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दक्षिण भारत का दरवाजा टूटे बगैर संसद में 400 का आंकड़ा कैसे पार करेंगे पीएम मोदी?

Lok Sabha Election 2024: भारतीय संसद में चार सौ पार के आंकड़े को छूना एनडीए गठबंधन के लिए भी बहुत आसान नहीं है। इसे समझने के लिए हमें दक्षिण भारत की राजनीतिक स्थिति को समझना होगा।

Edited By : Amit Kumar | Updated: Feb 10, 2024 21:55
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PM Narendra Modi
PM मोदी के ल‍िए दक्ष‍िण भारत में जीत हास‍िल करना चुनौती होगी।

द‍िनेश पाठक, वर‍िष्‍ठ पत्रकार

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी (PM Narendra Modi) ने संसद में दिए भाषण में आबकी बार चार सौ पार (400 Seats for NDA) का नारा दिया है। मतलब उन्हें विश्वास है कि आगामी लोकसभा चुनाव (Lok Sabha Election 2024)में भाजपा 375 और एनडीए के सभी दल मिलकर चार सौ सीटें जीतकर संसद में अपना सर्वोच्च प्रदर्शन करेंगे। मोदी तीसरी बार पीएम बनने की ओर अग्रसर हैं, इसमें किसी को बहुत शक नहीं हो सकता है क्योंकि विपक्षी एकता की जो शुरुआत हुई थी, उसी के नेता नीतीश कुमार ने पलटी मारकर उसमें पलीता लगा दिया है। इंडिया गठबंधन से जुड़े कुछ और छोटे दल पलटी मार सकते हैं, ऐसी चर्चा आम है। चुनाव में कुछ महीने ही शेष हैं और कांग्रेस, टीएमसी, सपा, राजद, कम्युनिस्ट पार्टियाँ अभी तक सीटों को लेकर बातचीत को अंतिम रूप नहीं दे पाए हैं। ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि आखिर अबकी बार-चार सौ के नारे के जवाब में इंडिया गठबंधन क्या नारा लेकर सामने आता है?

भारतीय जनता पार्टी निश्चित ही उत्तर-मध्य-पश्चिम भारत में मजबूती से उभरी है। पर, दक्षिण अभी भी उसके लिए चुनौती है। तमिलनाडु, केरल, तेलंगाना, कर्नाटक और आंध्र प्रदेश में भाजपा कमजोर है। यद्यपि, पीएम मोदी ने दक्षिण भारतीय इन राज्यों को अपने पाले में करने को अथक प्रयास किए हैं। संभव है कि उन्हें इस बार पिछले चुनावों से कुछ ज्यादा कामयाबी भी मिले फिर भी चार सौ पार का आंकड़ा आसान नहीं लगता।

2019 में क‍ितनी सीटें म‍िलीं

साल 2019 के लोकसभा चुनाव में कांग्रेस-भाजपा, दोनों को दक्षिण भारत से 29-29 सीटें मिली थीं। भाजपा को थोक भाव में 25 सीट अकेले कर्नाटक से तो कांग्रेस को 20 सीटें अकेले कांग्रेस को मिली थीं। भारतीय जनता पार्टी को जिस कर्नाटक से 25 सीटें मिली थीं, वहां पिछले साल हुए चुनाव में कांग्रेस की स्पष्ट बहुमत की सरकार बनी है। उसे चार सीटें जिस तेलंगाना में मिली थीं। वहां हाल ही में कांग्रेस की सरकार पहली बार बनी है। कहा जाता है कि लोकसभा और विधान सभा चुनाव के मुद्दों में फर्क होता है फिर भी कांग्रेस शासित राज्य तो अपनी पार्टी को ज्यादातर सीटें देने को जान लगा देंगे। तमिलनाडु में जयललिता की पार्टी भाजपा से दूर होती हुई दिखाई दे रही है, तो कांग्रेस करुणानिधि की पार्टी की स्टालिन सरकार के साथ है। दक्षिण भारत के इन राज्यों में लोकसभा की कुल 130 सीटें आती हैं। भाजपा का पिछले चुनाव में तमिलनाडु, केरल और आंध्र प्रदेश में खाता भी नहीं खुला था और कांग्रेस केवल आंध्र प्रदेश में कुछ हासिल नहीं कर पाई थी। यद्यपि, आंध्र प्रदेश में चंद्र बाबू नायडू एनडीए का हिस्सा हो सकते हैं। उसका लाभ भाजपा को मिल सकता है।

