(आचार्य प्रतिष्ठा, मोक्षायतन योग संस्थान की निदेशक): सेहतमंद रहने के लिए शरीर का स्वस्थ होना बेहद महत्वपूर्ण होता है। खान-पान और सही डाइट के अलावा शरीर के हर अंग का खास ख्याल रखना चाहिए ताकि उसका दुष्प्रभाव शरीर पर न पड़े। जैसे पैरों का स्वास्थ्य सही रखने के लिए दौड़ और वॉक जरूरी हैं। लंग्स और हार्ट की समस्याओं से बचने के लिए कपालभाति और सांसों से जुड़े व्यायाम करने की सलाह दी जाती है। नाभि शरीर का एक और सबसे महत्वपूर्ण अंग है, जिसकी मदद से गर्भ में एक नया जीवन पलता है। नाभि वही स्थान है जहां से शिशु मां के गर्भ में पोषण प्राप्त करते हैं और गर्भ से निकलकर नाभि के इस अद्भुत गुण को भूल जाता है। पर योग परंपरा में स्वस्थ रहने के लिए नाभि की अहम भूमिका है। जी हां, आचार्य प्रतिष्ठा के अनुसार चाहे हम आसन की बात करें, प्राणायाम की, ध्यान की, सूर्य साधना या फिर चक्र साधना की, इन सभी के अभ्यास में नाभि की भूमिका अहम होती है।
क्या है चक्र साधना?
चक्र साधना एक ऐसी प्रक्रिया होती है जिसमें योग, ध्यान और प्राणायाम के माध्यम से शरीर के विभिन्न चक्रों को संतुलित किया जाता है। इसका मुख्य उद्देश्य शरीर की ऊर्जा को जगाना और जीवन को अधिक सकारात्मक और शांतिपूर्ण बनाना है। चक्र साधना से मानसिक शांति, शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि और आध्यात्मिक उन्नति होती है।
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चक्र साधना व नाभि का संबंध
मोक्षायतन योग संस्थान की निदेशक आचार्य प्रतिष्ठा कहती हैं कि योग की चक्र साधना में नाभि को मणिपुर चक्र के नाम से जानते हैं, मणि यानी अमूल्य रत्न और पुर यानी स्थान: मनुष्य जीवन का अमूल्य रत्न है आपका स्वास्थ्य। इसीलिए मणिपुर चक्र का अर्थ है स्वास्थ्य का स्थान: नाभि शरीर का बिल्कुल मध्य केंद्र है और इसके द्वारा हम पूरे शरीर को जैसे गर्भ के भीतर पोषण देते थे, वैसे ही योग की चक्र साधना, सूर्य साधना व अन्य विधियों द्वारा आज भी पोषण दे सकते हैं। योग परंपरा के साथ-साथ अनेक भारतीय चिकित्सा पद्धतियों में भी नाभि को शरीर का एक महत्वपूर्ण केंद्र माना गया है, जो कई अंगों और प्रणालियों से जुड़ा होता है, और इसे “ऊर्जा का स्रोत” भी कहा जाता है। यही कारण है कि भारतीय संस्कृति में आज भी पूजा, आराधना, यज्ञ, सूर्य उपासना इत्यादि के समय पुरुष सिर्फ धोती एवं स्त्री साड़ी या लहंगा चोली धारण करती हैं और योग साधक सूर्य के रंगों के वस्त्र जैसे कि सफेद , पीला, गेरूआ, केसरी इत्यादि धारण करके सूर्य की ऊर्जा को सीधा नाभि पर ग्रहण करते हैं।

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नाभि से ऊर्जा लेने के अनेक पारंपरिक तरीके
नाभि से ऊर्जा प्राप्त करने के कई पारंपरिक तरीके हैं जिनमें से महत्वपूर्ण है सूर्य साधना, सूर्य को अर्घ्य देना, सूर्य नमस्कार, भारत योग परंपरा में ऊर्जा गति एवं सूर्य ध्यान, मणिपुर चक्र ध्यान एवं चक्र साधना। आयुर्वेद में नाभि पुरण यानी नाभि में विभिन्न प्रकार के तेल लगाकर शरीर को स्वस्थ रखना व रोगों से बचाव। नाभि पर कार्य करके अनेक स्वास्थ्य लाभ लिए जा सकते हैं। प्रत्येक व्यक्ति कम से कम प्रतिदिन 20 मिनट अपने शरीर को सूर्य की किरणों में रखें एवं रात में सोने से पहले नाभि में तेल लगाकर इसका आरंभ कर सकते हैं।
नाभि से जुड़ी कुछ खास बातें
नाभि शरीर के केंद्र में स्थित होता है और इसे ऊर्जा का केंद्र माना जाता है।
नाभि के आसपास की ऊर्जा को जाग्रत करने से पाचन क्रिया, ब्लड सर्कुलेशन और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार होता है।
चक्र साधना करने से यह तनाव, चिंता और अवसाद को भी कम करने में मदद करता है।
(आचार्य प्रतिष्ठा, मोक्षायतन योग संस्थान की निदेशक हैं)
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