---विज्ञापन---

एससी-एसटी के कोटे में कोटा! राज्यों के पास सब-कैटेगिरी बनाने का अधिकार, कोर्ट ने 5 जजों की बेंच का फैसला पलटा

Supreme Court on SC/ST Reservation Sub-Classification: सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में स्पष्ट किया है कि अनुसूचित जाति के तहत आने वाली किसी भी जाति को आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता है।

Edited By : News24 हिंदी | Updated: Aug 1, 2024 12:36
Share :
एससी-एसटी कोटा में सब-कैटेगिरी पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है।
एससी-एसटी कोटा में सब-कैटेगिरी पर सुप्रीम कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है।

SC ST Reservation: सुप्रीम कोर्ट ने अनुसूचित जाति (SC) और अनुसूचित जनजाति (ST) के आरक्षण में कोटा बनाने के मामले में बड़ा फैसला सुनाया है। कोर्ट ने कहा है कि जनजाति के कोटे में भी कोटा हो सकता है। चीफ जस्टिस की अगुवाई वाली सात सदस्यों की बेंच ने 2004 के सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच का फैसला पलट दिया है। चिन्नैया केस में कोर्ट ने 2004 में अनुसूचित जातियों के बीच कोटे में कोटा के प्रावधान को खारिज कर दिया था।

ये भी पढ़ेंः नीतीश सरकार को सुप्रीम कोर्ट से लगा झटका! आरक्षण बढ़ाने के मामले पर सुनाया बड़ा फैसला

---विज्ञापन---

सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि अनुसूचित जाति (SC) एक सजातीय ग्रुप नहीं है और सरकारें इसके 15 प्रतिशत के आरक्षण में ज्यादा उत्पीड़न और शोषण का सामना करने वाली जातियों को फायदा पहुंचाने के लिए इसमें उप-वर्ग बना सकती हैं।

कोर्ट ने 5 जजों की बेंच का फैसला पलटा

चीफ जस्टिस डीवाई चंद्रचूड़, जस्टिस बीआर गवई, जस्टिस विक्रम नाथ, जस्टिस बेला एम. त्रिवेदी, जस्टिस पंकज मित्तल, जस्टिस मनोज मिश्रा, जस्टिस सतीश सी. शर्मा की बेंच ने सुप्रीम कोर्ट के 2004 के फैसले को पलट दिया है। 2004 के चिन्नैया केस में शीर्ष कोर्ट ने अनुसूचित जाति के आरक्षण में सब-कैटेगिरी के खिलाफ अपना फैसला दिया था।

---विज्ञापन---

ये भी पढ़ेंः सवाल एक और जवाब दो! क‍िसे मानें सही, क‍िसे गलत? जानें आज सुप्रीम कोर्ट में क्‍या हुआ

कोर्ट ने कहा कि अनुसूचित जातियों के बीच सब कैटेगिरी उनके उत्पीड़न के आधार पर होनी चाहिए। इसका प्रावधान राज्य शैक्षणिक संस्थानों, सरकारी नौकरियों में उनके प्रतिनिधित्व से जुड़े डाटा के आधार पर कर सकते हैं।

सात जजों की बेंच ने 6-1 के बहुमत से अपना फैसला सुनाया है। हालांकि जस्टिस बेला त्रिवेदी ने इस पर अपनी सहमति नहीं जताई। सुप्रीम कोर्ट ने अपने फैसले में यह स्पष्ट किया कि किसी भी राज्य द्वारा अनुसूचित जाति की किसी भी जाति को आरक्षण के लाभ से वंचित नहीं किया जा सकता।

कोर्ट ने कहा कि कोटे में कोटा असमानता के खिलाफ नहीं है। राज्य सरकारें अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों में सब-कैटेगिरी बना सकती हैं। हालांकि राज्यों का यह फैसला न्यायिक समीक्षा के अधीन होंगी।

सुप्रीम कोर्ट ने किस मामले पर की सुनवाई

1975 में पंजाब सरकार ने आरक्षित सीटों को दो श्रेणियों में बांटकर अनुसूचित जाति के लिए आरक्षण नीति पेश की थी। एक वाल्मिकी और मजहबी सिखों के लिए और दूसरी बाकी अनुसूचित जातियों के लिए। 30 साल तक यह नियम चलता रहा। लेकिन 2006 में इस मामले पर पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने सुनवाई की। सुनवाई के दौरान ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य मामले में सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया गया। पंजाब सरकार का फैसला रद्द हो गया। चिन्नैया फैसले में कोर्ट ने कहा था कि अनुसूचित जाति की कैटेगिरी में सब-कैटेगिरी की अनुमति नहीं है, क्योंकि यह समानता के अधिकार का उल्लंघन है।

पंजाब सरकार ने 2006 में वाल्मिकी और मजहबी सिखों को फिर से कोटा देने के लिए नया कानून बनाया। इसे भी हाईकोर्ट में चुनौती दी गई। कोर्ट ने इसे भी रद्द कर दिया। फिर मामला सुप्रीम कोर्ट पहुंचा। पंजाब सरकार ने 1992 के सुप्रीम कोर्ट के फैसले का हवाला दिया। इंद्रा साहनी बनाम भारत संघ के फैसले में अन्य पिछड़ा वर्ग के भीतर सब-कैटेगिरी बनाने की अनुमति थी। पंजाब सरकार का तर्क था कि अनुसूचित जाति के भीतर भी इसकी अनुमति होनी चाहिए।

2020 में सुप्रीम कोर्ट की पांच जजों की बेंच ने पाया कि ईवी चिन्नैया बनाम आंध्र प्रदेश राज्य के फैसले पर फिर से विचार किया जाना चाहिए। इसके बाद सीजेआई की अगुवाई में सात जजों की बेंच का गठन किया गया। जनवरी 2024 में सुप्रीम कोर्ट ने तीन दिनों तक मामले में दलीलें सुनीं और उसके बाद फैसला सुरक्षित रख लिया।

HISTORY

Written By

News24 हिंदी

First published on: Aug 01, 2024 11:10 AM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.

संबंधित खबरें