Hisaab Barabar Review: Ashwini Kumar: ‘हिसाब बराबर’ (Hisaab Barabar) का प्रमोशन ऐसा हुआ जैसे ये फिल्म बैंकिंग सेक्टर की पोल खोलकर रख देगी। आर माधवन और कृति कुल्हारी जैसे एक्टर्स के साथ इस ओटीटी रिलीज में राइटर डायरेक्टर अश्विनी धीर का नाम भी जुड़ा था, जिन्होंने ‘अतिथि कब जाओगे’ और ‘सन ऑफ़ सरदार’ जैसी फिल्में डायरेक्ट की हैं, तो थोड़ी उम्मीदें भी थी। ट्रेलर भी शानदार था तो एक्सपेक्टेशन्स का मीटर और ऊंचा गया। लेकिन ऊंची दुकान और फीके पकवान जैसा हाल इस ज़ी5 पर रिलीज फिल्म का हुआ है।
कुछ ऐसी है फिल्म की कहानी
1 घंटे 51 मिनट की ये कहानी शुरू होती है राधे मोहन शर्मा जी के साथ, जो इंडियन रेलवे में टीटीई हैं। हिसाब के पक्के हैं, क्योंकि वो बनना चाहते थे – चार्टर्ड एकाउंटेंट, लेकिन हालात ने उन्हें रेलवे में टिकट चेकर बना दिया। अब दिल्ली के किस स्टेशन पर वो अपने फ्री टाइम की क्लास लगाते हैं, वो तो समझ नहीं आता। लेकिन पत्नी से अलग होने के बाद वो बेटे की परवरिश करते हैं, अपना हिसाब हमेशा बराबर करते है। अपने साथ-साथ दूसरे के रिटर्न भी फाइल करते हैं। इस कहानी में विलेन है मिकी मेहता, जो DO-Bank का मालिक है और लोगों के अकाउंट के इंटरेस्टिंग 1-2 रूपए की चोरी करके, 2 हज़ार करोड़ कमा चुका है। मिकी मेहता, ऐसा बैंक चेयरमैन है जो बड़ी-बड़ी पार्टी करता है, नेता के साथ मिलकर चोरी में भी हेरा-फेरी करता है।
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जागरूक करने की कहानी है
अब हिसाब-बराबर की कहानी जरूरी और अच्छी हो सकती थी, क्योंकि इसमें आम आदमी की छोटी-छोटी सी लापरवाही से बड़ा-बड़ा घोटाला कैसे होता है, ये समझाया जा सकता था जो लोगों को जागरूक कर सके। लेकिन रितेश शास्त्री के साथ मिलकर अश्विनी धीर ने इसके किरदारों को इतना कार्टून बना दिया है कि ना उन पर हंसी आती है, ना वो कुछ सिखाते हैं, बस आपका वक्त खराब करते हैं। इंस्पेक्टर पूनम जोशी और राधे की जी लव-स्टोरी के चक्कर में, इन्वेस्टिगेशन का बंटाधार कर दिया गया। रश्मि देसाई को मोनालिसा नामक नैनी बनाकर, इरिटेटिंग कॉमेडी कराकर ऐसा माहौल तैयार किया गया, कि समझ नहीं आया कि अश्विनी धीर फिल्म को ले कहां जाना चाहते हैं।
सॉन्ग ने किया बोर
गाने फिल्म की लंबाई और बोरियत दोनो बढ़ाते हैं, सेट के नाम पर रेलवे स्टेशन नकली लगता है, बैंक के नाम पर सेट पर किसी सस्ते कॉरपोरेट ऑफिस का भाड़े पर लिया गया कमरा लगता है। विज़ुअल इफेक्ट्स इससे अच्छे आजकल यू-ट्यूब चैनल पर होते हैं। और मिकी मेहता के विलनियस कैरेक्टर से कॉमेडी करने वाले राइटर को फिलहाल ब्रेक पर जाकर योग करने की जरूरत है, ताकि नए इंडिया, नए भारत की सही सोच लिखने के लिए दिमाग में जगह बने।
वर्डिक्ट
हिसाब बराबर में वक्त, अवेयरनेस और एंटरटेनमेंट के नुकसान से बस एक चीज़ बचाती है, और वो हैं माधवन। अपनी कोशिशों से माधवन, आपको थोड़ा एंगेज ज़रूर करते हैं, लेकिन नए भारत के जागने का ज्ञान देकर, वो जितनी सोई हुई कहानी लेकर आए हैं, उससे लगता है – द रेलवे मैन और रॉकेटरी जैसे शानदार प्रोजेक्ट्स के बाद, उन्होने बस यूं ही इस प्रोजेक्ट को इंडिया शाइनिंग वाले थीम के चक्कर में साइन कर लिया। अच्छे मौके को खराब कैसे करना है, इसका लिए हिसाब-बराबर सबसे बेस्ट एग्जांपल है।
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