Ram Setu Adam’s Bridge: रामसेतु ब्रिज एक बार फिर सुर्खियों में है, क्योंकि इसे लेकर सुप्रीम कोर्ट में सुनवाई हुई है और सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को नोटिस जारी करके जवाब मांग लिया है। मामला रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने का है, जिसकी मांग करते हुए पूर्व राज्यसभा सांसद सुब्रमण्यम स्वामी ने याचिका दायर की हुई है। जस्टिस विक्रम नाथ और संदीप मेहता की बेंच मामले की सुनवाई कर रही है और केंद्र सरकार को 4 हफ्ते में जवाब देने का कहा गया है।
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सुब्रमण्यम स्वामी की क्या है मांग?
सुब्रमण्यम स्वामी ने सबसे पहले साल 2007 में रामसेतु समुद्रम प्रोजेक्ट के खिलाफ याचिका दायर की थी, जिस पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार ने जवाब मांगा था। अपना पक्ष रखते हुए केंद्र सरकार की ओर से सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने सुप्रीम कोर्ट को बताया कि संस्कृति मंत्रालय ने रामसेतु को राष्ट्रीय धरोहर स्मारक घोषित करने की प्रक्रिया शुरू की हुई है और इसे जल्दी ही पूरा कर दिया जाएगा। 19 जनवरी 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार को एक निर्देश दिया।

सुब्रमण्यम स्वामी ने पूछे ये सवाल
सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से कहा कि वह रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने के मुद्दे पर जल्द फैसला ले। इसी आदेश का हवाला देते हुए सुब्रमण्यम स्वामी ने याचिका डालकर मांग की कि सुप्रीम कोर्ट संस्कृति मंत्रालय से पूछे कि रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित करने की प्रक्रिया का क्या हुआ? क्यों अभी तक रामसेतु को राष्ट्रीय स्मारक घोषित नहीं किया गया है? रामसेतु करोड़ों हिंदुओं की अटूट आस्था का प्रतीक है और इसकी अनदेखी श्रद्धालुओं की धार्मिक भावनाओं से खिलवाड़ है।
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कहां है और क्या है रामसेतु?
रामसेतु एक समुद्र पुल है। भारत के लिए धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व रखता है, जो तमिलनाडु के रामेश्वर में स्थित है। रामेश्वरम और धनुषकोडी ज्योतिर्लिंग मंदिर और रामसेतु के कारण मशहूर पर्यटन स्थल है। धनुष्कोडी से रामसेतु नजर आता है, लेकिन रामसेतु का कुछ ही हिस्सा दिखाई देता है। बाकी हिस्सा समुद्र में डूबा है, जिसकी सरंचना अमेरिका का स्पेस एजेंसी नासा की सैटेलाइट इमेज में नजर आता है। हालांकि साइंटिफिक रिसर्च रामसेतु को मानव निर्मित पुल साबित करती हैं, लेकिन नासा ने इसकी पुष्टि नहीं की है।
राम ने समुद्र लांघने को बनाया था
रामसेतु को रामेश्वरम से श्रीलंका के मन्नार द्वीप को जोड़ने वाला पुल बताया जाता है, जिसे भगवान राम ने सीता हरण करने वाले रावण की लंका पर चढ़ाई करने के लिए समुद्र को पार करने के लिए बनाया था। उनकी वानर सेना में शामिल नल और नील नामक वानरों ने इसे बनाया था। इसलिए से ‘नल सेतु’ भी कहा जाता है। भारत में इस पुल को रामसेतु कहते हैं और दुनियाभर में इसे एडम्स ब्रिज (आदम का पुल) कहा जाता है। माना जाता है कि पुल चूने के पत्थरों और चट्टानों से बनाया गया था, लेकिन तूफानों से बीच का हिस्सा टूट गया है।
#adam_benchekroun 's Bridge, or #RamSetu, stands as a testament to the intersection of natural history, mythology, and cultural heritage. This remarkable geological structure, a chain of limestone shoals, stretches across the narrow Palk Strait, linking the southeastern coast of… pic.twitter.com/9opxvfYV33
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सेतुसमुद्रम परियोजना भी लटकी
रामसेतु की लंबाई करीब 30 मील (48 किलोमीटर) मानी जाती है, जो मन्नार की खाड़ी और पाक जलडमरूमध्य को विभाजित करता है। साल 1993 में नासा ने रामसेतु की सैटेलाइट तस्वीरें जारी करके चौंका दिया था। भारत सरकार ने रामसेतु के कुछ हिस्से को तोड़ने का प्रस्ताव दिया था, ताकि भारत और श्रीलंका के बीच शिप के जरिए आवागमन का एक और रास्ता बनाया जा सके। इसके लिए सेतुसमुद्रम परियोजना बनाई गई थी, लेकिन हिंदू संगठनों ने रामसेतु को तोड़ने की बात को धार्मिक भावनाओं पर चोट करार देकर प्रोजेक्ट का विरोध किया था। इसलिए प्रोजेक्ट पर आज तक फैसला नहीं हुआ है।