नई दिल्ली: बिलकिस बानो (Bilkis Bano) मामले में 11 दोषियों की रिहाई को चुनौती देने वाली याचिका को सूचीबद्ध करने पर विचार करने पर सुप्रीम कोर्ट ने सहमति जता दी है। शीर्ष अदालत इस मामले में भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) पोलित ब्यूरो सदस्य सुभाषिनी अली, तृणमूल कांग्रेस सांसद महुआ मोइत्रा और एक अन्य याचिकाकर्ता द्वारा दायर एक जनहित याचिका पर सुनवाई कर रही थी।
मुख्य न्यायाधीश एनवी रमना की अध्यक्षता वाली पीठ ने वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल (अली की ओर से) और अभिषेक सिंघवी (मोइत्रा की ओर से) और वकील अपर्णा भट की दलीलों पर ध्यान दिया, जिसमें दोषियों को छूट देने और रिहाई के खिलाफ याचिका दायर की गई थी।
The remission order of releasing convicts by the state government in Bilkis Bano case challenged before the Supreme Court. pic.twitter.com/mvxwWeQnyy
— ANI (@ANI) August 23, 2022
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सिब्बल ने कहा, “हम केवल छूट को चुनौती दे रहे हैं, सुप्रीम कोर्ट के आदेश को नहीं। सुप्रीम कोर्ट का आदेश ठीक है, माई लॉर्ड्स। हम उन सिद्धांतों को चुनौती दे रहे हैं जिनके आधार पर छूट दी गई थी।”
गुजरात सरकार द्वारा 15 अगस्त को बिलकिस बानो मामले में ग्यारह दोषियों की आजीवन कारावास की सजा में छूट देते हुए रिहाई की अनुमति मिलने और दोषियों को माला पहनाए जाने और मिठाई खिलाए जाने के दृश्यों ने सोशल मीडिया पर हंगामा मचा दिया।
बता दें कि 21 जनवरी, 2008 को मुंबई में एक विशेष केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) अदालत ने बिलकिस बानो के सामूहिक बलात्कार और एक तीन वर्षीय बच्ची समेत परिवार के सात सदस्यों की हत्या के आरोप में ग्यारह आरोपियों को आजीवन कारावास की सजा सुनाई। बाद में बॉम्बे हाईकोर्ट ने उनकी सजा को बरकरार रखा।
जिन 11 दोषियों को समय से पहले रिहा किया गया, उनमें जसवंतभाई नई, गोविंदभाई नई, शैलेश भट्ट, राधेशम शाह, बिपिन चंद्र जोशी, केसरभाई वोहानिया, प्रदीप मोर्धिया, बकाभाई वोहानिया, राजूभाई सोनी, मितेश भट्ट और रमेश चंदना शामिल हैं।
इन दोषियों ने 15 साल से अधिक जेल की सजा काट ली थी जिसके बाद उनमें से एक ने अपनी समय से पहले रिहाई के लिए सुप्रीम कोर्ट का दरवाजा खटखटाया था।
शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार को उसकी सजा में छूट के मुद्दे पर गौर करने का निर्देश दिया था जिसके बाद सरकार ने एक समिति का गठन किया था।