Uttar Pradesh Government Teachers Financial Crisis, लखनऊ: एक तरफ देश की प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व वाली सरकार ‘सबका साथ-सबका विकास’ के दावे करती नहीं थक रही, लेकिन दूसरी ओर हकीकत कुछ और ही है। उत्तर प्रदेश में भारतीय जनता पार्टी (BJP) की डबल इंजन वाली सरकार के बावजूद धार्मिक शिक्षा व्यवस्था का जनाजा निकला हुआ है। हालात इतने खराब हैं कि प्रदेश के 7442 मदरसों में पढ़ा रहे 21546 टीचर्स को पिछले 5 साल से वेतन नहीं मिल रहा और बीवी-बच्चों का पेट पालने के लिए ये तरह-तरह के दूसरे काम कर रहे हैं। वो काम, जो इनकी गरिमा को भी शोभा नहीं देता। कोई साड़ी बुन रहा है-कोई टैक्सी चला रहा है तो कोई साइकल पंक्चर की दुकान पर नौकरी कर रहा है।
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राज्य के 7442 मदरसों में बच्चों को पढ़ा रहे 21546 टीचर्स को पिछले पांच साल से नहीं मिल रही तनख्वाह
बता देना बेहद जरूरी है कि एक मार्च 2018 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने दिल्ली में कहा था, ‘पूरी खुशहाली और समग्र विकास तभी संभव है, जब आप यह देखें कि मुस्लिम युवाओं के एक हाथ में कुरान शरीफ है तो दूसरे हाथ में कंप्यूटर है’। कुछ इसी तरह का बयान इसी साल उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने भी दिया था। दूरदर्शन को दिए एक इंटरव्यू में योगी ने का था, ‘हम लोगों को तय करना होगा कि हम अपनी वर्तमान पीढ़ी को कहां ले जाना चाहते हैं’। उनके इस बयान का मतलब साफ था कि प्रदेश की सरकार मदरसों के बच्चों को दूसरे स्कूलों की तरह विज्ञान और अंग्रेजी समेत आधुनिक शिक्षा देना चाहती थी। इन दावों पर गौर करें तो प्रदेश के मदरसों में मॉडर्न टीचर्स की नियुक्ति भी की गई, जिनकेे वेतन का 60 प्रतिशत केंद्र सरकार की तरफ से 40 प्रतिशत हिस्सा राज्य सरकार की तरफ से दिया जाना था।
न केंद्र ने 60 प्रतिशत दिया तो न योगी सरकार का 40 प्रतिशत मिला
अब शिक्षा के उत्थान के ये दावे सिर्फ दावे ही नजर आते हैं। पता चला है कि (सोशल मीडिया पर चल रहे BBC के एक वीडियो के मुताबिक) उत्तर प्रदेश में चल रहे 7442 मदरसों में पढ़ा रहे 21546 टीचर्स को पिछले 5 साल से वेतन ही नहीं मिला है। हालांकि पोस्ट ग्रेजुएट टीचर्स को 12 हजार तो ग्रेजुएट को 6 हजार रुपए का वेतन दिया जाना तय है, लेकिन न तो केंद्र सरकार ने अपने हिस्से का 60 प्रतिशत दिया और न ही प्रदेश सरकार पिछले पांच साल से अपने हिस्से का 40 प्रतिशत दे रही है।
फिर कैसे चलता है परिवार का गुजारा?
