स्लो प्वाइजन क्या है?
स्लो पॉइजन में थैलियम का नाम बताया जा रहा है। यह एक ऐसा स्लो पॉइजन है, जो धीरे-धीरे शरीर पर असर करता है। अगर कोई थैलियम के संपर्क में आता है, तो इसके शुरुआती 48 घंटे में वोमिटिंग, डायरिया, सर घूमने जैसे लक्षण नजर आने लगते हैं। कुछ दिन में शरीर के सिस्टम को डैमेज करने लगते हैं। इसका असर मसल्स पर भी दिखता है।
यहां तक कि इंसान की मेमोरी चली जाती है और पीड़ित कोमा में चला जाता है, जिससे कुछ दिनों में ही मरीज की मौत हो जाती है। जहर में ज्यादा जहरीले केमिकल शामिल होते हैं, जैसे साइनाइड, पेंट थिनर, या घरेलू सफाई प्रोडक्ट हैं। ये बहुत से जहर ऐसे पाएं जाते हैं, जिन्हें निगलने, सांस के जरिए लेने या किसी और तरह लेने से शरीर पर तुरंत असर करता है।
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स्लो प्वाइजन के लक्षण
- मतली आना
- वोमिटिंग होना
- शरीर में दर्द होना
- सांस लेने में परेशानी
- दौरा पड़ना
- भ्रम या त्वचा का रंग बदलना
स्लो पॉइजन उस जहर को कहते हैं जिसे दिए जाने पर पीड़ित के शरीर में लक्षण घंटों, दिनों या महीनों तक नजर नहीं आते हैं। इस तरह का मामला ज्यादा जानलेवा होता है, क्योंकि पीड़ित को उपचार की जरूरत महसूस नहीं होती है और जब होती है तब तक काफी देर हो जाती है।
जहर का पता कैसे लगता है?
अगर किसी की मौत हो जाती है तो इसकी वजह जानने के लिए पोस्टमार्टम किया जाता है और अगर पोस्टमार्टम के बाद भी साफ नहीं होता है तो विसरा की जांच कराई जाती है।
क्या है विसरा (Viscera)?
विसरा शव से लिए गए खास सैंपल को कहते हैं। इसमें शरीर के कोमल अंदर के अंगों (फेफड़े, दिल और पाचन तंत्र, उत्सर्जन(Excretion) और रिप्रोडक्टिव सिस्टम के अंग शामिल होते हैं) के छोटे भाग को जमा करते हैं। इसके बाद विसरा की जांच होती है।
अगर किसी की मौत जहर से हुई है तो उसके शरीर के अंदर के अंगों में जहर का असर रहता है और मृतक को कौन सा जहर दिया गया यह पता करने के लिए विसरा की टॉक्सिकोलॉजिकल जांच कराई जाती है। जांच से पता चल जाता है कि मृतक को कौन सा जहर दिया गया था।
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