---विज्ञापन---

Bilkis Bano के गुनाहगारों की रिहाई पर Supreme Court सख्त; एडवाइजरी कमेटी के आधार पर उठाया सवाल

Bilkis Bano Case, नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 2002 के गुजरात दंगे में बड़ा सख्त रुख अख्तियार किया है। कोर्ट ने उस दंगे में बिलकिस बानो के परिवार की महिलाओं के साथ दुष्कृत्य और हत्या के मामले में रिहा कर दिए गए दोषियों को लेकर सवाल उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस के […]

Edited By : Prabhakar Kr Mishra | Updated: Aug 17, 2023 19:32
Share :

Bilkis Bano Case, नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को 2002 के गुजरात दंगे में बड़ा सख्त रुख अख्तियार किया है। कोर्ट ने उस दंगे में बिलकिस बानो के परिवार की महिलाओं के साथ दुष्कृत्य और हत्या के मामले में रिहा कर दिए गए दोषियों को लेकर सवाल उठाया है। सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस के दोषियों के लिए बनी एडवाइजरी कमेटी के आधार पर ब्योरा मांगा है। साथ ही बड़े सख्त लहजे में पूछा है कि जब गोधरा की अदालत में मुकदमा ही नहीं चला तो फिर वहां जज की रायशुमारी का फिर मतलब क्या था। अब इस मामले की अगली सुनवाई के लिए 24 अगस्त को निर्धारित की गई है।

  • गर्भवती हालत में शारीरिक दुराचार और अपनों के कत्ल के बाद भागती फिरी थी दाहोद जिले रंधिकपुर गांव की बिलकिस बानो

  • पिछले साल गुजरात सरकार की तरफ से बनाई गई एडवाइजरी कमेटी की सिफारिश पर रिहा कर दिए गए थे बिलकिस के गुनाहगार

असल में, 27 फरवरी 2002 की वह तारीख कोई कैसे भुला सकता है, जब गुजरात के गोधरा में ‘कारसेवकों’ से भरी रेलगाड़ी साबरमती एक्सप्रेस के कुछ डिब्बों में आग लगा दी गई थी और उससे 59 लोगों की जान चली गई थी। इसके बाद गुजरात में साम्प्रदायिक दंगा भड़क गया। बकरीद के दिन दंगाइयों ने दाहोद और आसपास के इलाकों में न सिर्फ बहुत से घरों को जला डाला, बल्कि कथित तौर पर मुसलमान लोगों का सामान और बहन-बेटियों की आबरू भी लूटा। इस बीच जिले के रंधिकपुर गांव की 5 महीने की बिलकिस बानो को जान बचाने के लिए गोद में साढ़े तीन साल की बेटी और 15 अन्य लोगों के साथ गांव छोड़कर भागना पड़ा था।

---विज्ञापन---

इस मामले में दाखिल चार्जशीट के मुताबिक तीन मार्च को बिलकिस का परिवार छप्परवाड़ गांव के खेतों में छिपा था ताे 20-30 की भीड़ (12 पुरुष) ने बिलकिस और उसके परिवार के लोगों पर लाठियों और जंजीरों से हमला कर दिया। बिलकिस और उसकी मां समेत पांच औरतों को बुरी तरह मार-पीटकर जख्मी करने के बाद उनके साथ दुराचार (जबरन संभोग) किया गया।

इस हमले में बिलकिस की बेटी समेत के परिवार के 17 में से सात सदस्य मारे गए, वहीं बिलकिस बानो भी करीब तीन घंटे तक बेहोश रही। होश आया तो एक आदिवासी महिला से कपड़ा मांगकर तन ढका और फिर वह एक होमगार्ड से मिली। बताया जा रहा है कि होमगार्ड जवान बिलकिस को लिमखेड़ा थाने ले गया, जहां कॉन्स्टेबल सोमाभाई गोरी ने उनकी शिकायत दर्ज की। यह वही गोरी थी, जिसे अपराधियों को बचाने के आरोप में तीन साल की कैद की सजा मिली।

---विज्ञापन---

यह भी पढ़ें: Manipur Violence: अब 29 लेडी अफसरों समेत CBI की 56 की टीम करेगी गुनाहगारों का हिसाब

दरअसल, घटना के बाद बिलकिस को गोधरा रिलीफ कैंप ले जाकर अस्पताल में मेडिकल जांच कराई गई। राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग के द्वारा जोर-शोर से उठाए गए इस मामले में सुप्रीम कोर्ट के आदेश पर सीबीआई ने जांच की।चार्जशीट में अभियुक्त की मदद करने और सबूतों से छेड़खानी के दोषी पांच पुलिसकर्मी और दो डॉक्टर्स समेत कुल 18 लोगों को दोषी पाया गया। सीबीआई ने अपनी रिपोर्ट में यह भी कहा कि अपराधियों को बचाने की जुगत में मारे गए लोगों का पोस्टमॉर्टम ठीक ढंग से नहीं किया गया। कब्र खोदने के बाद पाया कि इन सबके सिर धड़ से अलग किए गए थे।

