Blind IIM Professor Tarun Kumar Vashisth Success Story: दोनों आंखों से देख नहीं सकते, फिर भी हिम्मत नहीं हारी। IIT में दाखिला देने से मना कर दिया गया था, फिर भी डटे रहे। IIM से पढ़े, PHD करके डॉक्टरेट की और किस्मत देखिए अब IIM में ही नौकरी भी मिल गई है।
खुद जन्म से दृष्टिबाधित हैं, फिर भी स्टूडेंट्स को पढ़ाएंगे। यह प्रेरक कहानी है उत्तराखंड के तरुण वशिष्ठ की, जिन्होंने अपने मजबूत हौसले की बदौलत बड़ी उपलब्धि हासिल की है। वे IIM अहमदाबाद के पहले स्टूडेंट हैं, जिन्होंने दृष्टिबाधित होने के बावजूद PHD की और अब IIM बोधगया में पढ़ाएंगे।
AHMEDABAD: Tarun Kumar Vashisth, 42, somewhat broke a record when he presented his doctoral thesis presentation at IIM Ahmedabad (IIM-A). Being blind from birth, Vashisth is the first doctor of philosophy #PhD #IIM #IIMAHEMEDABAD #blind #abhijeetbharatnews pic.twitter.com/eN5f7Hg3Xa
---विज्ञापन---— Abhijeet Bharat News (@abhijeetbharat_) March 3, 2024
IIM अहमदाबाद ने अनुकूल बदलाव करके सहयोग किया
तरुण वशिष्ठ बताते हैं कि उन्होंने BSC की है। इसके बाद उन्होंने IIT रुड़की का एंट्रेस एग्जाम पास कर लिया, लेकिन संस्थान ने यह कहते हुए दाखिला देने से इनकार कर दिया कि तुम देख नहीं सकते, पढ़ाई करने में समस्या आ सकती है, लेकिन उन्होंने निराश होकर हिम्मत नहीं छोड़ी।
2018 में जनरल कैटैगरी से IIM अहमदाबाद में PHD करने के लिए दाखिला लिया। दिव्यांग कोटे से दाखिला लेने वाले संस्थान के पहले स्टूडेंट बने, लेकिन मैं संस्थान का आभारी हूं कि वहां के डायरेक्टर और स्टाफ ने मुझे सहयोग किया। मैं आराम से पढ़ पाऊं, इसके लिए कुछ बदलाव संस्थान और सिस्टम में भी किए।
Heartiest congratulations to Dr Tarun Kumar Vashisht for commendable achievement and being a great inspiration – In a first at IIM-A, he visually impaired scholar earned PhD; and is set to join IIM Bodh Gaya faculty https://t.co/Klcn9SP0VN
— Lt Gen Gyan Bhushan (@bhushan_gyan) March 3, 2024
नॉर्मल स्कूल में पढ़े, गणित को स्पेशल सब्जेक्ट बनाया
मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, तरुण ने दर्शनशास्त्र के PHD की है। उनकी थीसिस का टॉपिक भी कॉर्पोरेट भारत में दृष्टिबाधित कर्मचारियों के अनुभवों पर आधारित था। अब वे IIM बोधगया में सहायक प्रोफेसर के रूप में अपॉइंट होंगे। तरुण कहते हैं कि उन्हें परिवार से भी काफी सहयोग मिला।
उन्होंने मुझे कभी अहसास नहीं होने दिया कि मैं दिव्यांग हूं, इसलिए कुछ कर नहीं पाऊंगा। मैं और बच्चों की तरह नॉर्मल स्कूल में पढ़ा। गणित जैस विषय चुना, जिसे आज के बच्चे लेने से कतराते हैं। अब विजुअली इम्पेयर्ड कैंडिडेट ‘नॉन-डिसएबल्ड’ इंस्टीट्यूशन में पढ़ाने का मौका मिला है तो खुश हूं।