Supreme Court: सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को एक मामले की सुनवाई के दौरान कहा कि राज्य सरकारें लोगों को किफायती चिकित्सा सुविधाएं मुहैया करवाने में नाकाम रही हैं। कोर्ट ने गरीब तबके को उचित चिकित्सा सुविधाएं और सस्ती दवाइयां नहीं मिलने पर फटकार लगाई। कोर्ट ने कहा कि इसी असफलता की वजह से प्राइवेट अस्पतालों को सुविधाएं और बढ़ावा मिला। जस्टिस सूर्यकांत और एनके सिंह की पीठ ने जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए कहा कि निजी अस्पतालों की ओर से मरीजों और उनके तीमारदारों को दवा, ट्रांसप्लांट और अन्य चिकित्सा देखभाल उपकरण खरीदने के लिए अपने फार्मासिस्टों के पास जाने के लिए मजबूर किया जा रहा है।
याचिका में लगाए गंभीर आरोप
ये लोग मनचाहे दाम वसूल रहे हैं। जनहित याचिका में निजी अस्पतालों को निर्देश देने की मांग की गई थी। न्यायालय के समक्ष गुहार लगाई गई थी कि वे मरीजों को अपने अस्पतालों की दुकानें से दवा खरीदने के लिए न कहें। आरोप लगाया गया था कि केंद्र और राज्य सरकारें सुधार करने में असफल रहे हैं, जिसकी वजह से अस्पतालों में मरीजों का शोषण हो रहा है।
Provision of medical facilities to all is a right traceable to Article 21, the Court said.
Read more: https://t.co/5ZyKiGM4aK#SupremeCourt #medicine pic.twitter.com/CEsmvs8kZx— Live Law (@LiveLawIndia) March 4, 2025
---विज्ञापन---
मरीजों को मिले उचित दवा
जस्टिस सूर्यकांत ने सरकारों से पूछा कि वे उनके जवाब से सहमत हैं, लेकिन रेगुलेशन कैसे किया जाए? मरीजों को उचित चिकित्सा मिले, यह राज्य सरकारों का कर्तव्य है। कुछ राज्य मरीजों को अपेक्षित चिकित्सा सुविधाएं मुहैया करवाने में असफल रहे हैं, इसलिए निजी संस्थाओं को उन्होंने सुविधाएं प्रदान की और बढ़ावा दिया। इन सरकारों को ऐसी संस्थाओं को रेगुलेटेड करने को कहा। कोर्ट ने राज्य सरकारों को आदेश दिए कि निजी अस्पताल मरीजों और उनके तीमारदारों को दवा खरीदने के लिए मजबूर न करें, यह सुनिश्चित किया जाए। विशेषकर तब, जब वह दवा सस्ते दामों में उपलब्ध हो।
कई राज्यों को जारी हुए थे नोटिस
कोर्ट ने केंद्र सरकार को आदेश दिए कि नागरिकों का शोषण करने वाले निजी अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों से बचाव के लिए दिशानिर्देश तैयार किए जाएं। फिलहाल अनिवार्य आदेश जारी करना उचित नहीं होगा, लेकिन इस मुद्दे पर सरकारों को गंभीर होना होगा। सुप्रीम कोर्ट की ओर से पहले मामले में ओडिशा, छत्तीसगढ़, अरुणाचल प्रदेश, तमिलनाडु, बिहार, हिमाचल प्रदेश और राजस्थान समेत कई राज्यों को नोटिस जारी किए गए थे।
यह भी पढ़ें:Himani Murder: ‘सिर्फ दोस्त थे, सचिन से कोई अफेयर नहीं…’; हिमानी नरवाल हत्या मामले में नया ट्विस्ट
इस नोटिस पर राज्यों ने अपने हलफनामे कोर्ट में दायर किए। राज्यों ने दवाओं की कीमतों पर कहा कि केंद्र सरकार की ओर से जारी मूल्य नियंत्रण आदेशों पर ये निर्भर करती हैं। आवश्यक दवाओं के दाम उचित वसूले जाएं, वे प्रयास करते हैं। हालांकि केंद्र सरकार ने भी अपना जवाब दायर कर कहा कि अस्पतालों की फार्मेसियों से दवाएं खरीदने के लिए कोई बाध्यता नहीं है।
राज्य लें नीतिगत निर्णय
सुप्रीम कोर्ट ने मामले में उचित नीतिगत निर्णय लेने का काम राज्यों पर छोड़ दिया है। न्यायमूर्ति सूर्यकांत और एन कोटिश्वर सिंह की पीठ ने एलएलबी कर रहे सिद्धार्थ डालमिया और उनके अधिवक्ता पिता विजय पाल डालमिया द्वारा दायर जनहित याचिका का निपटारा कर दिया। जनहित याचिका में आरोप लगाया गया था कि निजी अस्पताल मरीजों और उनके तीमारदारों को इन-हाउस फार्मेसियों या उनके साथ सहयोग करने वाली फार्मेसियों से दवाइयां खरीदने के लिए मजबूर करते हैं। इसके लिए अधिक कीमत वसूली जाती है। पीठ ने कहा कि नागरिकों को बेहतर स्वास्थ्य सुविधाएं प्राप्त करने का अधिकार संविधान ने अनुच्छेद 21 में दिया है।
यह भी पढ़ें:Himani Murder: हत्या के बाद आरोपी ने हिमानी के गहने उतारे, फाइनेंस कंपनी के पास रखे गिरवी; खुद खोले ये राज