---विज्ञापन---

भारत का ‘शक्ति मंत्र: दुर्गा, शिव, राम और कृष्ण ने शक्ति से क्या साधना सीखी?

Bharat Ek Soch: भारतीय परंपरा में शुरू से ही लोगों के मन में ये बात बैठाने की कोशिश की गई है कि जो जितना शक्तिशाली होता है उतना ही विनम्र होता है।

Edited By : Anurradha Prasad | Updated: Oct 16, 2023 10:16
Share :
news 24 editor in chief anuradha prasad special show
news 24 editor in chief anuradha prasad special show

Bharat Ek Soch: क्या आपने कभी सोचा है कि शक्ति का मतलब क्या होता है? प्राचीन काल से मध्यकाल तक आमतौर पर ताकतवर उसे माना जाता था, जिसके पास सेना बड़ी होती थी…लोकतंत्र में शक्तिशाली उसे माना जाता है – जिसके पास लोगों का अधिक से अधिक समर्थन हो। आर्थिक क्षेत्र में पावरफुल वो माना जाता है- जिसका बैंक बैलेंस और टर्नओवर बड़ा हो। सोशल मीडिया के दौर में ताकतवर उसे माना जाता है- जिसके पास फॉलोअर्स ज्यादा हों। अब सवाल उठता है कि आखिर ताकत के कितने रूप होते हैं..हमारे देवी-देवताओं के जरिए समाज में शक्ति को किस तरह से परिभाषित करने की कोशिश हुई है?

नौ रूपों में समाज के लिए संदेश

---विज्ञापन---

नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है…देवी दुर्गा को भारत में शक्ति और पापियों का नाश करने वाली देवी का रूप माना जाता है, जिनकी सवारी शेर है…जिनके कई हाथों में अलग-अलग तरह के अस्त्र-शस्त्र हैं। लेकिन, वो अपने नौ रूपों में समाज के लिए किस तरह का संदेश छोड़ रही हैं … भारत में संभवत: सबसे ज्यादा पूजे-जाने वाले महादेव किस तरह शक्ति के देवता होते हुए भी संहार में सृजन की राह दिखाते हैं…त्रेतायुग के राम और द्वापर युग के श्रीकृष्ण ने दुनिया को शक्ति का कौन सा सूत्र दिया ? आधुनिक युग में महात्मा गांधी के लिए शक्ति के मायने क्या रहे? पंडित जवाहरलाल नेहरू, इंदिरा गांधी, राजीव गांधी, अटल बिहारी वाजपेयी और नरेंद्र मोदी ने किस रास्ते आगे बढ़ने में भारत की शक्ति देखा? आज ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे – खास कार्यक्रम भारत का शक्ति मंत्र में।

भारत का ‘शक्ति मंत्र’

---विज्ञापन---

अक्सर आपने सुना होगा कि विजेता हमेशा अपने तरीके से इतिहास लिखते हैं। दुनियाभर के इतिहास में सीमाओं के विस्तार के लिए युद्ध की अनगिनत कहानियां भरी पड़ी हैं … तलवारों की नोक पर साम्राज्य स्थापित करने और गिराने को ताकत का पैमाना माना गया। ऐसे लोगों को नायक की तरह पेश किया गया, जिन्होंने तलवार के दम पर इतिहास और भूगोल बदलने की कोशिश की। लेकिन, भारतीय परंपरा शक्ति यानी पावर को किस तरह से देखती रही है…क्या कभी आपने इस बारे में गंभीरता से सोचा है। भारत में जीवन दर्शन अहं ब्रह्मास्मि का है… जिसमें आदमी को शक्तिशाली बनाने और शक्तिशाली बनने का रास्ता दिखाया गया है। इसी दर्शन से संभवत: देवी-देवताओं का मूर्ति रूप भी निकला है। नवरात्रि में भारत के करोड़ों लोग देवी दुर्गा की पूजा करते हैं..उन्हें शक्ति की देवी मानते हैं। लेकिन, देवी दुर्गा अपने नौ रूपों के जरिए समाज को किस तरह की शक्ति हासिल करने की राह दिखाती हैं। देवी दुर्गा के नौ रूपों की आधुनिक व्याख्या क्या होनी चाहिए? एक व्याख्या ये भी हो सकती है कि देवी दुर्गा समाज के सभी वर्गों के स्त्री और पुरुष को स्वाभिमानी, सशक्त, ज्ञानी और आत्मनिर्भर बनने का संदेश छोड़ गयी हैं ।

