Shri Devguru Brihaspati Chalisa Lyrics In Hindi: ज्योतिष शास्त्र में 9 ग्रहों का वर्णन किया गया है, जिसमें से एक देवगुरु बृहस्पति ग्रह भी है. देवगुरु बृहस्पति ग्रह को देवगुरु बृहस्पति देव, गुरु ग्रह और गुरु देव के नामों से जाना जाता है. धार्मिक मान्यता के अनुसार, जिन लोगों की कुंडली में देवगुरु बृहस्पति ग्रह की स्थिति मजबूत होती है, उन्हें ज्ञान, सुख, समृद्धि और धन की प्राप्ति होती है. इसके अलावा गुरु ग्रह को विवाह और संतान का कारक भी माना जाता है, जिनकी कृपा से व्यक्ति की लाइफ में खुशहाली बनी रहती है.
वहीं, भाग्य को बल भी गुरु देव की कृपा से मिलता है. हालांकि, देवगुरु बृहस्पति ग्रह को खुश करना बहुत आसान है. नियमित रूप से देवगुरु बृहस्पति चालीसा का पाठ करके आप गुरु ग्रह की विशेष कृपा प्राप्त कर सकते हैं. चलिए अब जानते हैं देवगुरु बृहस्पति चालीसा के सही लिरिक्स के बारे में.
श्री देवगुरु बृहस्पति चालीसा (Brihaspati Chalisa Lyrics In Hindi)
॥ दोहा ॥
प्रन्वाऊ प्रथम गुरु चरण, बुद्धि ज्ञान गुन खान।
श्री गणेश शारद सहित, बसों ह्रदय में आन॥
अज्ञानी मति मंद मैं, हैं गुरुस्वामी सुजान।
दोषों से मैं भरा हुआ हूं तुम हो कृपा निधान॥
॥ चौपाई ॥
जय नारायण जय निखिलेशवर। विश्व प्रसिद्ध अखिल तंत्रेश्वर॥
यंत्र-मंत्र विज्ञानं के ज्ञाता। भारत भू के प्रेम प्रेनता॥
जब-जब हुई धरम की हानि। सिद्धाश्रम ने पठए ज्ञानी॥
सच्चिदानंद गुरु के प्यारे। सिद्धाश्रम से आप पधारे॥
उच्चकोटि के ऋषि-मुनि स्वेच्छा। ओय करन धरम की रक्षा॥
अबकी बार आपकी बारी। त्राहि त्राहि है धरा पुकारी॥
मरुन्धर प्रान्त खरंटिया ग्रामा। मुल्तानचंद पिता कर नामा॥
शेषशायी सपने में आये। माता को दर्शन दिखलाये॥
रुपादेवि मातु अति धार्मिक। जनम भयो शुभ इक्कीस तारीख॥
जन्म दिवस तिथि शुभ साधक की। पूजा करते आराधक की॥
जन्म वृतन्त सुनाये नवीना। मंत्र नारायण नाम करि दीना॥
नाम नारायण भव भय हारी। सिद्ध योगी मानव तन धारी॥
ऋषिवर ब्रह्म तत्व से ऊर्जित। आत्म स्वरुप गुरु गोरवान्वित॥
एक बार संग सखा भवन में। करि स्नान लगे चिन्तन में॥
चिन्तन करत समाधि लागी। सुध-बुध हीन भये अनुरागी॥
पूर्ण करि संसार की रीती। शंकर जैसे बने गृहस्थी॥
अदभुत संगम प्रभु माया का। अवलोकन है विधि छाया का॥
युग-युग से भव बंधन रीती। जंहा नारायण वाही भगवती॥
सांसारिक मन हुए अति ग्लानी। तब हिमगिरी गमन की ठानी॥
अठारह वर्ष हिमालय घूमे। सर्व सिद्धिया गुरु पग चूमें॥
त्याग अटल सिद्धाश्रम आसन। करम भूमि आये नारायण॥
धरा गगन ब्रह्मण में गूंजी। जय गुरुदेव साधना पूंजी॥
सर्व धर्महित शिविर पुरोधा। कर्मक्षेत्र के अतुलित योधा॥
ह्रदय विशाल शास्त्र भण्डारा। भारत का भौतिक उजियारा॥
एक सौ छप्पन ग्रन्थ रचयिता। सीधी साधक विश्व विजेता॥
प्रिय लेखक प्रिय गूढ़ प्रवक्ता। भूत-भविष्य के आप विधाता॥
आयुर्वेद ज्योतिष के सागर। षोडश कला युक्त परमेश्वर॥
रतन पारखी विघन हरंता। सन्यासी अनन्यतम संता॥
अदभुत चमत्कार दिखलाया। पारद का शिवलिंग बनाया॥
वेद पुराण शास्त्र सब गाते। पारेश्वर दुर्लभ कहलाते॥
पूजा कर नित ध्यान लगावे। वो नर सिद्धाश्रम में जावे॥
चारो वेद कंठ में धारे। पूजनीय जन-जन के प्यारे॥
चिन्तन करत मंत्र जब गायें। विश्वामित्र वशिष्ठ बुलायें॥
मंत्र नमो नारायण सांचा। ध्यानत भागत भुत-पिशाचा॥
प्रातः कल करहि निखिलायन। मन प्रसन्न नित तेजस्वी तन॥
निर्मल मन से जो भी ध्यावे। रिद्धि सिद्धि सुख-सम्पति पावे॥
पथ करही नित जो चालीसा। शांति प्रदान करहि योगिसा॥
अष्टोत्तर शत पाठ करत जो। सर्व सिद्धिया पावत जन सो॥
श्री गुरु चरण की धारा। सिद्धाश्रम साधक परिवारा॥
जय-जय-जय आनंद के स्वामी। बारम्बार नमामी नमामी॥
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किस समय चालीसा का पाठ करना शुभ?
वैसे तो किसी भी दिन किसी भी समय देवगुरु बृहस्पति चालीसा का पाठ कर सकते हैं, लेकिन गुरुवार को ब्रह्म मुहूर्त में इसका पाठ जरूर करना चाहिए. दरअसल, गुरुवार का दिन देवगुरु बृहस्पति ग्रह को समर्पित है.
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