‘RRR’। पिछले कुछ दिनों से यह शब्द खासा चर्चा में है। आज दक्षिण-मध्य भारत के राज्य तेलंगाना में इसका जादू देखने को मिला। बात विधानसभा चुनाव के नतीजों की है। अब आप सोच रहे होंगे कि ‘RRR’ का राजनीति से भला क्या कनेक्शन है? आपके इस सवाल का जवाब है कांग्रेस की को बहुमत दिलाने वाली जीत के पीछे की कैमिस्ट्री, जिसकी वजह से कांग्रेस का हर कार्यकर्ता नाचो-नाचो कर रहा है।
जानें क्या है ‘RRR’ का पॉलिटिकल कनेक्शन…
ध्यान रहे, तेलंगाना में रविवार को चल रहे मतगणना के क्रम में कांग्रेस 90 में से 67 सीटों पर आगे चल रही है, वहीं 40 से भी कम सीटें हैं, जहां पिछले 9 साल से राज्य की सत्ता पर काबिज भारत राष्ट्र समिति के उम्मीदवार बढ़त बनाए हुए हैं। हालांकि खबर लिखे जाने तक मतगणना का क्रम जारी है, लेकिन बावजूद इसके हार स्वीकार करते हुए के चंद्रशेखर राव ने मुख्यमंत्री पद से इस्तीफा दे दिया है। राज्य में सत्ता परिवर्तन के इस माहौल के साथ ‘RRR’ का गहरा कनेक्शन है। दिलचस्प बात यह है कि इस ‘RRR’ का कनेक्शन ब्लॉक बस्टर फिल्म से कतई नहीं है। …तो फिर क्या है ये? अजी जनाब! यह यह ‘RRR’ है राहुल और रेवंत रेड्डी की जोड़ी। जैसे ही बीआरएस पर कांग्रेस की जीत का सीन साफ हुआ, पार्टी के प्रदेश अध्यक्ष अनुमुल रेवंत रेड्डी ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर इसमें कहा, ‘राहुल गांधी के समर्थन से कांग्रेस तेलंगाना में सत्ता में आई है। मुझ पर विश्वास दिखाने के लिए मैं राहुल गांधी को धन्यवाद देता हूं’।
रेड्डी-गांधी जोड़ी का क्या असर रहा?
राजनैतिक विश्लेषकों का मानना है कि गांधी की भारत जोड़ो यात्रा तेलंगाना कांग्रेस के लिए रेड्डी की जोरदार पुनरुद्धार योजना के साथ मिलकर जादू की तरह काम करती दिख रही है। जैसा कि कांग्रेस के पूर्व राज्य पार्टी प्रमुख पोन्नाला लक्ष्मैया ने बताया, भारत जोड़ो यात्रा का प्रभाव ठीक वैसे ही देखा जाएगा, जैसे आजादी की लड़ाई में महात्मा गांधी की दांडी यात्रा ने स्वतंत्रता आंदोलन को गति दी थी। जब देश बेरोजगारी से जूझ रहा है और महंगाई से लड़ रहा है तो ऐसे यह गेम-चेंजर होगा। राजनैतिक विश्लेषक पलवई राघवेंद्र ने बताया कि भारत जोड़ो घटना का कैडरों के उत्साह पर असर पड़ा, जबकि रेवंत रेड्डी फैक्टर ने भी पार्टी को मजबूत आधार बनाने में योगदान दिया। फिर सत्ता विरोधी लहर के साथ अन्य दलों के नेताओं का कांग्रेस में शामिल हो एक मजबूत अंतर्धारा के रूप में उभरा। इसके अलावा भाजपा ने विधानसभा चुनाव से पहले अपनी ताकत खो दी। यह भी कांग्रेस के लिए संजीवनी बना। ऑल इंडिया कांग्रेस कमेटी की प्रवक्ता डॉली शर्मा बताती हैं कि भारत जोड़ो यात्रा से पहले कांग्रेस कमजोर थी। BRS प्रमुख केसीआर और उनकी पारिवारिक राजनीति से तंग आ चुके लोग बदलाव तलाश रहे थे। पदयात्रा ने कांग्रेस की स्थानीय इकाई को अप्रत्याशित रूप से चार्ज करने काम किया। इसी का नतीजा आज सबके सामने है।
