीदास की की शादी उस कन्या से हो गई। शादी के बाद देवीदास ने अपनी पत्नी को एक अंगूठी और रुमाल देकर एक फूलों की वाटिका बनाने को कहा। उसने बताया कि अगर वह मरेगा, तो वाटिका के फूल मुरझा जाएंगे, और अगर जीवित रहेगा, तो फूल फिर से हरे हो जाएंगे।
सामने आया काल
काशी में पढ़ाई के दौरान एक रात सर्प ने देवीदास को डसने की कोशिश की, लेकिन 32 पूर्णिमा व्रत के प्रभाव से वह असफल रहा। इसके बाद स्वयं काल आया और उसके प्राण लेने की कोशिश की, जिससे देवीदास बेहोश होकर गिर पड़ा। उसी समय भगवान शिव और माता पार्वती वहां प्रकट हुए। माता पार्वती ने शिवजी से प्रार्थना की कि रूपवती के व्रत और पुण्य के प्रभाव से देवीदास को जीवनदान दिया जाए। शिवजी ने उनकी बात मानकर देवीदास को फिर से जीवित कर दिया। उधर, उसकी पत्नी वाटिका देख रही थी। जब फूल मुरझाए तो उसे आश्चर्य हुआ था, लेकिन बाद में जब वाटिका फिर से हरी-भरी हो गई, तो वह समझ गई कि उसका पति जीवित है।
वापस घर लौटा देवीदास
काशी से लौटते समय देवीदास अपने मामा के साथ पत्नी को लेने अपने ससुराल पहुंचा। वहां उसके ससुर उसे खोजने की तैयारी कर रहे थे, लेकिन संयोग से देवीदास उनके सामने आ गया। सभी ने उसे पहचान लिया और खुशी से स्वागत किया। इसके बाद देवीदास अपनी पत्नी के साथ अपने माता-पिता के पास कातिका लौटा। उसके आने पर धनेश्वर और रूपवती बहुत खुश हुए और उन्होंने बड़ा उत्सव मनाया। इसके बाद देवीदास अपनी पत्नी और माता-पिता के साथ खुशी-खुशी रहने लगा।
बुद्ध पूर्णिमा व्रत की विधि
बुद्ध पूर्णिमा व्रत करने के लिए सुबह स्नान करें और साफ कपड़े पहनें। भगवान शिव, माता पार्वती, और देवी चंडी की पूजा करें। आटे के दीपक बनाकर शिवलिंग पर जल और फूल चढाएं। ‘ॐ नमः शिवाय’ और ‘ॐ चंडिकायै नमः’ मंत्र का जाप करें। सात्विक भोजन करें और जरूरतमंदों को दान दें। यह व्रत 32 पूर्णिमाओं तक करने से विशेष फल देता है।
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