Carmel Convent School 2022 Case: पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने चंडीगढ़ के सेक्टर-9 स्थित कार्मेल कान्वेंट स्कूल में 8 जुलाई 2022 को हुए पेड़ गिरने की दर्दनाक घटना पर अहम फैसला सुनाया. इस हादसे में एक छात्रा की मौत हो गई थी और एक अन्य छात्रा का हाथ काटना पड़ा था.
स्कूल में छात्राओं पर गिरा था पेड़
कोर्ट ने प्रशासन को स्पष्ट किया कि पीड़ित परिवारों को अनुशंसित मुआवजा तत्काल दिया जाए, क्योंकि यह घटना प्रशासन की लापरवाही का नतीजा थी. घटना वाले दिन छात्राएं लंच टाइम में स्कूल परिसर के एक पीपल के पेड़ के नीचे बैठकर खाना खा रही थीं. अचानक उसकी विशाल शाखा गिरने से एक छात्रा की मौके पर मौत हो गई, जबकि दूसरी गंभीर रूप से घायल हो गई. बाद में उसका बायां हाथ काटना पड़ा. कई अन्य छात्र और स्टाफ सदस्य भी घायल हुए थे.
मृतक छात्रा के परिवार को मिलेगा 1 करोड़ रुपये
घटना के बाद चंडीगढ़ प्रशासन ने जस्टिस (सेवानिवृत्त) जितेंद्र चौहान की अध्यक्षता में एक सदस्यीय जांच समिति गठित की. समिति ने विशेषज्ञों की मदद से विस्तृत जांच कर इंजीनियरिंग विभाग को लापरवाही का जिम्मेदार ठहराया. अपनी रिपोर्ट (30 दिसंबर 2022) में समिति ने मृतक छात्रा के परिवार को एक करोड़ और घायल छात्रा को 50 लाख का मुआवजा देने की सिफारिश की. साथ ही इसके इलाज और भविष्य की चिकित्सा आवश्यकताओं (देश या विदेश में) का पूरा खर्च भी प्रशासन द्वारा उठाने का निर्देश दिया.
मृतक छात्रा के पिता ने हाई कोर्ट दी थी याचिका
चंडीगढ़ प्रशासन ने कुछ सिफारिशें मान लीं, जैसे चिकित्सा सहायता और सुरक्षा उपाय, लेकिन मुआवजे की सिफारिश लागू नहीं की. प्रशासन ने तर्क दिया कि समिति का सुझाव बाध्यकारी नहीं है और पहले ही आपदा राहत कोष से 84 लाख प्रभावित परिवारों को दिए जा चुके हैं. इसके खिलाफ मृतक छात्रा के पिता और घायल छात्रा ने हाई कोर्ट में याचिका दायर की थी. हाई कोर्ट ने इस याचिका पर सुनवाई करते हुए आठ जुलाई को अपना फैसला सुरक्षित रखा था.
सोमवार को जस्टिस कुलदीप तिवारी ने अपने 41 पेज के आदेश में कहा कि यह केवल एक “सिफारिश” का मामला नहीं है, बल्कि छात्रों के जीवन के अधिकार का उल्लंघन है, जिसकी भरपाई सार्वजनिक कानून के तहत होनी ही चाहिए.
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मुआवजा देना प्रशासन का संवैधानिक दायित्व
कोर्ट ने कहा कि जब किसी सरकारी विभाग की लापरवाही से नागरिकों की जान जाती है या वे स्थायी अपंगता का शिकार होते हैं, तो मुआवजा देना प्रशासन का संवैधानिक दायित्व है. कोर्ट ने यह भी स्पष्ट किया कि हादसा “ईश्वर का कार्य” नहीं माना जा सकता, बल्कि इंजीनियरिंग विभाग की लापरवाही इसका मुख्य कारण था और मुआवजे का विरोध करने पर प्रशासन को “संवेदनहीन और सहानुभूति-विहीन” करार दिया. विशेषज्ञ रिपोर्ट में सामने आया कि पेड़ भीतर से सड़ा हुआ था और समय पर वैज्ञानिक जांच होती तो हादसा रोका जा सकता था.
हाईकोर्ट ने आदेश दिया कि मृतक छात्रा के पिता याचिकाकर्ता को एक करोड़ और घायल छात्रा (याचिकाकर्ता दो) को 50 लाख का मुआवजा इंजीनियरिंग विभाग द्वारा तुरंत अदा किया जाए. साथ ही, घायल छात्रा के भविष्य में होने वाले ट्रांसप्लांट या अन्य इलाज का खर्च भी प्रशासन को उठाना होगा.