इस रुकी हुई रकम का आंकड़ा छोटा नहीं है। कुल 1762 करोड़ रुपए सरकार की तरफ बकाया हैं, वहीं मदरसों के मॉडर्न टीचर्स के सामने दो जून की रोटी का संकट आन खड़ा हुआ है। अब सवाल उठता है कि फिर कैसे चलता है परिवार का गुजारा? इस सवाल के जवाब में गोरखपुर के एक मदरसे में 28 साल तक बच्चों को पढ़ चुके मोहम्मद आजम ने बताया कि पिछले साढ़े छह साल तक वेतन नहीं मिलने से वह इतने निराश हुए कि जून में इस्तीफा दे दिया। कहीं और नौकरी नहीं मिलने के चलते इन दिनों वह एक होम ट्यूटर की भूमिका में खींच-तानकर 10 हजार रुपए कमा पा रहे हैं। जिले के एक अन्य मदरसे के मॉडर्न टीचर जुनैद आलम टू व्हीलर टैक्सी चलाकर अपने परिवार का पेट पाल रहे हैं।
संत कबीर नगर के इम्तियाज़ अहमद बताते हैं कि छह साल से केंद्र सरकार से 12 हजार रुपए का वेतन नहीं मिला है। हालांकि राज्य की सरकार दो-तीन हजार रुपए दे देती थी, लेकिन अब पिछले कुछ वक्त से वह भी नहीं आ रहा। अपना और अपने परिवार का पेट पालने के लिए वह पांच घंटे मदरसे में विज्ञान पढ़ाने के बाद दोपहर दो बजे से साइकल रिपेयर की दुकान पर नौकरी करते हैं, जहां से उन्हें रोज के 100 रुपए मिलते हैं। आंसू पोछते हुए इम्तियाज़ ने कहा, ‘मैं एक साल से अपने बच्चों की स्कूल की फीस नहीं दे पा रहा हूं’। इसी तरह गोरखपुर के एक मदरसे में पढ़ा रही मॉडर्न टीचर शमा शुक्ल बताती हैं कि तनख्वाह ना मिलने के चलते परिवार चलाने के लिए वह सिलाई करती हैं।
बनारस के एक मदरसे में मॉडर्न टीचर विनोद मौर्य की मानें तो वह पसमांदा समाज के बच्चों को मुख्यधारा में लाने के लिए कोशिश कर रहे हैं, लेकिन पिछले साढ़े पांच साल से वेतन नहीं मिल रहा तो घर की माली हालत गड़बड़ाना लाजमी है। बनारस के ही एक मदरसे के पिछले 11 साल से हिंदी और विज्ञान पढ़ा रहे अमीर अशरफ मदरसे की ड्यूटी के बाद पास ही के पावर लूम में बनारसी साड़ी बुनने पहुंच जाते हैं। वह कहते हैं, ‘तनख्वाह नियमित आती (2017 के बाद से नहीं आ रही) तो मैं भी अपने बच्चों के भविष्य के बारे में सोचता। कभी-कभी तो ऐसा होता है कि बच्चों को दूध पिलाने के लिए भी पैसे नहीं रहते हैं’।
1993 में शुरू की थी केंद्र सरकार ने योजना, अब ये स्थिति
नाराज टीचर्स ने बताया कि केंद्र सरकार ने मदरसों में अच्छी गुणवत्ता की शिक्षा देने वाली योजना 1993 में शुरू की थी। मदरसों में मॉडर्न टीचर्स नियुक्त किए गए। हालांकि पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने इस योजना को काफी अच्छे ढंग से चलाया, लेकिन बाद में इसका दिवाला पिट गया। साथ ही यह बात भी ध्यान देने वाली है कि हाल ही में जून में भोपाल में भाजपा के कार्यकर्ता सम्मेलन में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पसमांदा मुसलमानों के पिछड़ेपन का मुद्दा उठाते हुए कहा था कि पार्टी की ‘सबका साथ, सबका विकास’ की नीति के तहत सरकार पसमांदा मुसलमानों को विभिन्न योजनाओं से जोड़ने में लगी है।
…लेकिन आस अभी बाकी है, काश! प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी वाजिब सा जवाब दे दें
उधर, उत्तर प्रदेश मॉडर्न टीचर्स एकता संघ की मानें तो वेतन जारी नहीं होने की वजह इस योजना को 2021 में मानव संसाधन विकास मंत्रालय से अल्पसंख्यक कल्याण विभाग में स्थानांतरित कर दिया जाना है। 21 हजार से ज्यादा टीचर्स का बकाया वेतन अब बढ़कर 1762 करोड़ रुपए के करीब हो गया है। हालांकि इसे हासिल करने के लिए केंद्र और राज्य सरकारों के साथ पत्राचार जारी है। उत्तर प्रदेश के मदरसा शिक्षा बोर्ड के चेयरमैन डॉ. इफ्तिखार अहमद जावेद बताते हैं कि मॉडर्न टीचर्स का वेतन देने के लिए उन्होंने भी प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को पत्र लिखा था, लेकिन अभी कोई जवाब नहीं मिला है।