सुप्रीम कोर्ट ऑफ इंडिया को आज 52वें चीफ जस्टिस मिल गए। जस्टिस भूषण रामकृष्ण गवई ने आज चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया के पद की शपथ ग्रहण की। सुबह 10 बजे उनका शपथ ग्रहण समारोह हुआ और उन्हें राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने शपथ दिलाई। जस्टिस गवई ने CJI संजीव खन्ना को रिप्लेस किया है, जिनका कार्यकाल 13 मई को खत्म हो चुका है।
वहीं जस्टिस गवई का कार्यकाल 7 महीने का होगा। 23 नवंबर 2025 को वे रिटायर हो जाएंगे। वरिष्ठता के आधार पर उन्हें पद सौंपा जा रहा है। जस्टिस खन्ना ने ही उनके नाम की सिफारिश की थी। जस्टिस गवई ने 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट जज का पद संभाला था। वे जस्टिस केजी बालाकृष्णन के बाद देश के दूसरे दलित चीफ जस्टिस होंगे।
यह भी पढ़ें:3400 करोड़ के गिफ्ट पर क्या बोले ट्रंप? US प्रेसिडेंट को दुनिया का सबसे महंगा तोहफा देना चाहता है कतर
जस्टिस बीआर गवई का करियर?
जस्टिस गवई का जन्म 24 नवंबर 1960 को महाराष्ट्र के अमरावती में हुआ था। वह अपने 3 भाइयों में सबसे बड़े हैं। जस्टिस गवई के पिता रामाकृष्ण सूर्यभान गवई महाराष्ट्र के दिग्गज नेता थे। वे बिहार सहित कई राज्यों के गवर्नर रहे थे। अंबेडकरवादी राजनीति करने वाले रामाकृष्ण सूर्यभान गवई ने रिपब्लिकन पार्टी ऑफ इंडिया (गवई) की स्थापना की थी। जस्टिस गवई ने कानून की पढ़ाई अमरावती विश्वविद्यालय से की लॉ की डिग्री लेने के बाद 25 साल की उम्र में उन्होंने वकालत शुरू की।
जस्टिस गवई ने मुंबई और अमरावती की अदालतों में सेवाएं दी हैं। कई साल की प्रैक्टिस के बाद वे बॉबे हाई कोर्ट की नागपुर बेंच में शामिल हुए। वे नागपुर में सरकारी वकील बने। जस्टिस गवई को साल 2003 में बॉम्बे हाई कोर्ट का एडिशनल जज और साल 2005 में स्थायी जज बनाया गया। 24 मई 2019 को सुप्रीम कोर्ट के जज के रूप में पदोन्नत होने से पहले उन्होंने 16 वर्षों तक बॉम्बे हाईकोर्ट के जज में के रूप में कार्य किया। अब वे अगले 7 महीने तक चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया बन जाएंगे।
यह भी पढ़ें:पत्नी प्रेग्नेंट, मां बीमार, 3 महीने पहले शादी; कौन थे रामबाबू प्रसाद, जो पाक सेना की गोलीबारी में शहीद
जस्टिस गवई की प्राथमिकता क्या होगी?
जस्टिस गवई संविधान को सर्वोच्च मानते हैं और बिना शोर के अपना काम करना पसंद करते हैं। रविवार को लीगल रिपोर्ट्स से अनौपचारिक बातचीत में जस्टिस गवई ने कहा था कि इस बात में किसी को संदेह नहीं होना चाहिए कि संविधान सर्वोच्च है। यह बात सुप्रीम कोर्ट केशवानंद भारती विवाद से जुड़े 13 जजों की संविधान पीठ के फैसले में कह चुका है। जस्टिस गवई पिछले दिनों उपराष्ट्रपति के द्वारा न्यायपालिका के अधिकारों को लेकर दिए गए टिप्पणी पर अपनी प्रतिक्रिया दे रहे थे, जिसमें उप-राष्ट्रपति जगदीप धनखड़ ने संसद को सर्वोच्च कहा था।
जस्टिस गवई खुद को सेक्यूलर कहते हैं। उन्होंने लीगल रिपोर्ट्स से बातचीत में बताया था कि मैं सेक्यूलर हूं, लेकिन बौद्ध धर्म का पालन करता हूं। मैं मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारा सब जगह जाता हूं। सभी धर्म के लोगों से मेरे संबंध हैं। मेरा सौभाग्य है कि बुध पूर्णिमा के तत्काल बाद ही चीफ जस्टिस पद की शपथ लूंगा। बाबा साहब अम्बेडकर के साथ ही मेरे पिता जी ने बौद्ध धर्म ग्रहण किया था। मैं देश का पहला बौद्ध चीफ जस्टिस बनूंगा।
यह भी पढ़ें:मुस्कान-साहिल ही सौरभ के ‘हत्यारे’, मेरठ हत्याकांड में 5 बड़े खुलासे, जानें चार्जशीट में क्या-क्या?
मुख्य न्यायाधीश के रूप में अपनी प्राथमिकताओं को लेकर जस्टिस गवई की दृष्टि स्पष्ट है। उनकी प्राथमिकता में वे मामले होंगे, जिनका समाज और सियासत पर व्यापक असर होने वाला है। वक्फ संशोधन कानून में बदलाव से जुड़ा मामला ऐसा ही मामला होगा, जो जस्टिस गवई की अगुवाई वाली बेंच के सामने होगा। इस दौरान काफी समय से लंबित प्लेसेज ऑफ वरशिप एक्ट को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर भी सुनवाई की उम्मीद की जा सकती है।
राजनीतिक मामलों में सुनाए फैसले
सुप्रीम कोर्ट में जस्टिस गवई ने राजनीति से जुड़े कई मामलों में फैसले सुनाए, इनमें न्यूज वेबसाइट न्यूजक्लिक के संस्थापक संपादक प्रबीर पुरकायस्थ और दिल्ली के पूर्व उपमुख्यमंत्री मनीष सिसोदिया से जुड़े मामले शामिल हैं। इन मामलों में जस्टिस गवई के नेतृत्व वाले बेंच ने UAPA और PMLA जैसे कानूनों में मनमानी गिरफ्तारी पर फैसले सुनाए।
जस्टिस गवई उस बेंच के प्रमुख थे, जिसने नवंबर 2024 में यह माना था कि उचित प्रक्रिया का पालन किए बिना लोगों की संपत्तियों पर बुलडोजर चलाना रूल ऑफ लॉ के खिलाफ है। जस्टिस गवई सात जजों के उस संविधान पीठ में भी शामिल थे, जिसने अनुसूचित जातियों के आरक्षण में आरक्षण देने की वकालत की थी।
यह भी पढ़ें:UK की नागरिकता के नियम बदलेंगे, अब आसानी से नहीं मिलेगी, जानें क्या होगी नई व्यवस्था?
कांग्रेस नेता राहुल गांधी को आपराधिक मानहानी के एक मामले में सजा को स्थगित करने वाले बेंच में भी जस्टिस गवई शामिल थे। सुप्रीम कोर्ट के फैसले के बाद ही राहुल गांधी की लोकसभा की सदस्यता बहाल हुई थी।