एक कब्रिस्तान, जहां से रात के अंधेरे में गायब हो रहीं लाशें
पश्चिम बंगाल के कब्रिस्तान से फिर से लाश चोरी होने की घटना सामने आई है।
Dead Bodies Missing From Kolkata Graveyard (अमर देव पासवान, पश्चिम बंगाल): पश्चिम बंगाल के कोलकाता में मुर्शिदाबाद जिले के फरक्का सूती थाना मे तहत आने वाले अमुहा गांव के कब्रिस्तान से एक शख्स की लाश रातों-रात गायब हो गई। शाम को 77 वर्षीय मानिक चंद्र दास को दफन किया गया और अगले दिन सुबह लाश गायब हो गई, जिसकी लिखित शिकायत मृतक के बेटे शुशांत दास ने सूती थाना में दर्ज कराई है।
सुशांत ने बताया कि उसके पिता मानिक चंद्र दास की मृत्यु घर में बीमारी से हुई थी। मुख अग्नि करके उसने अपने मृत पिता की लाश को अपने घर के पास कब्रिस्तान मे दफ़न कर दिया। अगले दिन पता चला कि पिता की कब्र खुदी हुई है और उसमें से लाश गायब है।
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लकड़ी की कमी के कारण दफनाए जाते शव
फरक्का के SDPO कौशिक बसाक का कहना है कि वह मामले की गंभीरता से जांच करवा रहे हैं। अमुहा शमसान घाट के दायरे में आने वाली 551 पंचायतें दाह संस्कार के बाद मृतकों का मृत्यु प्रमाण पत्र जारी करती है।
समिति के सदस्य फूलचंद दास की अगर मानें तो लकड़ी की कमी होने के कारण शवों को जलाकर अंतिम संस्कार नही किया जाता, बल्कि सरकारी जमीनों पर शवों को दफ़न कर दिया जाता है। हाल ही में 3 शवों को दफ़न किया गया था, लेकिन तीनों लाशें गायब हो गईं। 8 से 9 महीने पहले भी क़ब्र से लाशों की चोरी होने की घटनाएं हुई थीं।
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करोड़ों कमाने के लालच में किया जाता धंधा
तृणमूल कांग्रेस नेता अर्जुन मंडल कहते हैं कि इलाके से लाशों की चोरी होने की घटना कोई नई बात नहीं है। कदम तल्ला के रहने वाले विकास दास नामक व्यक्ति का शव भी चोरी हो गया था। पुलिस को लगा कि क़ब्र से कोई जानवर लाशों को रात के अंधेरे मे ले जाता होगा, पर इस तरह की घटना का कोई प्रमाण नही मिला कि क़ब्र से लाशों को कोई जानवर ले जाए। इससे पुलिस का शक लाशें चुराने वाले गिरोह की तरफ जाता है।
कोलकाता में यंग ब्रदर्स समेत कई कम्पनियां हैं, जो मानव कंकालों को देश के विभिन्न मेडिकल कॉलेजों के साथ-साथ विदेशों तक सप्लाई करने का काम करती थी, जिससे उन्होंने प्रतिवर्ष करीब एक मिलियन डॉलर कमाए। कम समय मे ज्यादा पैसे कमाने की लालच मे इस धंधे से कई लोग जुड़ गए और बंगाल की कब्रों से रात के अंधेरे मे मुर्दे गायब होने लगे।
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जलती चिता से लाश निकालकर ले जाते लुटेरे
भारत मे मानव कंकाल के निर्यात पर 1980 के दशक के मध्य मे प्रतिबंध लगा दिया गया था। बावजूद उसके यह धंधा अंदरखाते चोरी छिपे फल-फूल रहा है। कब्रों के लुटेरों के लिए किसी भी क़ब्र तक पहुंचना ज्यादा मुश्किल काम नहीं। कई बार गिरोह के सदस्य मृतक के जनाजे में भी शामिल होते हैं, ताकि वे कब्र की पहचान कर सकें। गिरोह के सदस्य जलती चिता से भी लाशें निकालकर ले जाते हैं।
शवों से हड्डियों को अलग करने के लिए वे शवों को नदी की गहराई मे बांधकर रख देते हैं। एक से दो सप्ताह के बाद उन शवों के सड़े गले मांस और हड्डियों को अलग किया जाता है, जिसके बाद कांकालों को कास्टिक सोडा डालकर पानी मे उबाला जाता है, जिससे हड्डियों से मांस पूरी तरह अलग हो जाता है।
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तांत्रिक नरमुंड के बदले देते अच्छे-खासे पैसे
हड्डियों से पीलापन हटाने के लिए हाइड्रोक्लोरिक एसिड में भिगोकार हफ्तेभर के लिए सूरज की रोशनी मे सूखने के लिए रख दिया जाता है। इसके बाद मानव कंकाल पूरी तरह सफ़ेद और साफ सुथरा हो जाता है, जिसे पैक करके अवैध रूप से तस्करी भारत के साथ-साथ विदेशों में कर दी जाती है। भारत में कई तांत्रिक हैं, जो नरमुंड खरीदने के लिए तस्करों के लगातार संपर्क में रहते हैं।
जांघ और हाथ की हड्डियों की भी तांत्रिक डिमांड करते हैं, जिसके अच्छे खासे पैसे वह मानव कंकाल तस्करों को देते हैं। यहां तक कि ताज़ा लाशों की भी अच्छी खासी डिमांड है और ऑर्डर के अनुसार, तस्कर कब्रों से लाशों की चोरी करके उसकी तस्करी करते हैं। ऐसे में लाश चोरी होने का ताजा मामला सामने आने पर पर पुलिस यह पता लगा रही है कि कहीं बंगाल में मानव कंकाल तस्करों ने तो वारदात को अंजाम नहीं दिया।
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