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शाही स्नान क्या? जो महाकुंभ के पुण्य के लिए जरूरी, नाम बदलने की मांग ने पकड़ा जोर

Shahi Snan Name Controversy before Prayagraj Mahakumbh 2025: प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होने से पहले शाही स्नान का नाम बदलने की मांग हो रही है। आखिर शाही स्नान क्या है? इसे कब और क्यों शुरू किया गया था? इस बार महाकुंभ में शाही स्नान का आयोजन कब किया जाएगा? आइए जानते हैं इस रिपोर्ट में...

Author Edited By : Sakshi Pandey Updated: Sep 6, 2024 13:02
Shahi Snan Mahakumbh 2025

Shahi Snan of Mahakumbh 2025: उत्तर प्रदेश के प्रयागराज में महाकुंभ का आयोजन होने वाला है। अगले साल की शुरुआत के साथ संगम नगरी में महाकुंभ का आगाज होगा। हालांकि महाकुंभ 2025 से पहले शाही स्नान विवादों में घिर गया है। कई संतों ने इसका नाम बदलने की मांग की है। संतों का कहना है कि शाही स्नान का नाम बदलकर सनातन धर्म से जुड़ा कोई नया नाम रखना चाहिए।

शाही स्नान क्या है?

साधु-संतों में शाही स्नान का काफी महत्व है। हर महाकुंभ और अर्धकुंभ में शाही स्नान का आयोजन किया जाता है। इस दौरान साधु-संतों की भव्य परेड निकलती है, जिसके बाद वो संगम में डुबकी लगाकर मोक्ष का मार्ग प्रशस्त करते हैं। साधु, संतों और नागा बाबाओं के कुल 13 अखाड़े इस शाही स्नान में हिस्सा लेते हैं। माघ महीने में चलने वाले महाकुंभ की शुभ तिथियों के अनुसार सभी 13 अखाड़ों को शाही स्नान का दिन और समय आंवटित किया जाता है।

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कब-कब होंगे शाही स्नान

बता दें कि महाकुंभ 2025 की शुरुआत 13 जनवरी से होगी, जो कि 26 फरवरी को खत्म होगा। इस दौरान कुल 5 शाही स्नान के दिन तय किए गए हैं। 14 जनवरी (मकर संक्रांति), 29 जनवरी (मौनी अमावस्या), 3 फरवरी (बसंत पंचमी), 12 फरवरी (माघी पूर्णिमा) और 26 फरवरी (महा शिवरात्रि) के मौके पर संगम नगरी में शाही स्नान देखने को मिलेगा।

कैसे शुरू हुई शाही स्नान की परंपरा?

शाही स्नान की परंपरा का उल्लेख हिंदू धर्म में कहीं नहीं मिलता है। ऐतिहासिक मान्यताओं के अनुसार इस परंपरा की शुरुआत 14-16 वीं शताब्दी के बीच हुई थी। इस दौरान देश पर मुगल शासकों का राज चल रहा था। साधुओं और मुगलों के बीच अक्सर अनबन देखने को मिलती थी। इसके समाधान के लिए एक बैठक बुलाई गई, जिसमें दोनों ने एक-दूसरे के धर्मों का सम्मान करने की कसमें खाईं। इस नई पहल की शुरुआत शाही स्नान से हुई।

पहली बार कब हुआ शाही स्नान?

इसी दौरान प्रयागराज के संगम तट पर महाकुंभ का आयोजन हुआ। ऐसे में साधुओं और संतों को सम्मान देने के लिए हाथी और घोड़ों पर बिठाकर उनकी पेशवाई निकाली गई, जिसके बाद उन्होंने संगम में स्नान किया। तभी से इसे शाही स्नान के नाम से जाना जाने लगा। शाही स्नान की ये परंपरा सदियों से चली आ रही है। हर बार महाकुंभ के दौरान देश के सभी साधु-संत संगम में डुबकी लगाकर शाही स्नान का लुत्फ उठाते हैं।

क्या होगा शाही स्नान का नया नाम?

हालांकि अब कई संत शाही स्नान का नाम बदलने की मांग कर रहे हैं। उनका कहना है कि ‘शाही’ शब्द का ताल्लुक सनातन धर्म से नहीं है। इसलिए इसका नाम बदलकर राजसी स्नान, दिव्य स्नान या अमृत स्नान किया जाना चाहिए। अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद के अध्यक्ष महंत रवींद्र पुरी का कहना है कि प्रयागराज में अखाड़ा परिषद की अगली बैठक के दौरान इस मांग पर विचार किया जाएगा।

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First published on: Sep 06, 2024 01:02 PM

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