राज्यसभा की आठ रिक्त सीटों में असम से दो और तमिलनाडु से 6 के लिए होने जा रहे चुनाव एनडीए और इंडिया गठबंधन के लिए न केवल संसद में संख्या संतुलन के लिहाज से महत्वपूर्ण हैं, बल्कि इन राज्यों में 2026 में होने वाले विधानसभा चुनावों की दिशा तय करने वाले रणनीतिक पड़ाव भी बन सकते हैं।
राज्यसभा में वर्तमान में कुल 245 सीटें हैं, जिनमें से 240 भरी हुई हैं। एनडीए के पास अभी करीब 110 सीटें हैं, जबकि इंडिया गठबंधन के पास लगभग 100 सीटें हैं। बाकी सीटें क्षेत्रीय दलों और निर्दलीयों के पास हैं, जो अक्सर सरकार और विपक्ष दोनों के लिए निर्णायक साबित होते हैं। इन आठ सीटों के चुनाव में अगर बीजेपी नेतृत्व वाली एनडीए 4 या उससे ज्यादा सीटें जीत लेती है, तो यह राज्यसभा में उसकी स्थिति को और मजबूत कर देगा। खासकर ऐसे समय में जब लोकसभा में उसके पास बहुमत है लेकिन राज्यसभा में पूरी तरह नियंत्रण नहीं है।
असम में विपक्षी एकजुटता बनाम BJP की ‘सेंध’ रणनीति
असम से राज्यसभा की दो सीटें रिक्त हो रही हैं। एक भाजपा सांसद मिशन रंजन दास और दूसरी सहयोगी असम गण परिषद (AGP) के बीरेंद्र प्रसाद बैश्य की। 126 सदस्यीय विधानसभा में भाजपा के पास 64, AGP के 9 और यूपीपीएल के 7 विधायक हैं। इस प्रकार एनडीए के पास कुल 80 विधायक हैं। राज्यसभा की एक सीट के लिए 43 विधायकों का समर्थन आवश्यक होता है, जिससे भाजपा की एक सीट सुरक्षित मानी जा रही है। लेकिन दूसरी सीट पर असली मुकाबला है।
विपक्ष के पास कांग्रेस (26), AIUDF (15), BPF (3), CPI (1) को मिलाकर 45 विधायक हैं, जो 43 के आवश्यक आंकड़े से दो अधिक हैं। हालांकि, यह तभी संभव है जब विपक्ष एकजुट होकर मतदान करे। भाजपा की रणनीति विपक्ष में सेंध लगाकर दूसरी सीट भी अपने पक्ष में करने की है।
यह चुनाव कांग्रेस के नव नियुक्त प्रदेश अध्यक्ष गौरव गोगोई के लिए भी एक ‘अग्निपरीक्षा’ है। यदि वह विपक्ष को एकजुट रख पाते हैं, तो कांग्रेस की स्थिति सुदृढ़ होगी। वहीं अगर भाजपा विपक्षी खेमे में फूट डाल पाने में सफल रहती है, तो असम की दोनों सीटें फिर एनडीए के खाते में जाएंगी, जो 2026 के विधानसभा चुनाव से पहले एक बड़ी मनोवैज्ञानिक बढ़त होगी।
तमिलनाडु में 6 सीटों में पांच तय
तमिलनाडु से राज्यसभा की छह सीटें रिक्त हो रही हैं, जिनमें से द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (DMK) तीन, अन्नाद्रमुक (AIADMK), पट्टाली मक्कल कच्ची (PMK) और एमडीएमके (MDMK) एक-एक सीट पर काबिज थे। तमिलनाडु विधानसभा में कुल 234 विधायक हैं, जिनमें DMK के पास 133, कांग्रेस के 17, वामपंथियों के 4 और वीसीके के 4 विधायक हैं—कुल 158 विधायक जो भाजपा विरोधी INDIA गठबंधन का हिस्सा हैं। एक सीट जीतने के लिए 34 विधायकों की आवश्यकता होती है। अतः DMK गठबंधन आराम से चार सीटें जीत सकता है।
AIADMK के पास 66 विधायक (दोनों गुटों को मिलाकर), भाजपा के पास 4 और PMK के पास 4 विधायक हैं। कुल मिलाकर NDA के पास 74 विधायक हैं—जो दो सीटें जीतने के लिए ज़रूरी 68 आंकड़े से छह अधिक हैं। अतः AIADMK की एक सीट तय है और दूसरी सीट पर जीत के लिए भाजपा को गठबंधन को मजबूत बनाए रखना होगा। भाजपा इस बार अपने पूर्व प्रदेश अध्यक्ष के अन्नामलाई को राज्यसभा भेजना चाहती है, लेकिन उनके AIADMK के साथ संबंध तल्ख रहे हैं। ऐसे में भाजपा को किसी सर्वमान्य चेहरे पर विचार करना पड़ सकता है।
राज्यसभा में भाजपा की स्थिति पर असर
अगर भाजपा असम की दोनों और तमिलनाडु की एक सीट जीतने में सफल रहती है, तो आठ में से उसकी हिस्सेदारी तीन होगी—यह राज्यसभा में उसकी संख्या को 110 से बढ़ाकर 113 तक पहुंचा सकती है, जबकि विपक्ष की ताकत वहीं ठहरी रह जाएगी या घट सकती है। वहीं अगर कांग्रेस व INDIA गठबंधन तमिलनाडु में पांच और असम में एक सीट अपने पाले में रख पाते हैं, तो वे राज्यसभा में अपनी स्थिति मजबूत बनाए रखेंगे।
यह चुनाव सिर्फ संख्या का खेल नहीं, बल्कि 2026 के असम व तमिलनाडु विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक ताकत और एकजुटता का ‘टेस्ट मैच’ भी है। भाजपा और कांग्रेस दोनों के लिए यह अवसर है या तो अपनी बढ़त को पुख्ता करने का, या सेंध से बचाने का है।
राज्यसभा की ये आठ सीटें सिर्फ ऊपरी सदन की गिनती नहीं बढ़ाएंगी, बल्कि यह भाजपा और INDIA गठबंधन की 2026 विधानसभा चुनावों की पूर्व रणनीति की परीक्षा हैं। भाजपा अगर इन चुनावों में विपक्ष को एक भी सीट न जीतने दे, तो यह एक बड़ी रणनीतिक जीत होगी। वहीं, विपक्ष अगर अपनी ताकत साबित कर पाता है, तो यह भाजपा के राष्ट्रव्यापी एकाधिकार के खिलाफ एक मजबूत संदेश बन सकता है।
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