सृजन के लिए हमेशा तत्पर रहने का मंत्र

देवी दुर्गा अपने पहले रूप में शैलपुत्री हैं,इसके जरिए वो किसी भी स्त्री या पुरुष को स्वाभिमानी और लक्ष्य के प्रति अटल रहने की प्रेरणा देती हैं…दूसरे रूप में ब्रह्मचारिणी बन जाती हैं। इसमें वो लोगों को अनुशासित रहने और किसी भी परिस्थिति में लक्ष्य से नहीं भटकने का रास्ता दिखाती हैं। तीसरे रूप में चंद्रघंटा हैं, जिसमें वो सृजन के लिए हमेशा तत्पर रहने का मंत्र देती हैं। उसके बाद कूष्माण्डा कहलाई..जिसमें शिव की पत्नी बन कर जीवन का आनंद लेती हैं…देवी इस रूप में संदेश देती हैं कि सृष्टि चलाने और समाज को आगे बढ़ाने के लिए गृहस्थ जीवन कितना जरूरी है। पांचवें रूप में स्कंदमाता बन जाती हैं..जिसमें तपस्वी शिव को सभ्यता के अनुकूल बनाती हैं। उन्हें और गृहस्थ शिव में बदल देती हैं। लेकिन, ये सभी स्थितियां तभी कायम रह सकती हैं – जब शांति हो, बुरी शक्तियां समाज से दूर रहे। ऐसी परिस्थितियों से निपटने के लिए शक्तिशाली होने की जरूरत पड़ती है.,.ऐसे में अपने अगले रूप में देवी हाथों में अस्त्र-शस्त्र लिए शेर पर सवार होकर कात्यायनी बन जाती हैं। इसमें स्त्री-पुरुष के बीच भेद करने वाली सोच को दफ्न करने संदेश है…क्योंकि, सभी देवताओं को हराने वाले महिषासुर के वध के लिए देवी रूपी महिला आगे बढ़ती..अपने और प्रचंड रूप में वो कालरात्रि बन जाती हैं ।

 

श्रीराम मर्यादा में शक्ति का एहसास कराते हैं

शिव को शांति, संहार और सबके कल्याण का दूसरा नाम माना गया है…निराकार ब्रह्म में विश्वास रखने वाले उन्हें अपने-अपने तरीके से मानते हैं…शिव को सृष्टि का निर्माता और पालनहार मानते हैं। लेकिन, उनका जो रूप भारतीय परंपरा में आगे किया गया…उसमें वो सर्वशक्तिमान होते हुए भी त्याग में विश्वास करते हैं। समाज में समरसता और सबके साथ लेकर चलने का रास्ता दिखाते हैं….इसी तरह त्रेतायुग के श्रीराम मर्यादा में शक्ति का एहसास कराते हैं। शस्त्र होते हुए भी संयम और एक ऐसी व्यवस्था का रास्ता दिखाते हैं –जिसमें राजा के लिए मर्यादा की लक्ष्मण रेखा में ही समाज की शक्ति और खुशहाली का मंत्र छिपा है। इसी तरह द्वापर युग के श्रीकृष्ण हाथों में कभी बांसुरी तो कभी सुदर्शन धारण करते हैं । लेकिन, कर्म को शक्ति मानते हैं…संवाद के जरिए बड़ी-बड़ी समस्याओं को सुलझाने का रास्ता दिखाते हैं ।
पैकेज

एक-दूसरे के अस्तित्व को महत्व देते हैं

शिव परिवार में शेर और नंदी, मोर, नाग और चूहा सब साथ-साथ हैं। सबकी अपनी ताकत और मर्यादा है,विपरीत स्वभाव वाले जीव भी एक-दूसरे को डराते या धमकाते नहीं हैं … सब साथ-साथ रहते हैं। एक दूसरे से संवाद करते हैं और एक-दूसरे के अस्तित्व को महत्व देते हैं। सर्वशक्तिमान होते हुए भी शिव अहंकार से बिल्कुल दूर हैं। इसी तरह श्रीराम शस्त्र तो धारण करते हैं। लेकिन, भारतीय जनमानस में वो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं… वो एक अच्छे पुत्र, अच्छे पति, अच्छे भाई, अच्छे योद्धा, अच्छे मित्र, अच्छे राजा हैं…हर रूप में श्री समाज में एक बहुत ही ऊंचा मानदंड स्थापित करते हैं।