पंजाब छोड़कर उत्तर भारत में बीजेपी की स्‍थित‍ि अच्‍छी

भारत में आमतौर पर 543 सीटों पर चुनाव होते आ रहे हैं। इनमें उत्तर प्रदेश से सर्वाधिक 80 एमपी चुनकर लोकसभा में आते हैं। भाजपा ने दूसरे बड़े राज्य महाराष्ट्र, बिहार, एमपी, राजस्थान को अपने पाले में करने की कोशिशें की हैं। नीतीश कुमार के पलटी मारने के बाद बिहार में एनडीए गठबंधन का पलड़ा भारी हुआ है। जिन राज्यों में हाल ही में विधान सभा चुनाव हुए हैं, वहां की स्थिति अच्छी मानी जा रही है। उत्तर भारत में पंजाब को छोड़कर भाजपा की स्थिति हर जगह बेहतर कही जा सकती है. उत्तर भारत में भाजपा का प्रदर्शन साल 2019 के चुनाव में भी शानदार रहा है. अगर वह पूरा प्रदर्शन भी इस चुनाव में दोहरा देती है तो भी बिना दक्षिण भारत से कुछ और सीटें जोड़े चार सौ का आंकड़ा पार करना एनडीए के लिए तथा अकेले 375 तक पहुंचना भाजपा के लिए आसान नहीं है. हां, अगर पांचों राज्यों में थोड़ी-थोड़ी सीटों पर भाजपा जीत दर्ज कर लेती है तो उसे आसानी होगी.

इन सीटों पर बढ़ा फोकस

चुनावी राजनीति के जानकार मानते हैं कि इस बार भाजपा केरल, तमिलनाडु, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना में कुछ निश्चित सीटों पर अपना फोकस बढ़ाया है. केरल में राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने भी अपनी ताकत झोंकी है। भाजपा संगठन भी वहां अपनी पैठ लगातार बना रहा है। ऐसा ही हाल तमिलनाडु का है। भाजपा वहां संगठन पर काम करती हुई दिखाई देती है। वह कुछ ही सीटों पर फोकस करने जा रही है। आंध्र प्रदेश में स्वतंत्र कोशिश के अलावा अगर चंद्र बाबू नायडू से बात बनती है तो एनडीए को यहाँ कुछ फायदा हो सकता है। कर्नाटक और तेलंगाना में भाजपा निश्चित मजबूती से लड़ेगी क्योंकि इन दोनों राज्यों से ही भाजपा के 29 संसद सदस्य लोकसभा पहुंचे थे।

यहां कांग्रेस भी कोई कसर नहीं छोड़ने जा रही है, क्योंकि राज्य में उसकी सरकारें हैं। विधान सभा चुनाव के बाद आने वाला लोकसभा चुनाव कांग्रेसी मुख्यमंत्रियों के लिए भी नाक का सवाल है। वहां चंद्रशेखर राव का दल बीआरएस भी शांत नहीं बैठा है। उनके हाथ से सत्ता अभी छिनी है। वे लोकसभा में जान लगा देंगे। यूं भी राव राष्ट्रीय राजनीति में रुचि ले रहे हैं। उन्होंने महाराष्ट्र में अपने संगठन का विस्तार किया है. विधान सभा चुनाव में इस बार वे महाराष्ट्र में भी अपनी जमीन तलाशेंगे।

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बीजेपी की कई योजनाएं

माना जा रहा है कि एनडीए के सभी घटक दल यह मान रहे हैं कि साल 2024 में उन्हीं की सरकार बनने जा रही है। मोदी ने संसद में भाजपा के कार्यकर्ताओं में उत्साह भरने और नया रिकॉर्ड बनाने को उत्साहित करने के लिए 375 का आंकड़ा अकेले छूने का लक्ष्य दिया है। भाजपा ने 2019 में अपना सर्वोच्च प्रदर्शन करते हुए तीन सौ का आंकड़ा पार किया था. पीएम के रूप में मोदी के पास बहुत कुछ ऐसा है, जिसके सहारे वे चार सौ का आंकड़ा पार करने का नारा दे चुके हैं। किसी से छिपा नहीं है कि 80 करोड़ लोगों तक मुफ़्त राशन, 50 करोड़ तक आयुष्मान कार्ड, लखपति दीदी योजना, घर-घर शौचालय, अपना मकान, 10 करोड़ से ज्यादा एलपीजी सिलिंडर, किसानों के खाते में सीधे हर साल छह हजार रुपये वर्षों से पहुंच रहे हैं। अपनी योजनाओं के जरिए भाजपा ने महिलाओं को बड़ी संख्या में अपनी ओर मोड़ा है। राम मंदिर निर्माण, महाकाल, काशी विश्वनाथ कारिडोर, ज्ञानवापी, कृष्ण जन्मभूमि के सहारे हिन्दू मतों का ध्रुवीकरण भाजपा की कुंजी है।

देखना रोचक होगा कि कुछ महीनों में ही होने जा रहे लोकसभा चुनाव में अगर मोदी के नारे के अनुरूप चार सौ का आंकड़ा एनडीए छूता है तो इसमें दक्षिण भारतीय राज्यों की भूमिका महत्वपूर्ण होगी। अगर वहां से अपेक्षित सपोर्ट नहीं मिला तो यह आंकड़ा छूना आसान नहीं होगा क्योंकि कुछ भी करके कांग्रेस भी खुद को 2019 में मिले 52 सीटों से आगे की सोच रही है। ऐसे में 2024 का रण रोचक होना तय है क्योंकि कांग्रेस के साथ ही ममता बनर्जी, लालू यादव, स्टालिन, वामपंथी दल भरसक भाजपा के रथ को रोकने की कोशिश करेंगे और अपने-अपने दलों के लिए ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतने की कोशिश भी होगी।

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First published on: Feb 09, 2024 10:10 AM

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