Delhi Election Results 2025: कोई बड़ा पहाड़ जब गिरता है, तो उसका असर केवल आसपास तक ही सीमित नहीं रहता। दूर-दूर तक उसका शोर सुनाई देता है। अरविंद केजरीवाल दिल्ली की सत्ता में एक बड़े पहाड़ की तरह रहे हैं। उन्होंने लगातार तीन बार सरकार बनाई और यह साबित किया कि वह दिल्ली के लोगों के मन को समझते हैं। उनके दिल्ली मॉडल की हर तरफ तारीफ हुई। ऐसे में उनका दिल्ली की सत्ता से बेदखल होना, बड़े पैमाने पर आम आदमी पार्टी के राजनीतिक भविष्य पर असर डालेगा।
बनी रहेगी ये आशंका
अरविंद केजरीवाल के नेतृत्व में आम आदमी पार्टी का जन्म दिल्ली में हुआ और यहीं से उसने पूरे देश में पहचान बनाई। दिल्ली की सफलता के बूते आप को पंजाब की सत्ता मिली। साथ ही विपक्षी दलों के बीच अहम स्थान, लेकिन अब सबकुछ बदलने वाला है। दिल्ली विधानसभा चुनाव में शिकस्त पार्टी को मिला एक ऐसा जख्म है, जिसके जल्द भरने की कोई संभावना नहीं है। इस बात की आशंका भी बनी रहेगी कि यह जख्म नासूर बनकर पार्टी को खत्म कर दे।
अब बिखराव होगा
आम आदमी पार्टी ने दो बार बेहद अनुशासित शासन चलाया। आपकी मतभेद, कभी भी खुलकर मनभेद के रूप में सामने नहीं आए। लेकिन तीसरे टर्म में पार्टी की एकता तार-तार हो गई। बड़े नेताओं के एक-एक करके भ्रष्टाचार के आरोपों में जेल जाने से पार्टी में बिखराव को बल मिला। फिर भी सत्ता के सुख ने नेताओं को किसी न किसी तरह आपस में जोड़े रहा। लेकिन अब सुख की वजह भी छिन गई है। ऐसे में अब पाला बदल प्रतियोगिता से इंकार नहीं किया जा सकता। इस बात की पूरी संभावना है कि पार्टी नेताओं के बीच AAP का दामन छोड़कर भाजपा का ‘कमल’ थामने की होड़ शुरू हो जाए। ऐसा अक्सर होता ही है।
पंजाब के बदलेंगे हाल
आप आदमी पार्टी केवल दो राज्यों में सत्ता में आई, दिल्ली और पंजाब। अरविंद केजरीवाल और दूसरे बड़े नेता दिल्ली तक सीमित रहे और दूसरे राज्यों में पार्टी को बढ़ाने की रणनीति बनाते रहे। उन्होंने पंजाब को भगवंत मान के हवाले कर दिया। लेकिन अब दिल्ली पार्टी के हाथों से जा चुका है। अगली बार की रणनीति बनाने के लिए केजरीवाल के पास काफी समय है। ऐसे में पंजाब की सत्ता उन्हें आकर्षित कर सकती है। पंजाब में उनकी दखलंदाजी बढ़ने की पूरी संभावना है। इस सूरत में राज्य में असंतोष बढ़ सकता है और इससे बिखराव भी संभव है।
घट जाएगा कद
केजरीवाल खुद भी विधानसभा चुनाव हार गए हैं। यह उनके व्यक्तिगत राजनीतिक करियर के लिए एक ऐसा झटका है, जिससे वह शायद अभी बाहर न निकल पाएं। अब वह अपनी नीतियों पर उतने मुखर नहीं हो पाएंगे, जितने पहले हुआ करते था और न ही उनकी बातों को अब पहले जैसी गंभीरता से लिया जाएगा। इसके अलावा, विपक्षी दलों के बीच भी उनका कद घटेगा। कुल मिलाकर राष्ट्रीय स्तर पर खुद को स्थापित करने की केजरीवाल की कोशिशों पर दिल्ली चुनाव की हार एक तरह से फुल स्टॉप है।