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एससी-एसटी के आरक्षण पर बढ़ता घमासान, माया-तेजस्वी ने की नौवीं अनुसूची की बात, क्या है सुप्रीम कोर्ट का स्टैंड

SC-ST Reservation Sub-Categorisation News: एससी-एसटी के आरक्षण में सब कैटेगिरी के सवाल पर राजनीतिक दलों की प्रतिक्रिया आने लगी है। इस बीच मायावती ने सोशल मीडिया पर कहा कि आखिर बीजेपी-कांग्रेस की सरकारों ने आरक्षण को नौवीं अनुसूची में क्यों नहीं डाला।

Author Edited By : News24 हिंदी Updated: Aug 3, 2024 12:03
मायावती और तेजस्वी यादव ने आरक्षण को नौवीं अनुसूची में डालने की मांग की है।
मायावती और तेजस्वी यादव ने आरक्षण को नौवीं अनुसूची में डालने की मांग की है।

SC-ST Reservation Sub-Categorisation News: अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के आरक्षण में सब-कैटेगिरी पर सुप्रीम कोर्ट के फैसले ने राजनीतिक तूफान को जन्म दे दिया है। बहुजन समाज पार्टी की नेता मायावती ने राजनीतिक विपक्षियों की आलोचना करते हुए सवाल किया है कि आखिर केंद्र में शासन करने वाली पार्टियों ने आरक्षण को नौवीं अनुसूची में क्यों नहीं डाला।

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मायावती ने सोशल मीडिया पर पोस्ट करते हुए कहा कि एससी, एसटी और ओबीसी बहुजनों के प्रति कांग्रेस और भाजपा की सरकारों का रवैया उदारवादी रहा है, सुधारवादी नहीं। दोनों पार्टियां इनके सामाजिक परिवर्तन और आर्थिक मुक्ति की पक्षधर नहीं हैं। वरना इन लोगों ने आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में डालकर इसकी सुरक्षा जरूर की होती।

समाजवादी के मुख्य प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने कहा कि पार्टी क्रीमीलेयर की व्यवस्था को जायज नहीं मानती है। वह आरक्षण में किसी भी तरह के बंटवारे को सही नहीं मानती है।

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तेजस्वी यादव ने भी बिहार में बढ़े हुए आरक्षण को रद्द किए जाने के फैसले पर प्रतिक्रिया देते हुए कहा कि तमिलनाडु की तर्ज पर बिहार में बढ़े हुए आरक्षण को संविधान की 9वीं अनुसूची में डाला जाए। ताकि इससे कोई छेड़खानी न हो पाए।

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ऐसे में सवाल उठता है कि आखिर ये नेता आरक्षण को नौवीं अनुसूची में डालने की मांग क्यों कर रहे हैं?

क्या है नौवीं अनुसूची

नौवीं अनुसूची केंद्र और राज्य सरकार के कानूनों की एक सूची है। इस सूची को न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती। इसे संविधान के पहले संशोधन के जरिए 1951 में जोड़ा गया था। नौवीं अनुसूची में पहले संशोधन के जरिए 13 कानूनों को जोड़ा गया था। बाद में विभिन्न संशोधनों को भी इसमें शामिल किया गया। नौवीं अनुसूची में इस समय 284 कानून शामिल हैं।

नौवीं अनुसूची को अनुच्छेद 31बी के तहत बनाया गया था। इसे अनुच्छेद 31ए के साथ सरकार द्वारा कृषि सुधार से संबंधित कानूनों की रक्षा करने और जमींदारी प्रथा को समाप्त करने के लिए लाया गया था। अनुच्छेद 31ए कानून के उपबंधों को सुरक्षा प्रदान करते है, जबकि अनुच्छेद 31बी विशिष्ट कानूनों या अधिनियमों को सुरक्षा प्रदान करता है। अनुसूची के तहत संरक्षित कानून कृषि और भूमि से संबंधित हैं। इसके साथ ही सूची में अन्य विषय भी शामिल हैं।

अनुच्छेद 31बी से जुड़ा एक पहले से चला आ रहा नियम है। यदि कानूनों को असंवैधानिक घोषित किए जाने के बाद नौवीं अनुसूची में शामिल किया जाता है तो उन्हें उनकी स्थापना के बाद से अनुसूची में शामिल माना जाता है।

नौवीं अनुसूची यानी अनुच्छेद 31बी न्यायिक समीक्षा के दायरे से बाहर है। यानी इसे कोर्ट में चैलेंज नहीं किया जा सकता। लेकिन सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि नौवीं अनुसूची में सूचीबद्ध कानून भी समीक्षा के दायरे में होंगे, यदि वे मौलिक अधिकारों का उल्लंघन करते होंगे।

क्या नौवीं अनुसूची के कानून न्यायिक जांच के दायरे से बाहर हैं?

आई आर कोल्हो बनाम तमिलनाडु राज्य के केस में 2007 में सुप्रीम कोर्ट ने यह माना था कि 24 अप्रैल 1973 के बाद लागू होने पर अनुच्छेद 14, 19 और 21 के तहत हर कानून का परीक्षण किया जाना चाहिए। इसके अतिरिक्त न्यायालय ने अपने फैसलों को बरकरार रखा और घोषित किया कि किसी भी अधिनियम को चुनौती दी जा सकती है। यदि वह संविधान की मूल संचरना के अनुरूप नहीं है तो न्यायपालिका द्वारा जांच के लिए खुला है। इसके अलावा कोर्ट ने यह भी कहा कि यदि नौवीं अनुसूची के तहत किसी कानून की संवैधानिक वैधता को पहले बरकरार रखा गया है तो भविष्य में इसे फिर से चुनौती नहीं दी जा सकती है।

First published on: Aug 03, 2024 12:03 PM

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