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Religion

जैन धर्म के लिए क्यों खास है अक्षय तृतीया, जानिए क्या है कारण?

Akshaya Tritiya 2025: अक्षय तृतीया सिर्फ हिंदू धर्म के लिए ही नहीं जैन धर्म के लिए भी बेहद ही खास त्योहार है। साल 2025 में यह पर्व 30 अप्रैल को मनाया जा रहा है। इस दिन बिना शुभ मुहूर्त का विचार किए ही अच्छे काम किये जा सकते हैं। यह त्योहार जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव के साथ जुड़ा हुआ है।

Author Edited By : Mohit Tiwari Updated: Apr 30, 2025 16:38
Adinath bhagwan

Akshaya Tritiya 2025: अक्षय तृतीया, जिसे आखा तीज के नाम से भी जाना जाता है, जैन धर्म और हिंदू धर्म में एक महत्वपूर्ण पर्व है। यह वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि को मनाया जाता है और इसे अबूझ मुहूर्त का दिन माना जाता है, अर्थात इस दिन बिना किसी शुभ मुहूर्त के विचार के शुभ कार्य किए जा सकते हैं। जैन धर्म में अक्षय तृतीया का विशेष महत्व है, क्योंकि इस पर्व का प्रथम तीर्थंकर भगवान ऋषभदेव (आदिनाथ) के साथ भी गहरा संबंध है।

जैन धर्म के अनुसार अक्षय तृतीया का संबंध भगवान ऋषभदेव के उपवास तोड़ने की घटना से जुड़ा है। ऋषभदेव, जो जैन धर्म के प्रथम तीर्थंकर और इक्ष्वाकु वंश से थे, उन्होंने मानवता को सभ्यता, कृषि, कला, और धर्म का मार्ग दिखाया। एक किंवदंती के अनुसार, जब भगवान ऋषभदेव ने राजपाट त्यागकर तपस्वी जीवन अपनाया, तो उन्होंने एक वर्ष तक कठोर तपस्या की। इस दौरान उन्होंने भोजन और जल ग्रहण नहीं किया। उनकी तपस्या का समापन अक्षय तृतीया के दिन हुआ, जब उनके भाई भरत के पुत्र राजकुमार श्रेयांस ने उन्हें हस्तिनापुर में गन्ने का रस (इक्षु रस) भेंट किया। यह घटना जैन धर्म में ‘इक्षु दान’ के रूप में प्रसिद्ध है और अक्षय तृतीया का आधार है।

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यह है अक्षय तृतीया का आध्यात्मिक महत्व

अक्षय तृतीया जैन धर्म में तप, दान, और आत्म-संयम का प्रतीक है। यह दिन भक्तों को भगवान ऋषभदेव के जीवन से प्रेरणा लेने का अवसर प्रदान करता है, जिन्होंने कठोर तपस्या के माध्यम से आत्मज्ञान प्राप्त किया था। इस दिन जैन समुदाय के लोग उपवास, पूजा, और दान जैसे धार्मिक कार्य करते हैं। विशेष रूप से गन्ने के रस का दान करना इस दिन का महत्वपूर्ण हिस्सा है, जो भगवान ऋषभदेव को श्रेयांस द्वारा किए गए दान के कारण किया जाता है।

जैन मंदिरों में होता है उत्सव

अक्षय तृतीया के दिन जैन मंदिरों में विशेष पूजा-अर्चना का आयोजन किया जाता है। भगवान ऋषभदेव की मूर्ति का अभिषेक किया जाता है और भक्त सामूहिक रूप से प्रार्थना करते हैं। कई जैन अनुयायी इस दिन उपवास रखते हैं, जो एक दिन से लेकर कई दिनों तक हो सकता है। कुछ लोग ‘आयंबिल तप’ करते हैं, जिसमें केवल सादा, तेल-मसाले रहित भोजन ग्रहण किया जाता है।

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किया जाता है दान

इस दिन दान-पुण्य का विशेष महत्व होता है। जैन धर्म में दान को आत्मा की शुद्धि का साधन माना जाता है, और अक्षय तृतीया के दिन भक्त जरूरतमंदों को भोजन, वस्त्र, और अन्य आवश्यक वस्तुओं का दान करते हैं। गन्ने के रस का वितरण भी इस दिन की एक प्रमुख परंपरा है, जो भगवान ऋषभदेव के प्रति श्रद्धा का प्रतीक है।

यह पर्व अक्षय (अविनाशी) गुणों को अपनाने का भी प्रतीक है। जैन धर्म में अक्षय का अर्थ वह है जो कभी नष्ट न हो, जैसे आत्मा का ज्ञान, दया, और सत्य कभी नष्ट नहीं होता है। इस दिन भक्त आत्म-चिंतन करते हैं और अपने जीवन में अहिंसा, सत्य, और संयम जैसे जैन सिद्धांतों को और अधिक मजबूत करने का संकल्प लेते हैं।

क्या है सामाजिक महत्व?

अक्षय तृतीया न केवल धार्मिक, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक दृष्टिकोण से भी महत्वपूर्ण है। यह पर्व जैन समुदाय को एकजुट करता है और उन्हें अपनी धार्मिक परंपराओं के प्रति जागरूक करता है। यह दिन भक्तों को यह सिखाता है कि सच्चा सुख भौतिक सुखों में नहीं, बल्कि आत्म-संयम और परोपकार में है। जैन धर्म के सिद्धांत, जैसे अहिंसा और अपरिग्रह, इस पर्व के माध्यम से समाज में प्रचारित होते हैं।

डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है। News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है।

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Edited By

Mohit Tiwari

First published on: Apr 30, 2025 04:38 PM

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