इस मामले में बिलकिस बानो को धमकी मिलने लगी तो उसे दो साल में 20 बार घर बदलना पड़ा। जनवरी 2008 में सीबीआई की विशेष अदालत ने गैरकानूनी तौर पर भीड़ जुटाने, गर्भवती महिला से दुराचार करने और हत्या के आरोप में 11 लोगों को दोषी करार दिया। इन्हें आजीवन कारावास की सजा दी गई। सीबीआई कोर्ट के फैसले को बम्बई हाईकोर्ट ने भी बरकरार रखा। लगभग 15 साल बिलकिस बानो और उनके परिवार की हत्या के दोषी जेल में रहे।

इस मामले में 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो को दो सप्ताह के भीतर 50 लाख रुपए मुआवजा, घर और नौकरी देने का आदेश दिया। हालांकि इससे पहले की सुनवाई में भी कोर्ट ने इसका आदेश दिया था, लेकिन बिलकिस ने कहा था कि उसे कुछ नहीं मिला। इस मामले में रोचक बात यह भी है कि पहले गुजरात सरकार ने बिलकिस को सिर्फ पांच लाख रुपए का मुआवजा दिया था। सुप्रीम कोर्ट में जाने के बाद गुजरात सरकार के वकील ने दस लाख रुपए का मुआवजा देना काफी बताया था, जिसे सुप्रीम कोर्ट ने खारिज कर दिया था।

अब एक और रोच पहलू यह भी है कि कानूनन उम्रकैद की सजा के दोषी को कम से कम 14 साल की सजा जेल में काटनी होती है, जिसके बाद दोषी माफी की गुहार लगा सकता है। हालांकि यह प्रावधान हल्के अपराध के दोषियों पर ही लागू होता है। संगीन मामलों में दोषी को आजीवन कारावास का दंड पूरा करना होता है। फिर भी एक दोषी ने सुप्रीम कोर्ट में समयपूर्व रिहाई की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से फैसला लेने को कहा तो अगस्त 2022 में सरकार ने एक समिति का गठन कर सभी दोषियों को समय से पहले रिहा करने का आदेश जारी कर दिया। रिहाई के बाद दोषियों का सम्मान और स्वागत करते हुए की फोटो भी सोशल मीडिया पर वायरल हुई।

दोषियों की रिहाई के बाद भावुक बिलकिस ने कही थी ऐसी बात

सरकार के फैसले के बाद बिलकिस बानो ने भावुक होते हुए कहा, ‘जब मैंने सुना कि मेरे परिवार और मेरा जीवन तबाह करने वाले और मेरी तीन साल की बेटी को मुझसे छीनने वाले 11 अपराधी मुक्त हो गए हैं तो मैं पूरी तरह से नि:शब्द हो गई। मैं बस इतना ही कह सकती हूं कि किसी भी महिला के लिए न्याय इस तरह कैसे खत्म हो सकता है?’ बाद में अपराधियों की रिहाई के खिलाफ सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की गई। सुप्रीम कोर्ट ने दोनों पक्षों की दलीलें सुनने के बाद गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया। हाल ही में 2 मई को सुप्रीम कोर्ट में केंद्र और गुजरात सरकार ने बिलकिस बानो मामले में दोषियों की सजा माफ करने के संबंध में दस्तावेजों पर विशेषाधिकार का दावा नहीं करने की बात कही थी।

अब इस मामले में सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रुख अख्तियार करते हुए गुजरात सरकार और एडवाइजरी कमेटी पर सवाल उठाया है कि रिहाई की इस नीति का फायदा सिर्फ बिलकिस के गुनाहगारों को ही क्यों दिया गया? जेल कैदियों से भरी पड़ी है। बाकी दोषियों को ऐसे सुधार का मौका क्यों नहीं दिया गया? सरकार को बताना होगा कि नई पॉलिसी के तहत कितने दोषियों की रिहाई हुई है? इी के साथ कोर्ट ने पूछा है कि बिलकिस के दोषियों के लिए एडवाइजरी कमेटी किस आधार पर बनी? जब गोधरा की अदालत में मुकदमा नहीं चला तो वहां के जज से राय क्यों मांगी गई?

HISTORY

Written By

Prabhakar Kr Mishra

First published on: Aug 17, 2023 07:20 PM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.

संबंधित खबरें