बेशक आज का जमाना स्मार्टफोन का है और अधिकतर युवाओं का समय उसी में व्यतित होता है, लेकिन किताबों का बाजार भी कभी थमा नहीं, रुका नहीं। मोटिवेशनल किताबों का दौर एक लंबे समय से चलता रहा है। इन किताबों में कुछ लेखकों ने एकाधिकार भी किया। रोबिन शर्मा की ‘रिच डैड पुअर डैड’ या ‘द मोंक हू सोल्ड हिज फरारी’ जैसी किताबें एक बड़े दौर के लिए सर्वाधिक लोकप्रिय किताबें रहीं। मोटिवेशन की आवश्यकता हर दौर में होती है लेकिन स्वरूप बदलता जाता है। जैसे इस समय बिजनेस मोटिवेशन की किताबें सर्वाधिक लोकप्रिय हैं।
अश्निर ग्रोवर, अंकुर वारिकू, करन बजाज, तरुण राज अरोड़ा या शैली चोपड़ा जैसे उद्यमियों ने अपने सफर को किताब का स्वरूप दिया है। यह किताबें इस समय के पाठक वर्ग में अत्यंत लोकप्रिय पायी गयी हैं। अश्निर ग्रोवर की किताब ‘दोगलापन’ अमेजन पर बेस्टसेलर रही। वहीं तरुण राज अरोड़ा की किताब ‘हार के उस पार’ प्रकाशन के मात्र दो सप्ताह के भीतर ही अमेजन पर इ बुक बेस्टसेलर केटेगरी में छठे स्थान पर तो सेल्फ हेल्प बुक्स केटेगरी में पहले स्थान पर रही।
भारतीय मूल के उद्यमी अश्निर ग्रोवर भारतीय फिनटेक कंपनी भारत पे के पूर्व सह-संस्थापक और प्रबंध निदेशक हैं। वह तब और प्रसिद्ध हो गए जब वह रियलिटी टीवी शो शार्क टैंक इंडिया सीजन एक में एक निवेशक के रूप में दिखाई दिए। वह शो में अपनी सीधी-सादी टिप्पणियों और अपने प्रसिद्ध शब्द ‘दोगलापन’ के लिए वायरल हो गए। हालांकि, अश्निर अब शार्क टैंक में नहीं दिखाई देते।
सावधान होना जरूरी!
अधिकांश भारतीय उद्यमी, विशेष रूप से नए युग के उद्यमी, सार्वजनिक रूप से जो कहते हैं, वो कहते समय सावधान रहते हैं क्योंकि यह उनके ग्राहकों, कर्मचारियों और मौजूदा या संभावित निवेशकों को प्रभावित कर सकता है। राजनीतिक शुद्धता के माहौल के बीच ग्रोवर का ‘दोगलापन’ भारतीय स्टार्टअप उद्योग का ‘बैड बॉय’ बनकर स्वतंत्र रूप से खुलकर अपनी बात कहता है।
अश्निर खुलकर अपनी किताब में लिखते हैं कि ‘रजनीश (भारतीय स्टेट बैंक के पूर्व चेयरमैन रजनीश कुमार) मेरी चौथी नियुक्ति गलती थी- अन्य तीन सुहैल समीर (मुख्य कार्यकारी अधिकारी), जसनीत (मुख्य मानव संसाधन अधिकारी) और सुमित सिंह (जनरल काउंसिल) थे।’
‘हमेशा अपने आप को पहले रखें। हर द्वितीयक बिक्री के अवसर पर अपने स्टॉक को समाप्त करें,’ ऐसा अश्निर एक चैप्टर में कहते हैं। नौकरी डॉट कॉम के मालिक इंफो एज के संस्थापक और कार्यकारी संस्थापक संजीव बिखचंदानी ने अश्निर को ‘भड़काऊ’ कहते हुए उनके विचारों को ‘ध्रुवीकरण’ करार दिया।
इन सभी विवादों के बाद भी अश्निर ग्रोवर की किताब ‘दोगलापन – द हार्ड ट्रुथ अबाउट लाइफ एंड स्टार्ट अप्स’ पाठकों के बीच अत्यंत लोकप्रिय रही। पहली बार में ही बीस हज़ार प्रतियां बेचने के बाद भी इस किताब की बिक्री अब भी उफान पर है। किताब का प्रकाशन प्रतिष्ठित प्रकाशक पेंग्विन प्रकाशन द्वारा 10 दिसंबर 2022 को हुआ। प्रकाशन के तुरंत बाद ही अत्यंत लोकप्रिय हुयी इस किताब ने जल्द ही अमेजन पर बेस्टसेलर किताब के तौर पर अपनी जगह बनाई।
‘हार के उस पार’
