Nitin Gadkari Exclusive Interview: केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी से न्यूज24 के संवाददाता मानक गुप्ता ने एक्सक्लूसिव इंटरव्यू में कई मुद्दों पर बात की। शुरुआत करते हुए जब मंत्री गडकरी से यह पूछा गया कि भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष, महाराष्ट्र में मंत्री, विपक्ष के नेता, राजनीति के अजातशत्रु और हाईवे मैन…इनमें से कौन-सा परिचय अच्छा लगा? तो जवाब देते हुए उन्होंने कहा कि परस्पर विरोधी, विचार विरोध, संगठन विरोधी लोग होते हैं, लेकिन उनका प्रेम और विश्वास अपने प्रति रहना, किसी भी राजनेता की सबसे बड़ी पूंजी होता है। अटल बिहारी वाजपेयी की 2-3 बातें याद रहती हैं कि तुम्हे चाहे कितनी भी जल्दी हो? तुम्हारे घर में जितने भी लोग हैं, सभी से मिलो चाहे एक-एक मिनट के लिए मिलो। बिना मिले कभी नहीं जाना।
जो सही काम है, वही करना चाहिए। लोकतंत्र में नेता मंत्री, विधायक पार्टी के टिकट पर बनते हैं, लेकिन देश और जनता के लिए बनते हैं। सही काम सबका करना चाहिए और गलत काम किसी का भी नहीं करना चाहिए। मैं कभी पार्टी का भेदभाव नहीं किया, मेरे पास जो आता है, अगर उसका काम सही और व्यवहारिक लगता है, मैं कर देता हूं। इन्हीं अजातशत्रु और हाईवे मैन केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग, जहाज़रानी, जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री नितिन गडकरी के साथ News24 के संवाददाता मानक गुप्ता की एक्सक्लूसिव बातचीत…
1. क्या टोल देना ही पड़ेगा लोगों को?
इस सवाल के जवाब में गडकरी ने कहा कि इतने बड़े-बड़े हाईवे बनेंगे। दिल्ली से देहरादून जाने के लिए 8-9 घंटे का सफर का 2-3 घंटे में पूरा होगा। इससे कॉस्ट, फ्यूल और समय बचेगा। अरुणाचल, मेघालय, त्रिपुरा, हिमाचल, उत्तराखंड, जम्मू कश्मीर, नॉर्थ ईस्ट में 3 लाख करोड़ के प्रोजेक्ट बने, वहां टोल नहीं मिलता। टोल आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, महाराष्ट्र, पंजाब, हरियाणा, गुजरात, राजस्थान, उत्तर प्रदेश, बिहार में मिलता है। इन राज्यों से मिलने वाले टोल से ही उन राज्यों में हाईवे और सड़कें बनती हैं। जोजिला टनल बनाई है, जो लेह-लद्दाख और श्रीनगर के बीच है, कारगिल के नीचे है। वहां से बाबा अमरनाथ के दर्शन होंगे। 6000 करोड़ खर्च होगा, यह पैसा टोल से ही मिलेगा। दुनियाभर के कई देश टोल लेते हैं। भारत में टोल नई बात नहीं। ऐसी पॉलिसी बना रहे हैं, जिससे लोगों को टोल देने में कोई दिक्कत नहीं होगी।
2. कौन लाया था पॉलिटिक्स में?
इस सवाल के जवाब में गडकरी ने बताया कि अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद के लिए काम करते हुए संघ ने कहा कि राजनीति में काम करो अब तो राजनीतक में आ गया। प्रोफेशनल पॉलिटिशियन नहीं हूं। मैं अपने हिसाब से राजनीति करता हूं। जो जातिवाद करेगा, उसे कसकर लात मारुंगा। जब भाजपा अध्यक्ष था तो मुझे अच्छी-अच्छी लोकसभा सीटें ऑफर हुईं। लोगों ने कहा कि नागपुर से चुनाव हार जाओगे, कांग्रेस की सीट है, लेकिन मैं भी नागपुर से ही चुनाव लड़ा और जीता हूं। तीसरी बार चुनाव जीतकर सांसद बना हूं। नागपुर से चुनाव लड़ा, क्योंकि उनके लिए काम किया था, इसलिए विश्वास था कि लोग साथ देंगे।
3. भाजपा अध्यक्ष रहते हुए कैसा अनुभव रहा़?
