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Flash Back: ये गूंगे कौन हैं और कहां छुपे हैं? इस जिज्ञासा ने ललिता पवार को बनाया चमकता सितारा

Flash Back: सन् 1928 की बात है। उन दिनों फिल्मों ने बोलना नहीं सीखा था। 10 साल की एक बालिका जिसे प्यार से अम्बू कहते थे, अपने माता-पिता के साथ छुट्टियां बिताने पुणे आती है। रात को वे आर्यन सिनेमा में रामायण फिल्म देखने जाते हैं। बालिका को ताज्जुब होता है कि सारे पात्र हिलते-डुलते […]

Edited By : Sumit Kumar | Updated: Apr 18, 2023 19:31
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Flash Back: सन् 1928 की बात है। उन दिनों फिल्मों ने बोलना नहीं सीखा था। 10 साल की एक बालिका जिसे प्यार से अम्बू कहते थे, अपने माता-पिता के साथ छुट्टियां बिताने पुणे आती है। रात को वे आर्यन सिनेमा में रामायण फिल्म देखने जाते हैं। बालिका को ताज्जुब होता है कि सारे पात्र हिलते-डुलते तो हैं पर बोलते क्यों नहीं?

इससे पहले उसने कभी फिल्म नहीं देखी थी। फिल्म समाप्त होने पर वह जिज्ञासावश पर्दे के पीछे झांक कर देखती है कि इतनी अच्छी उछलकूद करने वाले ये गूंगे कौन हैं और ये कहां छुपे हैं? पर वहां सिवाय एक चौकीदार के कोई नजर नहीं आता। वह लड़की चौकीदार से ही सवाल कर अपनी जिज्ञासा शांत करना चाहती है। चौकीदार उसे बताता है कि अगर इन गूंगों को प्रत्यक्ष देखना हो तो आर्यन फिल्म कंपनी में जाओ। वहां सब मिल जाएंगे।

दूसरे दिन वह लड़की कुछ सहेलियों के साथ आर्यन फिल्म कंपनी पहुंच जाती है। एक विशाल परकोटे से घिरे आर्यन फिल्म कंपनी के बाड़े में उस समय किसी फिल्म की शूटिंग चल रही थी। कई बच्चे मुंडेर पर चढ़कर बड़े कौतूहल से यह नजारा देख रहे थे। अम्बू भी अपनी सहेलियों के साथ मुंडेर पर चढ़ जाती है।

अम्बू की बहादूरी देख प्रोड्यूसर ने दिया एक्टिंग का मौका

जब ये बच्चे अपनी शरारत के कारण कलाकारों के काम में व्यवधान डालने लगते हैं, तो वहां का चौकीदार छड़ी से डराकर उन्हें भगा देता है, लेकिन अम्बू नहीं भागती। हवा में लहराती चौकीदार की छड़ी अम्बू के हाथ में पड़ जाती है। उसके कोमल शरीर से रक्त बहने लगता है। शूटिंग बंद हो जाती है और कलाकार उसकी मरहम-पट्टी में लग जाते हैं। मगर उन्हें यह देखकर हैरानी होती है कि बालिका अपनी चोट से बेखबर बस उन्हें ही एकटक घूरे जा रही थी।

आर्यन फिल्म कंपनी के भागीदार एन. डी. सरपोल्दार अम्बू के साहस और जिज्ञासा से प्रभावित होकर उससे सवाल करते हैं- ‘तुम फिल्मों में अभिनय करोगी’? अगर इच्छा हो, तो अपने माता-पिता को लेकर कल आना और दूसरे दिन अम्बू आर्यन फिल्म कंपनी में अपने माता-पिता को लेकर जाती है और उनकी सहमति से वह इस कंपनी में तीन वर्ष के लिए अनुबंधित हो जाती है। उसका मासिक वेतन तय होता है- अठारह रुपये।

अम्बू नाम की वह बालिका कोई और नहीं बल्कि हिन्दी फिल्म जगत की सर्वश्रेष्ठ चरित्र अभिनेत्री ललिता पवार थीं। ललिता पवार आज नहीं हैं, मगर अपनी अभिनीत अनगिनत फिल्मों के जरिए वे हमेशा याद रहेंगी।

First published on: Apr 18, 2023 07:31 PM

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