नई दिल्ली: भारत में रहने वाले अमरजीत सिंह और पाकिस्तान में रहने वाली उनकी बहन कुलसुम अख्तर की कहानी किसी फिल्म से कम नहीं है। भाई-बहन की इस कहानी में जहां फिल्मी स्क्रीप्ट की तरह बिछड़ना और फिर किसी के जरिए 75 साल बाद मिलने वाला इमोशन है तो वहीं बंटवारे के समय कई परिवारों के एक-दूसरे से बिछड़ने वाला ड्रामा भी है।
दरअसल, कहानी पंजाब के जालंधर में रहने वाले सिख अमरजीत सिंह और पाकिस्तान फैसलाबाद में रहने वाली कुलसुम अख्तर की है। भारत-पाकिस्तान के बंटवारे के वक्त अमरजीत अपनी एक बहन के साथ जहां भारत में ही छूट गए थे जबकि उनके माता-पिता अपने अन्य बच्चों के साथ पाकिस्तान चले गए। उस वक्त कुलसुम का जन्म भी नहीं हुआ था।
बुधवार को पाकिस्तान के पंजाब प्रांत के करतारपुर स्थित गुरुद्वारा दरबार साहिब में 75 सालों बाद अमरजीत सिंह की अपनी बहन कुलसुम अख्तर से मुलाकात हुई। अमरजीत सिंह वीजा के साथ अटारी-वाघा सीमा से पाकिस्तान पहुंचे थे, जबकि उनकी बहन 65 साल की कुलसुम फैसलाबाद से अपने भाई से मिलने आई थी। दोनों की जब मुलाकात हुई तो उन्होंने एक-दूसरे को गले लगाया और दोनों कुछ देर तक रोते रहे। कुलसुम अख्तर अपने बेटे शहजाद अहमद और परिवार के अन्य सदस्यों के साथ अमरजीत से मिलने के लिए फैसलाबाद से आई थी।
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बंटवारे के बाद ऐसे बढ़ती है कहानी
पाकिस्तान के एक्सप्रेस ट्रिब्यून से बात करते हुए कुलसुम ने कहा कि उनके माता-पिता 1947 में जालंधर में अपने बेटे और एक बेटी को छोड़कर पाकिस्तान आ गए थे। कुलसुम ने कहा कि वह पाकिस्तान में पैदा हुई थीं और अपनी मां से अमरजीत के बारे में अक्सर सुनती रहती थी।
कुलसुम ने कहा कि उन्हें उम्मीद नहीं थी कि वे कभी अपने भाई और बहन से मिल पाएंगी। कुछ साल पहले उनके पिता के एक दोस्त सरदार दारा सिंह भारत से पाकिस्तान आए थे। इस दौरान कुलसुम की मां ने सरदार दारा सिंह को अपने बेटे और भारत में छोड़ी गई बेटी, उनके गांव का नाम और उनके घर का स्थान भी बताया।
पाकिस्तान से लौटने के बाद सरदार दारा सिंह ने अमरजीत के गांव (पडावां) पहुंचे और मुलाकात की। इस दौरान सरदार दारा सिंह को पता चला कि अमरजीत के साथ भारत में छोड़ी गई बहन का निधन हो चुका है। ये जानकारी उन्होंने कुलसुम और उनकी मां को दी। जानकारी मिलने के बाद कुलसुम ने अपने भाई अमरजीत से मिलने का फैसला किया।
कहानी में ट्विस्ट… बहन मुस्लिम तो भाई सिख कैसे
दरअसल, जब अमरजीत सिंह अपनी बहन के साथ भारत में छूट गए थे तब एक परिवार ने दोनों भाई-बहन की मदद की और उन्हें गोद ले लिया। चूंकि गोद लेने वाला परिवार सिख था तो अमरजीत सिंह उनकी छोटी बहन का धर्म भी सिख हो गया। उधर, सरदार दारा सिंह के जरिए जब अमरजीत सिंह को जब जानकारी मिली कि उनके असली माता-पिता पाकिस्तान में हैं और मुसलमान हैं, तो यह उनके लिए एक सदमे जैसा था। हालांकि, उन्होंने खुद को दिलासा दिया कि बंटवारे के वक्त उनके अपने परिवार के अलावा कई परिवार एक-दूसरे से अलग हो गए थे।
कहानी का क्लाइमेक्स… क्या चाहते हैं अमरजीत सिंह
अमरजीत सिंह ने कहा कि बंटवारे के वक्त की यादें धुंधली थी। अपने माता-पिता से बिछड़ने के बाद काफी दुखी रहते थे। हालांकि समय के साथ सबकुछ ठीक हो गया लेकिन उन्हें याद रहा कि मेरे माता-पिता पाकिस्तान में हैं। उन्होंने कहा कि उन्हें यह जानकर खुशी हुई कि उनके माता-पिता जिंदा हैं और उनके भाई-बहन भी हैं जो पाकिस्तान में हैं। जानकारी के बाद उन्होंने तय किया कि वे अब अपने परिवार के साथ समय बिताने के लिए पाकिस्तान जाएंगे। अमरजीत सिंह ने ये भी कहा कि वे अपने परिवार को भी भारत ले जाना चाहते हैं ताकि वे अपने सिख परिवार से मिल सकें।
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हैप्पी एंडिंग… मामा से मिलकर खुश है शहजाद
कुलसुम के बेटे शहजाद अहमद ने कहा कि वह अपने मामा के बारे में अपनी नानी और मां से सुनते थे। उन्होंने कहा कि बंटवारे के समय सभी भाई बहन बहुत छोटे थे। उन्होंने कहा, “मैं समझता हूं कि चूंकि मेरे मामा का पालन-पोषण एक सिख परिवार ने किया है, इसलिए वे एक सिख हैं और मेरे परिवार और मुझे इससे कोई समस्या नहीं है। शहजाद ने कहा कि उन्हें खुशी है कि 75 साल बाद उनकी मां ने अपना खोया भाई पाया है।
बता दें कि ये दूसरी बार है कि जब करतारपुर कॉरिडोर के जरिए एक परिवार फिर से एक-दूसरे से मिला है। इससे पहले मई में एक सिख परिवार में जन्मी एक महिला जिसे एक मुस्लिम दंपति ने गोद लिया और पाला था, करतारपुर में भारत के अपने भाइयों से मिली थी।
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