इस सवाल के जवाब में गडकरी ने कहा कि कभी कुछ मांगा नहीं, न मांगते हुए बहुत कुछ मिला। भाजपा अध्यक्ष का पद मिला। दीवारों पर पोस्टर चिपकाता था, हैंड राइटिंग बहुत खराब थी, लेकिन अटल बिहारी वाजपेयी जिस कुर्सी पर बैठे, उस पर बैठने का मौका मिला। जब भाजपा अध्यक्ष बना, भाजपा सत्ता से बाहर थी। एक बात हमेशा सीखी कि कभी जीत होगी कभी हार, कभी खुशी होगी कभी गम, कभी आशा होगी कभी निराशा, लेकिन काम करते रहिए। राष्ट्रवाद सर्वोपरि है। देश का विकास, दुनिया की महान शक्ति बनाना, समाज के शोषित पीड़ित वर्ग की सेवा करना मकसद है। भाजपा का मकसद सिर्फ सत्ता और नेता बदलना नहीं, समाज को बदलना है।
4. क्या नई भाजपा में आक्रामकता ज्यादा है?
इस सवाल के जवाब में गडकरी ने कहा कि हर व्यक्त का एक स्वभाव होता है, क्षमताएं और कमियां होती हैं। मैं जब छात्र नेता था तो आक्रामक था और संघ वाले शांत थे। इसलिए हर व्यक्ति को उसके स्वभाव के अनुसार परिणाम मिलते हैं। धोती-कुर्ता पहनाने वालों की मेजोरिटी थी, पायजामा पहने वालों की भी मेजोरिटी थी। वक्त के साथ पीढ़ियां बदलीं, लेकिन पार्टी की विचारधारा, स्ट्रक्चर, उद्देश्य नहीं बदला। बदलाव तो संसार का नियम है तो मुझसे भी बदलाव आया। जो कल था वो आज नहीं है। जो आज है, वह कल नहीं था। समय के अनुसार बदलाव आता ही है।
5. क्या जिंदगी में कोई पछतावा है?
इस सवाल के जवाब में गडकरी ने कहा कि वन डे क्रिकेट जैसा आनंद लेता हूं। जब तक सेहत अच्छी है, काम करता रहूंगा। एक पछतावा है। 55-60 साल तक लाइफ डिस्पिलिन नहीं थी। रात को 2-2 बजे आता था। कुछ भी खा लेता था। समोसे खाता था, खाना नहीं खाता था, लेकिन अब मैं 2-3 घंटे व्यायाम करता हूं। अब सबसे कहता हूं कि अपना घर परिवार और हेल्थ संभालो। दूसरी प्राथमिकता ईमानदार कमाई और तीसरी समाज सुधार और देश सेवा। 135 किलो वजन था और अब 90 किलो है। 45 किलो वजन घटाया, लोग कहते 10 साल यंग लगते हो। खाने की नियत कम नहीं हुआ, खूब खाता हूं। खाने का शौकीन हूं।
6. नई भाजपा में एडजस्ट हो गए?
इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा कि हां एडजस्ट हो गया हूं। किसी से कोई मतभेद नहीं है। राजनीति में यूज एंड थ्रो चलता है, सत्तारुढ़ पार्टी में शामिल होने की होड़ रहती है, यह कहा तो क्या झूठ कहा? मेरे बयान को तोड़-मरोड़कर दिखाते हैं। राजनीति में जो व्यक्ति उपयोग का होता है, उसका उपयोग करते हैं। जिसकी उपयोगिता कम, उसे बाजू कर देते हैं। हास्य व्यंग्य कवि शरद जोशी की एक कविता है, जो राज्य में बेकार थे, उनको दिल्ली भेजा। जो दिल्ली में बेकार थे, उनको एंबेसडर बनाया। जो एंबेसडर नहीं बन पाए, उनको गवर्नर बनाया। यह चलता रहता है, लेकिन इसका संबंध किसी पार्टी या नेता से नहीं। सत्तारुढ़ पार्टी में शामिल होने की होड़ लगी रहती है, क्योंकि विचारभिन्नता नहीं विचारशून्यता है। यश मिले या अपयश मिले, अपनी पार्टी के साथ खड़े रहो, लेकिन नेता क्या करते? वह पार्टी जीत गई तो उधर चले गए, यह जीत गई तो अधर आ गए। गठबंधन की राजनीति नहीं करनी चाहिए, लेकिन अपनी विचारधारा नहीं छोड़नी चाहिए। अपने उसूल, सिद्धांत, नीतियां, आदर्श नहीं भूलने चाहिएं।
7. प्रधानमंत्री पद का ऑफर किसने दिया था?
