केंद्रीय माध्यमिक शिक्षा बोर्ड (CBSE) के अधिकारियों के अनुसार, “डमी स्कूलों” में नामांकित कक्षा 12वीं के छात्रों को आगामी बोर्ड परीक्षाओं में बैठने से रोका जा सकता है। केंद्रीय एजेंसी ने कहा कि रेगुलर स्कूल न जाने की जिम्मेदारी भी संबंधित छात्रों और अभिभावकों पर है।
बोर्ड ने 29 स्कूलों में किया औचक निरीक्षण
सीबीएसई ने पिछले साल दिसंबर में दिल्ली, बेंगलुरु, वाराणसी, बिहार, गुजरात और छत्तीसगढ़ के 29 स्कूलों में ‘डमी’ छात्रों के नामांकन की जांच के लिए कई औचक निरीक्षण किए थे।
डमी स्कूल जाने वाले सबसे ज्यादा इंजीनियरिंग और मेडिकल स्टूडेंट
इंजीनियरिंग और मेडिकल एंट्रेंस एग्जाम की तैयारी करने वाले बहुत से छात्र डमी स्कूलों में दाखिला लेना पसंद करते हैं, ताकि वे पूरी तरह से प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी पर ध्यान केंद्रित कर सकें। वे कक्षाओं में नहीं जाते और सीधे बोर्ड परीक्षाओं में शामिल हो जाते हैं।
उम्मीदवार कुछ राज्यों के छात्रों के लिए उपलब्ध मेडिकल और इंजीनियरिंग इंस्टीट्यूट्स में कोटा को ध्यान में रखते हुए भी डमी स्कूल चुनते हैं। उदाहरण के लिए, दिल्ली में कक्षा 11वीं और 12वीं पूरी करने वाले उम्मीदवारों को दिल्ली राज्य कोटे के तहत राष्ट्रीय राजधानी के मेडिकल कॉलेजों में एडमिशन के लिए विचार किया जाता है।
कोटा में लगे डमी स्कूल के पोस्टर
इस बीच, कोटा में अलग-अलग डमी स्कूलों के पोस्टर और उनकी फीस पूरे शहर में लगाई गई है। डमी स्कूल अपने संबद्धित बोर्ड के आधार पर अलग-अलग फीस लेते हैं।
जानें एक्सपर्ट की राय
कोटा में प्रतियोगी परीक्षा के उम्मीदवारों में आत्महत्या की संख्या इस साल रिकॉर्ड ऊंचाई पर पहुंच गई है, एक्सपर्ट्स ने “डमी स्कूलों” के कॉन्सेप्ट के खिलाफ चेतावनी दी है, उनका कहना है कि रेगुलर स्कूलों से जल्दी दूर रहने वाले छात्र अक्सर सीमित व्यक्तित्व विकास और वृद्धि से जूझते हैं।