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Ambubachi Mela 2024: क्यों खास है असम का अम्बुबाची मेला, ब्रह्मपुत्र का पानी कैसे हो जाता है लाल, जानें कामाख्या मंदिर के रहस्य

Ambubachi Mela 2024: पूर्वोत्तर भारत के राज्य असम में स्थित कामख्या मंदिर का विश्व प्रसिद्ध अम्बुबाची मेला शुरू हो चुका है। आइए जानते हैं, तांत्रिक साधना के लिए महत्वपूर्ण अम्बुबाची मेला क्यों खास है और कामाख्या मंदिर के रहस्य क्या हैं?

Edited By : Shyam Nandan | Updated: Jun 22, 2024 12:22
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Ambubachi Mela 2024: पूर्वी भारत का सबसे बड़ा अम्बुबाची मेला आज 22 जून से असम के विश्व प्रसिद्ध कामाख्या मंदिर में शुरू हो गया है, जिसका समापन 26 जून, 2024 होगा। सदियों से तांत्रिक साधना का केंद्र कामाख्या मंदिर देश के 51 शक्तिपीठों में से एक है। आइए जानते हैं, अम्बुबाची मेला और इस मंदिर से जुड़ी वे रहस्यमय और रोचक बातें, जो किसी को भी आश्चर्यचकित कर देती हैं।

शक्ति साधना का महान केंद्र है कामाख्या मंदिर

पौराणिक कथाओं के अनुसार, जब सती दाह के बाद भगवान शिव सती के पार्थिव शरीर को लेकर विक्षिप्तावस्था में यहां-वहां भटक रहे थे, तब भगवान विष्णु ने अपने सुदर्शन चक्र से देवी सती के मृत शरीर को 108 भागों में विच्छेद कर दिया। कहते हैं, देवी सती की योनि जहां गिरी थी, उसी स्थान पर कामाख्या मंदिर बना है, जिसकी पूजा की जाती है। हजारों सालों से यह स्थान शक्ति साधना का महान केंद्र है। यहां देवी आदि शक्ति की साधना वाममार्ग की तांत्रिक विधि से की जाती है।

क्यों खास है अम्बुबाची मेला?

देवी कामाख्या के बारे में माना जाता है कि वे साल में एक बार मासिक धर्म में आती हैं यानी वे रजस्वला होती हैं। यह दिव्य घटना तब होती है जब सूर्य आर्द्रा नक्षत्र में प्रवेश करते हैं और इसके साथ ही देवी कामाख्या 3 दिनों तक मासिक धर्म में आ जाती हैं। इस मौके पर यहां अम्बुबाची मेला लगता है। बता दें, ‘अम्बु’ कर अर्थ होता है जल यानी पानी और ‘बाची’ का अर्थ है जल मुक्त होने की प्रक्रिया। अम्बुबाची मेला को स्त्री शक्ति का प्रतीक माना जाता है। कहते हैं, जब देवी कामाख्या रजस्वला होती हैं, तो इस दौरान मंदिर के कपाट अपने आप बंद हो जाते है। इन 3 दिनों तक किसी को भी मंदिर के भीतर जाने नहीं दिया जाता है।

श्वेत वस्त्र कैसे हो जाता है लाल?

परंपरा के अनुसार, कामाख्या मंदिर के कपाट बंद होने से पहले महामुद्रा योनि के आसपास के क्षेत्र को एक श्वेत (सफेद) कपड़े से ढंक दिया जाता है। तीन दिन बाद मंदिर के कपाट खोले जाते हैं, तो यह कपड़ा पूरी तरह से लाल और भीगा हुआ होता है। यह घटना कैसे होती है, यह आज भी एक रहस्य है। इस कपड़े को ‘अंबुबाची वस्त्र’ (Ambubachi Vastra) कहते हैं। मां कामाख्या के भक्त इस वस्त्र को बहुत पवित्र मानते हैं। भक्तों को प्रसाद के रूप में इसी वस्त्र का एक टुकड़ा दिया जाता है।

अम्बुबाची प्रसाद है बहुत विशेष

मां कामाख्या का अम्बुबाची प्रसाद ‘अंगोदक’ और ‘अंगवस्त्र’ इन दो रूपों बांटा जाता है। अंगोदक का अर्थ है शरीर का जल पदार्थ, जो महामुद्रा योनि से निकलता है और अंगवस्त्र का अर्थ है शरीर को ढकने वाला कपड़ा, जिसका इस्तेमाल देवी कामाख्या के मासिक धर्म के 3 दिनों में महामुद्रा की दरार को ढकने के लिए इस्तेमाल किया जाता है। कहते हैं, जिन्हें यह प्रसाद मिलता है, उनके जीवन के सब कष्ट, पीड़ा और दुःख मिट जाते हैं। अंगोदक का इस्तेमाल तांत्रिक साधनाओं और उपायों में किया जाता है।

जब ब्रह्मपुत्र का पानी हो जाता है लाल

कहते हैं, देवी कामाख्या के रजस्वला होने का असर केवल मंदिर तक सीमित नहीं होता है। इससे आसपास की प्रकृति पर भी इसका असर होता है। देवी के अम्बुबाची होने से कामाख्या मंदिर के पास बहती ब्रह्मपुत्र नदी का पानी भी 3 दिनों के लिए लाल हो जाता है। जब देवी मासिक धर्म से निवृत हो जाती हैं, तब फिर नदी का पानी साफ हो जाता है।

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डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक की मान्यताओं पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

First published on: Jun 22, 2024 12:22 PM

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