नई दिल्ली: कश्मीरी हिंदुओं और सिखों के नरसंहार और उनकी संपत्तियों की वापसी की जांच के लिए दायर एक और याचिका पर सोमवार को सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई से इनकार कर दिया। इससे पहले भी एक जनहित याचिका दायर की गई थी जिस पर कोर्ट ने सुनवाई से इनकार किया था।
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सोमवार को खारिज की गई याचिका को आशुतोष टपलू ने दायर किया था। आशुतोष के पिता टीकालाल टपलू की 1989 में जेकेएलएफ से जुड़े आतंकवादियों ने हत्या कर दी थी। याचिकाकर्ता की ओर से पेश सीनियर वकील गौरव भाटिया ने कहा कि उनके मुवक्किल न्याय पाने के लिए 30 साल से दौड़ रहे थे।
याचिकाकर्ता के पिता की आतंकियों ने की थी हत्या
भाटिया ने कहा कि याचिका एक ऐसे व्यक्ति के बेटे की है, जिसकी जेकेएलएफ के आतंकियों ने हत्या की गई थी। उन्होंने कहा कि हत्या के बाद से मेरे मुवक्किल को मृत्यु प्रमाण पत्र भी नहीं मिला है।
भाटिया ने अपने तर्कों में कहा कि 1984 के सिख विरोधी दंगों से उत्पन्न मामलों को 30 से अधिक वर्षों के बाद अदालत के आदेशों के बाद फिर से खोला गया था, लेकिन कश्मीर के मामलों में राहत नहीं मिल रही है।
सीनियर वकील ने टारगेट किलिंग का उदाहरण दिया
उन्होंने 1989-90 में कश्मीरी हिंदुओं और सिखों की टारगेट किलिंग के पांच अलग-अलग उदाहरणों का उल्लेख किया, जिसमें एक जज भी शामिल थे, जिनकी हत्या जेकेएलएफ से जुड़े दो आतंकवादियों को दोषी ठहराए जाने के बाद गोली मार कर की गई थी।
जस्टिस बीआर गवई और जस्टिस सीटी रविकुमार की पीठ ने कहा कि हमें अपने उच्च न्यायालयों पर भरोसा है। आप हाई कोर्ट जा सकते हैं। पीठ ने कहा, “हम एक ही मुद्दे पर दो याचिकाओं के बीच भेदभाव नहीं कर सकते। हमने हम नागरिकों की भी एक याचिका खारिज कर दी थी।”
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अदालत ने वकील की इस दलील को भी खारिज कर दिया कि कश्मीर के हालात ने उन्हें वहां याचिका दायर करने से रोक दिया था। पीठ ने कहा, “अब हम राजनेताओं के बयान देखते हैं कि कश्मीर में स्थिति अच्छी है। आप हाई कोर्ट का रुख कर सकते हैं।”
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