Ram Bhagat Paswan Bihar: संघ लोक सेवा आयोग (UPSC) की परीक्षा पास करके देश के बड़े पद पर बैठना हर किसी का सपना होता है। इस सपने को साकार करने के लिए लोग दिन-रात मेहनत करते हैं। मगर क्या होगा अगर ये सपना सच हो जाए और सफलता के आखिरी पड़ाव से पहले आपको सांसद बनने का मौका मिले? IAS और सांसद में से किसी एक को चुनना काफी कन्फ्यूजिंग सवाल है। ऐसी ही एक दुविधा थी बिहार की मशहूर राजनीतिक शख्सियत राम भगत पासवान के सामने…
UPSC का मेन्स पास किया
बिहार के दरभंगा जिले में रहने वाले राम भगत पासवान एक मध्यमवर्गीय परिवार से ताल्लुक रखते थे। उन्होंने यीपीएससी की परीक्षा देने का फैसला किया और कड़ी मेहनत के बाद मेन्स का एग्जाम पास कर लिया। भगत जी को इंटरव्यू के लिए दिल्ली से फोन आया। वो इंटरव्यू देने के लिए दिल्ली पहुंच गए। लेकिन उन्हें क्या पता था कि यहां से उनकी किस्मत पलटने वाली है।
सांसद का टिकट लेकर लौटे
दरअसल 1970 में दरभंगा से दिल्ली पहुंचने के बाद राम भगत पासवान की मुलाकात तीन पूर्व मंत्रियों से हुई। ललित नारायण मिश्रा, विनोद झा और नागेंद्र झा ने भगत जी को इंटरव्यू देने से रोक दिया। उन्होंने भगत जी को संसदीय चुनाव लड़ने का ऑफर दिया। इस ऑफर ने भगत जी को कश्मकश में डाल दिया। आखिर में वो सांसद का टिकट लेकर बिहार वापस लौट आए और चुनाव प्रचार में जुट गए।
पत्नी के पैसों पर लड़ा चुनाव
चुनावी मैदान में उतरने से पहले राम भगत पासवान डाकघर में पोस्टमास्टर की नौकरी करते थे। उनकी महीने भर की तनख्वाह 150 रुपए थी। हालांकि चुनाव लड़ने के लिए उन्हें ये नौकरी छोड़नी पड़ी। ऐसे में उनका परिवार भगत जी की पत्नी पर निर्भर हो गया। राम भगत पासवान की पत्नी विमला देवी स्कूल में प्रधानाध्यापक थीं और उनकी सैलरी मात्र 75 रुपए थी।
साइकिल से मांगा वोट
चुनाव प्रचार करने के लिए राम भगत पासवान साइकिल की मदद लेते थे। वो साइकिल से लोगों के घर-घर जाकर वोट मांगते थे। आखिर में उन्हें उनकी मेहनत का फल मिला और 1971 के आम चुनाव में उन्होंने रोसड़ा से जीत हासिल की। पांच साल सांसद रहने के बाद 1977 में फिर से लोकसभा चुनाव हुए। हालांकि इसी बीच देश आपातकाल से उभरा था। जनता कांग्रेस से काफी नाराज थी। ऐसे में राम भगत पासवान को भी हार का सामने करना पड़ा।
राज्यसभा सांसद बने
1980 में कांग्रेस पार्टी के टिकट से राम भगत पासवान राज्यसभा सांसद बने। 1984 तक सांसद पद पर रहने के बाद उन्हें लोकदल के उम्मीदवार रामसेवक हजारी ने हरा दिया। 1989 और 1996 के चुनाव में भगत जी ने फिर से किस्मत आजमाई और आम चुनाव का हिस्सा बने। लेकिन दोनों बार उन्हें शिकस्त मिली और उन्होंने सियासी गलियारों को अलविदा कह दिया।
2010 में कहा अलविदा
राम भगत पासवान के तीन बेटे और दो बेटियां हैं। 12 जुलाई 2010 को राम भगत पासवान का निधन हो गया। हालांकि भगत जी के गुजरने के बाद उनके परिवार ने राजनीति से कोई वास्ता नहीं रखा। उनकी पत्नी और बच्चे सियासत से कोसों दूर हैं।