Mrs Movie Review: (Ashwani Kumar) सान्या मल्होत्रा की फिल्म Mrs स्ट्रीम होने के लिए तैयार है, फिल्म देखने के बाद आप कहेंगे कि इसमें नया क्या है ? ये कहानी तो आपने मलयालम ब्लॉकबस्टर – द ग्रेट इंडियन किचन से लेकर, अपने-अपने घरों में रोज ही देखी है। तो इसे बार-बार सुनाने की, दिखाने की जरूरत क्या है? मगर, जरूरत है… ताकि जब खाने की परमाइशें आप मां, भाभी या पत्नी से करें, तो थोड़ा सोचे। जब अपनी झूठी थाली को मेज पर छोड़कर उठ जाएं, तो ये सीख बार-बार समझ आए कि आपके खाने, झूठे बर्तन धोने, घर के झाड़ू-पोछा लगाने वाली इन किरदारों की अपनी जिंदगी है, अपने सपने हैं, अपनी थकान है, अपनी जरूरतें हैं… जो आपकी जिंदगी, आपके सपने, आपकी थकान, आपकी भूख और जरूरतें पूरी-पूरी करते-करते खत्म हो रही हैं।
कैसी है फिल्म की कहानी?
चार साल पहले द ग्रेट इंडियन किचन रिलीज हुई थी, तो Jeo Baby की लिखी और डायरेक्ट की हुई इस फिल्म ने बहुत सारी आंखें खोली थी। सिनेमा को चाहने वालों ने इसे देखा भी, लेकिन हिंदी हार्टलैंड तक ये फिल्म अब पहुंचेगी – हिंदी में – Mrs के साथ।
Jeo Baby की कहानी में अनु सिंह चौधरी, हरमन बवेजा और आरती कडव, जो Mrs की डायरेक्टर भी हैं, उन्होंने कुछ बदलाव किए हैं। जैसे मुख्य किरदार का पति, टीचर की जगह Mrs में मेल गाइनी है, जो औरतों के शरीर की बीमारी को समझता है, लेकिन अपने पत्नी की मन की बीमारी को नहीं समझ पाता।
कहानी में हुए कुछ बदलाव
एक मॉर्डन फैमिली का जामा ओढ़े इस डॉक्टर फैमिली में, दिवाकर को देखकर आप समझ भी नहीं पाते कि वो दिखने में भले ही नए ख्यालात का लगे, लेकिन असल में वो अपने रिटायर्ड डॉक्टर डैड की तरह ही है, जो बीवी को घर का काम करने, खाना बनाने, सफाई करने और फिर अपनी जरूरत के हिसाब से सेक्स करने के लिए यूज करता है। फिर वो ये समझता है कि घर में औरतों की जिंदगी ऐसे ही चलती है। चूंकि उसकी मां आज तक बिना बोले यही सब करती आई है, तो उसकी बीवी को भी यही करना चाहिए।
द ग्रेट इंडियन किचन के मुकाबले Mrs का किचन थोड़ा मॉर्डन है, वहां खिड़किया भीं ज्यादा है। लेकिन ससुर जी को सिल-बट्टे की चटनी ही पसंद है। थोड़ा अप-ग्रेडेड किचन होने के बाद भी, सड़ चुकी पाइपों से बूंद-बूंद टपकते गंदे पानी की तरह, इन किचन्स में अब भी बहुत कुछ बदला नहीं है। बार-बार मन को मारकर, अपने उस डांस को छोड़कर, जो उसे उड़ने की आजादी देता है, ऋचा किचन से इस घर को और अपने रिश्तों को संभालने की कोशिश करती है। लेकिन रोटी और फुल्कों के बीच की रेस में, वो हांफती रहती है। किचन सिंक की टूटी हुई पाइप को ठीक कराने की उसकी बार-बार अनसुनी होती रिक्वेस्ट के बीच, आपको पाइप से टपकते गंदे पानी की बदबू से उलझने होने लगती है और इसे गंदे पानी को शिंकजी की जगह रख और फेंकने के बीच, आपको भी शर्म और आजादी दोनो एक झटके में महसूस होती है।
फिल्म से कर पाएंगे रिलेट
क्लाइमेक्स में पहला फुल्का जला और दूसरा फुल्का बेहतर होने की डायलॉग, जैसे आपको और जला जाता है और समझाता है कि बार-बार ऐसी कहानियों को – द ग्रेट इंडियन किचन और Mrs. जैसी फिल्मों के जरिए कहना क्यों जरूरी है। Mrs आपको एंटरटेन नहीं करती, क्योंकि ये पलट कर हर घर के किचन की कहानी को आपको फिर से सुनाती है, जहां बनकर डिशेज डाइनिंग टेबल से ज़ुबान तक तो आते अच्छे लगते हैं। लेकिन जिसे बनाने में किचन की स्मेल, तेल के डिब्बे के चिपचिपे अहसास जैसे हैं, जिससे मन खट्टा हो जाता है। लेकिन अगर वाकई किचन से लेकर दिमाग तक की सफाई करनी है, तो इस एहसास को तो झेलना ही होगा।
फिल्म का डायरेक्शन
आरती कडव ने द ग्रेट इंडियन किचन की कहानी को एक किरदार के साथ पेश करती हैं, जो असरदार है। हां गानों के तौर पर इसमें और भी काम किया जा सकता था। बैकग्राउंड स्कोर ठीक-ठाक है। लेकिन एक मिडिल क्लास फैमिली का सेट-अप और किचन से लेकर घर के अंदर तक की सिनेमैटोग्राफी अच्छी है। ऋचा बनी सान्या मल्होत्रा के डांसिंग टैलेंट से लेकर, उनके एक्सप्रेशन्स बहुत शानदार हैं। निशांत दहिया ने भी अपना पार्ट अच्छे से किया है। मगर कंवलजीत सिंह ने मॉर्डन इमेज के पीछे ओल्ड-स्कूल ट्रीटमेंट वाले ससुर का किरदार जैसे निभाया है, उसने Mrs की इंटेसिटी को बढ़ा दी है।
Mrs फील-गुड फिल्म नहीं है, लेकिन जरूरी फिल्म है, जो वीकेंड पर मां, पत्नी, बहन, बुआ… घर की हर महिला के साथ देखना, उनके थैंकलेस, 24 X 7 अनपेड जॉब के लिए एक थैंक्यू टोकन की तरह है।
Mrs को 5 में से 3.5 स्टार
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