Modi government can increase national minimum wage committee will submit report: लोकसभा चुनाव से पहले केंद्र की मोदी सरकार एक बड़ा फैसला ले सकती है। यह फैसला है न्यूनतम मजदूरी को लेकर। सरकार यह तय कर सकती है कि देश के लोगों को कम से कम कितनी मजदूरी मिलेगी। न्यूनतम मजदूरी तय हो जाने के बाद किसी भी काम के लिए उससे कम पैसे नहीं मिलेंगे। 26 साल बाद अब न्यूनतम मजदूरी बढ़ने की उम्मीद है। साल 2017 में पहली बार न्यूतम मजदूरी में बदलाव किया गया था। उसके बाद इसमें बदलाव नहीं किया गया है। इसे बढ़ाने के लिए अब सरकार सिर्फ पैनल की सिफारिशों का इंतजार कर रही है।
द इकोनॉमिक टाइम्स की एक रिपोर्ट के मुताबिक देश में न्यूनतम वेतन बढ़ सकता है। अधिकारियों का अनुमान है कि 2021 से एसपी मुखर्जी के नेतृत्व वाली एक विशेषज्ञ समिति द्वारा निर्धारित अनुशंशा को इस साल अप्रैल-मई में होने वाले आगामी आम चुनावों से पहले लागू किया जा सकता है। सूत्रों के हवाले से बताया गया है कि जून 2024 तक तीन साल के कार्यकाल के लिए स्थापित समिति अपनी रिपोर्ट सौंपने वाली है। यह रिपोर्ट लगभग पूरी हो चुकी है और अंतिम रूप दिया जाने वाला है।
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50 करोड़ लोगों पर होगा असर
2021 में इसके लिए कमेटी बनाई गई थी। इसके अध्यक्ष एसपी मुखर्जी हैं। कमेटी को सिफारिशों के लिए जून 2024 तक का समय दिया गया था। अब देखना है कि कमेटी की रिपोर्ट कब आती है और केंद्र सरकार इसकी सिफारिशों को किस हद तक लागू करती है। बताया जा रहा है कि कमेटी की अंतिम दौर की बैठक होने वाली है। इसका प्रभाव भारत के 50 करोड़ लोगों पर पड़ेगा। देश में करोड़ों की संख्या में ऐसे वर्कर हैं जो बहुत कम कमाते हैं। उन्हें उनकी मेहनत के मुताबिक मजदूरी नहीं मिल पाती है। इसमें ज्यादातर असंगठित क्षेत्र में हैं।
बहुत कम है न्यूनतम मजदूरी
बता दें कि देश में इस समय न्यूनतम मजदूरी 176 रुपये प्रतिदिन है जो कि बहुत कम है। इतने कम पैसे में पूरे परिवार का गुजारा संभव नहीं है। एक बड़ी आबादी कम पैसे में गुजारा तो कर लेती है लेकिन जब परिवार पर स्वास्थ्य या अन्य किसी कारण से मुसीबत आती है तो बहुत परेशानी का सामना करना पड़ता है। यहां तक कि परिवार कर्च में चला जाता है। कई बार तो लोगों को अपना खेत, गहने या घर तक बेचने पर मजबूर होना पड़ता है।
राज्य सरकार मानने के लिए होंगे बाध्य
केंद्र सरकार द्वारा पहले तय की गई 176 रुपये की न्यूनतम मजदूरी के नियम को मानने के लिए राज्य सरकार बाध्य नहीं हैं। वे खुद भी इसे तय कर सकते हैं। अब अगर सरकार न्यूनतम मजदूरी तय करेगी तो इसे सभी राज्यों को मानना ही पड़ेगा। साल 2019 में अनूप सतपथि की अध्यक्षता में बनाई गई कमेटी ने न्यूनतम मजदूरी 375 रुपये करने की सिफारिश की थी लेकिन इसे लागू नहीं किया गया। इसकी वजह थी की इसे ज्यादा बताया जा रहा था। उसबार 176 रुपये प्रतिदिन और 375 रुपये प्रतिदिन के बीच एक संतुलन स्थापित करने की कोशिश होने की उम्मीद है।
कुछ राज्यों में कम तो कुछ में ज्यादा
लाइवमिंट की एक रिपोर्ट में बताया गया है कि वेतन संहिता 2019 के मुताबिक सरकार के पास अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों के लिए अलग-अलग न्यूनतम वेतन तय करने का अधिकार है। हालांकि अगर सरकार द्वारा निर्धारित न्यूनतम दरें मौजूदा न्यूनतम वेतन से अधिक हो तो यह मजदूरी कम करने पर रोक लगाता है। वर्तमान में कुछ राज्यों ने अपना दैनिक वेतन 176 रुपये से कम तय किया है , कुछ राज्यों में यह अधिक है। इस वजह से न्यूनतम वेतन में असमानताएं बढ़ रही हैं और देश के भीतर प्रवासी मजदूरों की आवाजाही पर असर पड़ रहा है।
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