---विज्ञापन---

10 साल में 12 लाख करोड़ के लोन Write-Off, लेकिन क्या इसे कर्ज माफी माना जाए?

Bank Loan: बैंकों को पिछले 10 सालों में बड़ा आर्थिक झटका लगा है। उन्हें बड़े पैमाने पर लोन को बट्टे खाते में डालना पड़ा है, क्योंकि लोन लेने वालों ने उसे वापस चुकाया नहीं।

Edited By : News24 हिंदी | Updated: Dec 16, 2024 17:25
Share :
Loan

Loan Write Off: लोन लेकर न चुकाने वालों के चलते बैंकों की आर्थिक सेहत बुरी तरह प्रभावित हो रही है। बैंकों ने वित्‍त वर्ष 2015 से 2024 के बीच 12.3 लाख करोड़ रुपये के लोन बट्टे खाते (Write Off) में डाले हैं। इनमें से 53% यानी करीब 6.5 लाख करोड़ के लोन तो पब्लिक सेक्टर के बैंकों ने पिछले पांच वर्षों (FY20-FY24) में ही बट्टे खाते में डाले हैं।

इतना रहा है NPA

लोन के बट्टे खाते में जाने के सबसे ज्यादा मामले वित्त वर्ष 19 में देखने को मिले। इस दौरान 2.4 लाख करोड़ के लोन राइट ऑफ किए गए। वित्त राज्य मंत्री पंकज चौधरी के अनुसार, 30 सितंबर 2024 तक पब्लिक सेक्टर बैंकों का ग्रॉस NPA (Non-Performing Assets) 3,16,331 करोड़ रुपए और प्राइवेट सेक्टर बैंकों का ग्रॉस NPA 1,34,339 करोड़ रुपए रहा। सरकारी बैंकों का ग्रॉस NPA कुल बकाया कर्ज का 3.01% था, जबकि निजी क्षेत्र के बैंकों में यह 1.86% रहा।

---विज्ञापन---

यह भी पढ़ें – Zomato को क्यों मिला 803 करोड़ का नोटिस? समझिए GST का पूरा गणित

SBI रहा सबसे आगे

लोन को बट्टे खाते में डालने के मामले में SBI सबसे आगे रहा। भारतीय स्टेट बैंक (SBI), ने इस अवधि के दौरान 2 लाख करोड़ रुपये के लोन राइट ऑफ किए। जबकि पंजाब नेशनल बैंक (PNB) में यह आंकड़ा 94,702, करोड़ रुपये रहा। एक रिपोर्ट के अनुसार, वित्त वर्ष 20-24 के बीच यूनियन बैंक ऑफ इंडिया ने 82,323 करोड़, बैंक ऑफ बडौदा ने 77,177 करोड़ और बैंक ऑफ इंडिया ने 45,467 करोड़ रुपये के लोन को बट्टे खाते में डाला है।

---विज्ञापन---

क्यों ऐसा करते हैं बैंक?

इस जानकारी के सामने आने के बाद एक सवाल मन में उठता है कि क्या इसे कर्ज माफी कहा जाए? दूसरे शब्दों में कहें तो क्या यह मान लिए जाए कि बैंकों ने जानबूझकर पैसा न चुकाने वालों को माफी दे दी है? इसका जवाब है नहीं। टेक्निकल भाषा में लोन राइट ऑफ कर्ज माफी नहीं होता। एक तरह से कह सकते हैं कि नियमों के अनुसार बैंक अपनी बैलेंसशीट को साफ-सुथरा रखने के लिए ऐसा करते हैं।

क्या हैं वसूली के रास्ते?

आरबीआई (RBI) के नियमानुसार, बैंक विलफुल डिफॉल्टरों से वसूल न होने वाले कर्ज को पहले नॉन परफ़ॉर्मिंग एसेट (NPA) करार देते हैं। और जब बैंक स्तर पर वसूली की कोई संभावना नहीं बचती तो 4 साल बाद उसे बट्टे खाते में डाल दिया जाता है। लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि कर्ज लेने वाला देनदारी से मुक्त हो गया है। बैंक वसूली के लिए दूसरे तरीके अपनाते हैं। इसमें सिविल कोर्ट और लोन रिकवरी न्यायाधिकरण (DRT) में मुकदमे शामिल हैं। इसके साथ ही वह सरफेसी एक्ट, 2002 और इंसॉल्वेंसी एंड बैंकरप्सी कोड, 2016 के तहत कार्रवाई कर सकते हैं।

HISTORY

Edited By

News24 हिंदी

First published on: Dec 16, 2024 05:25 PM

Get Breaking News First and Latest Updates from India and around the world on News24. Follow News24 on Facebook, Twitter.

संबंधित खबरें