इस सवाल के जवाब में गडकरी ने कहा कि विपक्ष ने प्रधानमंत्री बनने का ऑफर दिया था, लेकिन मैंने पूछा कि आप मुझे प्रधानमंत्री क्यों बनाओगे? मैं क्यूं बनूंगा, आपने कहा तो मैं आपका आभारी हूं। मैं नहीं बनूंगा। ऐसा कहने का उनका मकसद कुछ भी हो सकता है। प्रधानमंत्री बनना मेरा मकसद नहीं हैं। मैं सुविधा की राजनीति नहीं करता, आस्था और विश्वास की राजनीति करता हूं। जयप्रकाश नारायण के आह्वान पर पार्टी में आया हूं। प्रधानमंत्री बनने नहीं आया हूं। जब तक मंत्री रहूंगा तो रहूंगा, नहीं तो घर जाऊंगा। समझौता नहीं करुंगा। अपनी पार्टी, विचारधारा नहीं बदलूंगा। मैंने उनको भी कहा कि आप भी मुझे इसके लिए सपोर्ट नहीं कीजिए।
8. भाजपा और संघ के रिश्ते पर क्या कहेंगे?
जेपी नड्डा ने कहा था कि भाजपा अब बड़ी पार्टी हो गई है। संघ की जरूरत नहीं है। इसलिए भाजपा और संघ के रिश्ते के बारे में पूछे जाने पर गडकरी ने कहा कि उन्होंने इस तरीके से नहीं कहा था, जैसा दिखाया गया था। उन्होंने कहा कि भाजपा एक शक्तिशाली संगठन बन गया है। उन्होंने यह नहीं कहा था कि अब संघ से को-ऑर्डिनेशन नहीं करेंगे। श्यामा प्रसाद मुखर्जी ने जब जनसंघ की स्थापना की तो कुछ स्वयंसेवक जनसंघ में भी आए। संघ कोई राजनीतिक ऑर्गेनाइजेशन नहीं है, पर संघ एक वैचारिक पावर हाउस है और वहां से विचार और संस्कार लेकर स्वयंसेवक संघ के अनुरूप राष्ट्र और समाज को दिशा देने का प्रयास करते हैं।
9. शीला दीक्षित और अरविंद केजरीवाल के कार्यकाल को कैसे देखते हैं?
इस सवाल के जवाब में गडकरी ने कहा कि मैं किसी के काम की तुलना करने में विश्वास नहीं करता। मैं कहता हूं कि हमने क्या किया है और उन्होंने क्या किया है, इसकी तुलना करना और निर्णय करना जनता की अदालत का काम है। सरकार जो-जो अच्छे काम करती है, जनता उसको रिकॉग्नाइज करती है। जो नहीं कर पाते, उससे नाराज होती है। अगर अच्छा काम हुआ तो फिर से मैंडेट देती है। नहीं किया तो बदल देती है तो यह जनता का फैसला है। 10 साल में मोदी जी के नेतृत्व में हमारी सरकार ने दिल्ली में वह सब किया, जो कर सकते थे। आज एलजी और दिल्ली की सरकार के बीच जो झगड़े हुए, वह शीला जी के टाइम में नहीं होते थे। उस समय के वर्क कल्चर में और अभी के वर्क कल्चर में क्या कोई डिफरेंस है? मैं इन विवादों में पड़ता नहीं हूं। मुझे सब पता है और सब जगजाहिर है।
10. दिल्ली में भाजपा का मुख्यमंत्री का चेहरा कौन?
इस सवाल के जवाब में गडकरी ने कहा कि कि यह निर्णय करने का अधिकार पार्टी के शीर्ष नेताओं को है। पार्टी के प्रमुख नेतागण और पार्लियामेंट्री बोर्ड मिलकर तय करें कि मुख्यमंत्री कौन बनेगा? इस बार हम जीत जाएंगे। सत्ता में आएंगे। केजरीवाल जी की पॉलिटिक्स के बारे में कुछ भी विचार नहीं रखता हूं। मैं अपनी पॉलिटिक्स के विचार रखता हूं। जो मेरा पॉलिटिक्स है, मेरा काम है, मेरी समस्या है, मेरा विजन है, मेरी कमिटमेंट है और देश के लिए, समाज के लिए है। मुझे देश-जनता के लिए काम करना है, यह मेरा एजेंडा है। मैंने एक बात सीखी है कि राजनीति में आप जो कर सकते हो, देश के लिए, समाज के लिए वो पॉजिटिवली करो। अरविंद केजरीवाल कभी मेरे पास किसी काम के लिए उन्हें कभी निराश नहीं किया। कोई भेदभाव नहीं किया। हमेशा मदद की है।