दिव्या अग्रवाल, नई दिल्ली: यूनिवर्सिटी ग्रांट कमीशन (UGC) बहुत जल्द हमारे पूर्वजों की ओर से शुरू की गयी पांडुलिपि की पढ़ाई शुरू कराएगा। इससे आने वाली पीढ़ियों को ‘पांडुलिपि’ बारे में जानकारी मिल सकेगी। आइए, आज जानते हैं कि आखिर क्या है पांडुलिपि।
पांडुलिपि का अर्थ है, हस्तलेख यानी हाथ से लिखी गई रचना। संस्कृत के पांडु और लिपि से मिलकर ‘पांडुलिपि’ शब्द बना है। पांडु का अर्थ होता है पीला या सफेद। दरअसल, पांडुलिपि का ज्ञान देश की विरासत और विविधता को बनाए रखता है। साथ ही पांडुलिपि का ज्ञान भारतीय विरासत की गहरी सोच को भी समझने में मददगार साबित होता है।
दरअसल, पांडुलिपि हमारे पूर्वजों के द्वारा पेड़ के छाल या पत्थर पर मुद्रित दस्तावेज होता है। पहले के समय पर लिखी गई कई सारी चीज हमें समझ में नहीं आती हैं और उसी की पढ़ाई के लिए अब UGC ने सिलेबस की शुरूआत जल्द करने की बात कही है।
इसके लिए 11 सदस्य पैनल का गठन किया गया है। राष्ट्रीय पांडुलिपि मिशन के पूर्व निदेशक प्रफुल्ल मिश्रा, आईआईटी मुंबई के प्रोफेसर मल्हार कुलकर्णी, स्कूल ऑफ़ लैंग्वेज गुजरात विश्वविद्यालय के पूर्व निदेशक वसंत भट्ट और NCERT दिल्ली में संस्कृत के प्रोफेसर जितेंदर कुमार मिश्रा पैनल में शामिल हैं।
आने वाले समय में ऐसे और पाठ्यक्रम तैयार किए जाएंगे
राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 का असर अब धीरे-धीरे जमीनी स्तर पर दिखने को मिल रहा है। भारत के इतिहास और संस्कृति से अपने युवाओं को रू-ब-रू करने के मद्देनजर ये मात्र पहला कदम है। आने वाले समय में ऐसे कई और पाठ्यक्रम तैयार किए जाएंगे, जो भारत के पुरातन इतिहास को न सिर्फ युवाओं के बल्कि पूरे समाज के सामने उजागर करेंगे। ये कोर्स छात्रों के लिए ऑप्शनल होगा। फिलहाल इससे पोस्ट ग्रेजुएशन के छात्रों के लिए शुरू किया जा रहा है।
यूजीसी के अध्यक्ष एवं जगदीश कुमार ने कहा विभिन्न भारतीय भाषाओं और लिपियों में उपलब्ध पांडुलिपियों में दर्शन विज्ञान साहित्य धर्म और बहुत कुछ विविध विषयों को इस पाठ्यक्रम में शामिल किया जाएगा। साथ ही ये पांडुलिपियां भारत के इतिहास, बौद्धिक योगदान और परंपराओं में अमूल्य अंतर्दृष्टि भी प्रदान करेंगे। साफ है कि भारत के विभिन्न राज्य सदियों पुराने ज्ञान के भंडार हैं, जो अतीत के विचारों विश्वासों और प्रथाओं को दर्शाते हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति 2020 की इसी के उद्देश्य को पूरा करती है।