This Village In Noida Never Celebrates Dussehra: सनातन धर्म के लोगों के लिए दशहरा के पर्व का खास महत्व है, जिसका उत्सव धूमधाम से देशभर में मनाया जाता है. इस दिन लोग बुराई पर अच्छाई की जीत का जश्न मनाते हैं. पौराणिक कथाओं के अनुसार, त्रेता युग में आश्विन मास में आने वाली शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को भगवान श्री राम ने रावण का वध करके माता सीता को बचाया था. इसी के बाद से इस तिथि पर दशहरा यानी विजयादशमी का पर्व मनाना शुरू हो गया. इस दिन लोग भगवान राम की पूजा करते हैं और रात में रावण का पुतला बनाकर उसे जलाते हैं. हालांकि, रावण के पुतले के साथ उसके भाई कुंभकरण और बेटे मेघनाद का पुतला भी जलाया जाता है. इस बार 2 अक्टूबर 2025, वार गुरुवार को दशहरा का पर्व मनाया जाएगा.
हालांकि, उत्तर प्रदेश में एक ऐसा गांव भी है, जहां रावण का पुतला जलाने की मनाही है क्योंकि यहां उनका जन्म हुआ था. चलिए जानते हैं इसी गांव के बारे में.
दशहरा मनाने पर मिलता है दंड
उत्तर प्रदेश के गौतमबुद्धनगर में बिसरख नामक गांव है, जिसे रावण की जन्मस्थली माना जाता है. यहां न तो दशहरा मनाया जाता है और न ही रामलीला का आयोजन किया जाता है. बिसरख गांव के लोगों का कहना है कि यदि कोई व्यक्ति यहां दशहरा मनाने की कोशिश भी करता है तो उसकी खुशियों पर ग्रहण लग जाता है. ऐसा करके वो रावण का अपमान करता है, जिसका उसे दंड भी मिलता है.
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शिवलिंग की भी की गई है स्थापना
बिसरख गांव में भगवान शिव को समर्पित एक मंदिर भी है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, रावण के पिता ऋषि विश्वश्रवा ने खुद अपने हाथों से यहां अष्टकोणीय शिवलिंग की स्थापना की थी, जिसकी पूजा रावण और उसके भाई कुबेर भी किया करते थे. साथ ही कहा तो ये भी जाता है कि रावण ने शिव जी को खुश करने के लिए इसी शिवलिंग पर अपना सिर अर्पित किया था, जिसके बाद भगवान शिव ने उन्हें 10 सिर का वरदान दिया था.
ऋषि विश्वश्रवा द्वारा स्थापित शिवलिंग के अलावा यहां पर भगवान शिव, देवी पार्वती, कार्तिकेय जी और गणेश जी की भी मूर्ति मौजूद है. इसके अलावा इस मंदिर में ऋषि विश्वश्रवा की भी मूर्ति विराजमान है, जिसकी रोजाना विधि-पूर्वक पूजा की जाती है.
बिसरख गांव के नाम का भी है खास महत्व
गांववालों का मानना है कि बिसरख गांव का नाम रावण के पिता ऋषि विश्वश्रवा के नाम से लिया गया है. ऋषि विश्वश्रवा ने लंबे समय तक यहां पर निवास किया था और देवी-देवताओं को खुश करने के लिए कठोर तपस्या की थी.
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