शक्ति का आखिरी मकसद शांति

भारतीय परंपरा में शुरू से ही लोगों के मन में ये बात बैठाने की कोशिश की गई है कि जो जितना शक्तिशाली होता है – उतना ही विनम्र होता है…समाज को जोड़ने और आगे बढ़ाने के लिए त्याग करता है और शक्ति का आखिरी मकसद शांति है। इसी से सबकी समृद्धि की राह खुलती है। अगर देश में पूजे-जाने वाले देवी-देवताओं से आगे देखें तो आधुनिक काल में महात्मा गांधी ने सत्य और अहिंसा में शक्ति देखा …ये वो दौर था- जब बंदूक के दम पर दुनिया के ज्यादातर हिस्सों में संघर्ष चल रहा था । फौज के दम पर उपनिवेशों में शासन चलाया जा रहा था..ऐसे में महात्मा गांधी ने दुनिया को बता दिया कि सत्याग्रह और बिना हथियार के भी कैसे ब्रिटेन जैसी महाशक्ति को देश छोड़ने के लिए मजबूर किया जा सकता है । नैतिक बल से कैसे खून की प्यासी भीड़ को कंट्रोल में किया जा सकता है…इसी तरह, आजादी के बाद पंडित जवाहरलाल नेहरू ने समाज के आखिरी व्यक्ति के आंसू पोंछने को शक्ति समझा।

ये भी पढ़े-सबसे बड़ा खलनायक: क्या ये दो धर्मों का झगड़ा है या सभ्यताओं का टकराव?

किसी भेदभाव वाली व्यवस्था को भारत कुबूल नहीं करेगा

समय चक्र के साथ शक्ति का मतलब आजाद भारत में बदलता रहा । पंडित नेहरू का दौर खत्म होने के बाद जब लाल बहादुर शास्त्री ने देश की कमान संभाली…तो उन्होंने लोगों के आंसू पोछने के साथ सरहदों की सुरक्षा को भी शक्ति के साथ जोड़ा । एक जंग भूख के खिलाफ लड़ी तो दूसरी सरहद की हिफाजत के लिए। शास्त्री जी ने आदर्शवादी कूटनीति को भारत की जरूरतों के हिसाब से व्यावहारिकता की ओर शिफ्ट कर दिया…तो इंदिरा गांधी ने दुनिया को बता दिया कि शक्ति का इस्तेमाल दूसरे देश के लोगों को अत्याचार से मुक्ति दिलाने के लिए भी हो सकता है। साल 1971 में बांग्लादेश का एक मुल्क के तौर पर वजूद में आना भारत की दुनिया के मंचों पर बढ़ते प्रभुत्व की बुलंद कहानी का एक बहुत ही चमकदार पन्ना है..वहीं, राजीव गांधी ने विज्ञान और तकनीक में आगे बढ़ने में शक्ति महसूस की तो अटल बिहारी वाजपेयी ने परमाणु परीक्षण कर दुनिया के बता दिया कि भारत किसी भी दबाव और प्रभाव से मुक्त होकर फैसला लेने में विश्वास करता है…अंतरराष्ट्रीय मंचों पर किसी भेदभाव वाली व्यवस्था को भारत कुबूल नहीं करेगा। वहीं, प्रधानमंत्री मोदी अपने मिशन के साथ देश के ज्यादा से ज्यादा लोगों को जोड़ने में शक्ति का एहसास करते हैं । इंदिरा गांधी से नरेंद्र मोदी तक आते-आते भी शक्ति के मायने बहुत बदल गए हैं ।

दूसरों का जीवन बेहतर बनाने का फलसफा

भले ही परिस्थितियों के हिसाब से भारत में शक्ति के मायने आम और खास दोनों के लिए बदलते रहे हैं…लेकिन, शक्ति का मूल मकसद हमेशा दूसरों का जीवन बेहतर बनाने का फलसफा ही देवी-देवताओं के रूप से लेकर राजनेता तक देते रहे हैं । शक्ति का सुंदर रूप इसमें छिपा है कि आम-ओ-खास अपने Power, Influence और Cherishma का इस्तेमाल कर समाज में मौजूद खाइयों को पाटने में कितनी दमदार भूमिका निभा पाता है।

HISTORY

Edited By

Anurradha Prasad

Edited By

Khushbu Goyal

First published on: Oct 15, 2023 09:03 PM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.

संबंधित खबरें