इसी तरह सीरियल उद्यमी व प्रसिद्ध मोटिवेशनल स्पीकर तरुण राज अरोड़ा की किताब ‘हार के उस पार’ 19 अप्रैल 2023 को प्रकाषित हुई। यह किताब प्रकाशन के मात्र दो सप्ताह के भीतर ही बेस्टसेलर केटेगरी में अपना स्थान बना चुकी है। तरुण राज अरोड़ा की यह किताब बीस अत्यंत सफल विश्व प्रसिद्ध उद्यमियों की जीवनी पर आधारित है।
किताब में इन बीस उद्यमियों की उपलब्धियां, गलतियां, उन की विफलताएं तथा उनके द्वारा बनाई गयी रणनीतियां भी सम्मिलित हैं। यह किताब इन बीसों उद्योगपतियों के जीवन पर अनुसंधान व अभ्यास करने के बाद बनी होने के कारण अत्यंत उपयुक्त है।
तरुण राज अरोड़ा का यह कहना है कि अच्छा बुरा या काला सफेद जैसा कुछ नहीं होता। सफलता या असफलता दोनों एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। इस नवीनतम विषय के बारे में चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि यहां हर व्यक्ति केवल और केवल सफतलता के विषय में बात कर रहा है। यदि आप फेसबुक, इंस्टाग्राम जैसे सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म्स पर केवल दस मिनट भी समय बिताएं तो एक पोस्ट तो सफलता को लेकर मिल ही जायेगी लेकिन असफलता पर कोई बात नहीं होती।
इस विषय पर और जोर डालते हुए तरुण ने कहा कि सफलता एक ऐसी इमारत है जो असफलता की ईंटों पर खड़ी है। उन्हें बार बार ये लगता रहा है कि असफलता पर कोई चर्चा नहीं करता और इसलिए उन्होंने असफलता जैसा लगभग हमेशा नज़रंदाज़ किया गया विषय अपने लेखन के लिए चुना।
प्रकाशकों में उद्यमियों के साथ काम करने की ललक
हार्पर कॉलिन्स के कार्यकारी संपादक सचिन शर्मा कहते हैं, ‘बस जब स्टार्ट-अप मालिकों को लगता है कि उन्होंने जीवन में एक मुकाम हासिल कर लिया है, तो वे सोचने लगते हैं कि उनकी विरासत को एक पुस्तक के रूप में अंकित किया जाना चाहिए। उनका जीवन दूसरों के लिए सफलता के टेम्पलेट के रूप में काम करना चाहिए।
ये किताबें अक्सर अपने स्टार्टअप के लिए एक प्रचार वाहन के रूप में काम करती हैं, जिससे उन्हें बेहतर नेटवर्क बनाने, वित्तीय पूंजी जुटाने और बदले में, अधिक व्यवसाय उत्पन्न करने में मदद मिलती है।’ किन्तु केवल उद्यमी ही किताबों को लेकर आग्रही नहीं हैं। बल्कि अब प्रकाशकों में भी उद्यमियों के साथ काम करने की ललक देखी जा सकती है।
यह किताबें एक निर्धारित स्वरूप में बनने लगी हैं। जहां कहानियां छोटे छोटे खंडों या चैप्टर्स में विभाजित हैं। मुद्दे बिलकुल सटीक तरीके से, बिना पुनरावृत्ति के लिखे गए हैं। इन किताबों को आज की युवा पीढ़ी के अनुरूप बनाया गया है। जो इक्कीसवीं सदी की भागदौड़ भरी ज़िंदगी में कम समय में बहुत कुछ सीखना चाहते है।
‘हार के उस पार’ या ‘दोगलापन’ की अपार सफलता का एक कारण यह भी है कि बिज़नेस को लेकर सैद्धांतिक अभ्यास की जगह जब ज़मीनी हक़ीक़त के विषय में जानकारी मिलती है तो वह ज्यादा बड़ी उपलब्धि हो जाती है। अश्निर ग्रोवर की ‘दोगलापन’ व तरुण राज अरोड़ा की ‘हार के उस पार’ पाठकों के बीच लोकप्रिय होकर अब भी नए प्रतिमान गढ़ने के लिए गतिशील है।
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