नई दिल्ली: उद्धव ठाकरे खेमे ने तत्कालीन मुख्यमंत्री उद्धव ठाकरे के लिए फ्लोर टेस्ट और सीएम के रूप में उनकी बहाली के महाराष्ट्र के राज्यपाल के आदेश के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया है। लेकिन अब शर्मिंदगी से बचने के लिए उद्धव ठाकरे के नेतृत्व वाली महा विकास अघाड़ी सरकार द्वारा लिया गया फैसला उसकी सबसे महंगी गलती साबित होती दिख रही है।
भारत के मुख्य न्यायाधीश डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व में पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ नौ दिनों से मामले की सुनवाई कर रही है। सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को कहा कि सरकार को बहाल करना उसके लिए एक तार्किक बात होगी बशर्ते कि उद्धव ठाकरे विधानसभा के पटल पर विश्वास मत हार गए हों। पीठ ने कहा, “तो स्पष्ट रूप से आपको विश्वास मत के कारण सत्ता से बेदखल कर दिया गया है जिसे रद्द कर दिया गया है।”
पीठ ने आश्चर्य व्यक्त किया कि वह ठाकरे के नेतृत्व वाली सरकार को कैसे बहाल कर सकती है भले ही उसे विश्वास मत के लिए राज्यपाल के आह्वान को अवैध पाया गया हो। CJI चंद्रचूड़ की अगुवाई वाली बेंच ने कहा, “हम एक ऐसी सरकार को कैसे बहाल कर सकते हैं जिसने विश्वास मत का सामना किए बिना स्वेच्छा से इस्तीफा देकर सदन में बहुमत खो दिया है।” खंडपीठ ने इस मामले में फैसला सुरक्षित रख लिया है।
बता दें कि उद्धव ठाकरे ने पिछले साल 29 जून को महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके घंटों बाद शीर्ष अदालत ने महाराष्ट्र के राज्यपाल के निर्देश पर एक दिन बाद होने वाले फ्लोर टेस्ट पर रोक लगाने से इनकार कर दिया था। संविधान पीठ महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे और उद्धव ठाकरे के गुटों द्वारा दोनों खेमों के विधायकों के खिलाफ अयोग्यता की कार्यवाही और नए अध्यक्ष के रूप में राहुल नार्वेकर के चुनाव के संबंध में दायर याचिकाओं के एक बैच पर विचार कर रही है।