अगर आपको लगता है कि लग्जरी कारों का बेड़ा सिर्फ उन अरबपतियों के पास होता है जिनके पास बैंक खाते और विशाल संपत्ति होती है, तो वृंदावन आपके लिए एक सरप्राइज है. राधा केलिकुंज के मृदुभाषी संचालक प्रेमानंद महाराज बिना किसी बैंक खाते के रहते हैं, अपनी कोई संपत्ति न होने का दावा करते हैं और जोर देकर कहते हैं कि वे कभी पैसे नहीं लेते.
फिर भी, हर सुबह जब वे अपने आश्रम से बाहर निकलते हैं, तो वृंदावन की संकरी गलियां लग्जरी कारों के शोकेस में बदल जाती हैं.
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मस्कुलर लैंड रोवर डिफेंडर से लेकर स्लीक पोर्श कायेन तक, प्रीमियम ऑडी क्यू3 और स्कोडा कोडियाक से लेकर विशाल टोयोटा फॉर्च्यूनर लेजेंडर तक, यह नजारा कार प्रेमियों को अपने फोन निकालकर एक तस्वीर लेने के लिए मजबूर कर देता है. विरोधाभास लाजवाब है: एक संत जो वैराग्य का उपदेश देता है, लेकिन करोड़ों की कारों में आता है.
आखिर ये कारें किसकी हैं?
इसका जवाब महाराज जी के गैराज में नहीं है, क्योंकि उनके पास गैराज नहीं है, बल्कि उनके अनुयायियों की भक्ति में है. खबरों के मुताबिक, वे जिस भी कार में सफर करते हैं, वह उनके किसी न किसी शिष्य की होती है.
यह सिर्फ उन्हें आरामदायक सवारी देने की बात नहीं है; ज्यादातर लोग उन्हें खुद चलाने पर जोर देते हैं, जो समर्पण और सेवा का एक प्रतीकात्मक काम है. उनके लिए, अपनी बेशकीमती कारों को अर्पित करना भोग-विलास नहीं, यह पूजा है.