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कांग्रेस के अच्छे दिन का पुनरुद्धार
हालांकि कांग्रेस के अच्छे दिन 2021 के बाद से ही आने शुरू हो गए थे। बीआरएस के लिए यह पार्टी एक चुनौती के रूप में फिर से उभरी है। रेवंत रेड्डी ने न केवल तेलंगाना के गठन के बाद से सत्ता से दूर कांग्रेस को सत्ता में लाने की जिम्मेदारी निभाई, बल्कि उन्होंने कामारेड्डी से केसीआर को टक्कर देने के लिए पार्टी द्वारा दी गई चुनौती को भी स्वीकार किया। विश्लेषकों के मुताबिक अगर हम के.चंद्रशेखर राव के तेलंगाना के मुख्यमंत्री बनने से लेकर जून 2021 तक कांग्रेस के प्रदर्शन का पता लगाएं, जब रेड्डी ने वरिष्ठ कांग्रेसी एन उत्तम कुमार रेड्डी की जगह तेलंगाना प्रदेश कांग्रेस कमेटी के अध्यक्ष का पद संभाला तो सत्तारूढ़ बीआरएस की कार्रवाई के डर से कई नेता लगभग चुप हो गए। इसके बाद से अब तक रेड्डी ने दोहरी लड़ाई लड़ी है। एक पार्टी को एकजुट रखना और दूसरा निरंकुश होने के आरोपों से जूझना। एक बातचीत के दौरान रेवंत रेड्डी ने इसे तेलंगाना में ‘अच्छे दिन’ के आगमन के रूप में संदर्भित किया है।
रेवंत अपनी पसंद पर अड़े रहे तो राहुल ने भी गलतियों से सीखा
इसी के साथ विश्लेषक राघवेंद्र बताते हैं कि राहुल गांधी, कांग्रेस प्रमुख मल्लिकार्जुन खड़गे और कांग्रेस नेतृत्व स्थानीय नेताओं के विरोध के बावजूद रेड्डी की अपनी पसंद पर अड़े रहे। राहुल गांधी ने अपनी पिछली गलतियों से सीखा। पंजाब में अमरिन्दर सिंह की जगह चरणजीत चन्नी को लाना कांग्रेस के लिए विनाशकारी साबित हुआ। असम में भी यही स्थिति थी जब विधायक हिमंत बिस्वा सरमा का समर्थन कर रहे थे, तब तरुण गोगोई को एक और कार्यकाल दिया गया था। तेलंगाना में वह यह गलती दोहराना नहीं चाहते थे।
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आरोप यह भी है कि 2014 और 2018 में स्पष्ट बहुमत होने के बावजूद बीआरएस ने कांग्रेस में सेंधमारी की साजिश रची। इन दोनों विधानसभा चुनावों के बाद कांग्रेस को महत्वपूर्ण झटके का सामना करना पड़ा। 2014 में 21 सीटें हासिल करने के बावजूद सात सदस्यों ने बीआरएस के प्रति निष्ठा बदल ली तो 2018 में कांग्रेस ने 19 सीटें जीती, लेकिन छह महीने के भीतर उनमें से 12 बीआरएस में शामिल हो गए। इसके परिणामस्वरूप कांग्रेस को विधान सभा में प्रमुख विपक्ष के रूप में अपनी स्थिति खोनी पड़ी। इस बार, राहुल गांधी और रेवंत रेड्डी दोनों ने कर्नाटक के उपमुख्यमंत्री डीके शिवकुमार से मदद मांगी, ताकि यह सुनिश्चित किया जा सके कि उनक संगठन एकजुट रहे और नेताओं की खरीद-फरोख्त की हर कोशिश को नाकाम कर दिया जाए। इसमें इन्हें कामयाबी मिली।