Supreme Court Hearing News: सुप्रीम कोर्ट में आज राष्ट्रपति और राज्यपाल के पास बिल लंबित रखने से जुड़े मामले की सुनवाई हुई। दोनों पक्षों को सुनने के बाद सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और सभी राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया। नोटिस जारी करके राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू द्वारा 14 विषयों पर मांगी गई राय को लेकर जवाब मांगा गया है। राष्ट्रपति मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट से राय मांगी थी कि क्या अदालत संसद या राज्य विधानसभाओं द्वारा पारित किए गए विधेयकों पर स्वीकृति देने के लिए राज्यपाल या राष्ट्रपति के लिए समय-सीमा तय कर सकती है? सुप्रीम कोर्ट के चीफ जस्टिस बीआर गवई की अध्यक्षता वाली 5 जजों की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है और अगली सुनवाई 29 जुलाई को होगी।
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क्या है मामला?
बता दें कि सुप्रीम कोर्ट ने 8 अप्रैल 2025 को राष्ट्रपति और राज्यपालों द्वारा बिलों को लंबित रखने के मुद्दे पर महत्वपूर्ण फैसला दिया था। तमिलनाडु, पंजाब और अन्य राज्यों ने संविधान के अनुच्छेद 200 (राज्यपालों के लिए) और अनुच्छेद 111 (राष्ट्रपति के लिए) के तहत मिली शक्तियों पर सवाल उठाए जा रहे थे। तमिलनाडु सरकार ने साल 2023 में सुप्रीम कोर्ट में एक याचिका दायर की थी। इसमें कहा गया था कि राज्यपाल RN रवि ने साल 2020 से साल 2023 के बीच पारित 12 विधेयकों पर फैसला लंबित रखा हुआ था। कुछ बिलों को राज्यपाल ने राष्ट्रपति के पास भेजा, लेकिन उन्होंने भी कोई कार्रवाई नहीं की।
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सुप्रीम कोर्ट ने दिया था ये फैसला
जस्टिस JB पारदीवाला की अध्यक्षता वाली बेंच ने अप्रैल 2025 में फैसला दिया कि न तो राज्यपाल और न ही राष्ट्रपति किसी बिल को अनिश्चित काल तक के लिए लंबित रख सकते हैं या ‘वीटो’ कर सकते हैं। अगर कोई बिल राष्ट्रपति के पास भेजा जाता है तो उन्हें उस पर फैसला लेना होगा और यह फैसला समयसीमा के अंदर होना चाहिए। सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि अगर राज्यपाल किसी बिल को राष्ट्रपति के पास भेजते हैं तो राष्ट्रपति को 3 महीने के अंदर बिल पर फैसला लेना होगा। अगर वे बिल पर कोई कार्रवाई नहीं करते हैं तो राज्य सरकार अदालत का रुख कर सकती है और समयसीमा लागू करने की मांग कर सकती है।
राष्ट्रपति ने जताई थी कड़ी आपत्ति
सुप्रीम कोर्ट के समयसीमा तय करने के फैसले ने राष्ट्रपति को संविधान के तहत मिली पॉकेट वीटो शक्ति को सीमित किया। राष्ट्रपति ने इस फैसले पर कड़ी आपत्ति जताई और सवाल किया कि जब भारतीय संविधान के तहत राष्ट्रपति को किसी बिल पर फैसले लेने का विवेकाधिकार मिला है तो फिर सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रपति के इए अधिकार में हस्तक्षेप कैसे कर सकता है?
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राष्ट्रपति ने SC को भेजा रेफरेंस
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने सुप्रीम कोर्ट के फैसले पर प्रतिक्रिया व्यक्त करते हुए संविधान के अनुच्छेद 143 के तहत एक एडवाइजरी ज्यूरिडिक्शन (संदर्भ) सुप्रीम कोर्ट को भेजा, जिसमें बिलों पर फैसला लेने की समयसीमा लागू करने की संवैधानिक वैधता को लेकर 14 सवाल पूछे गए। इसी मामले में आज 22 जुलाई 2025 को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई शुरू की है। पहली सुनवाई में ही सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार और राज्य सरकारों को नोटिस जारी किया। अब मामला सुप्रीम कोर्ट में लंबित है और फैसला राष्ट्रपति और राज्यपालों की शक्तियों को और स्पष्ट करेगा।