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क्या आपको पता है ISRO पर खर्च हर 1 रुपए का समाज को कितना रिटर्न मिला?

ISRO: इसरो ने भारत के अंतरिक्ष अभियान को एक नई ऊंचाई पर पहुंचा दिया है। इस संगठन ने कई ऐसे करिश्मे कर दिखाए हैं कि पूरी दुनिया दांतों तले उंगली दबाने को मजबूर हुई है। अंतरिक्ष में संभावनाएं तलाशने के अलावा भी यह संगठन काफी कुछ कर रहा है।

Author Edited By : News24 हिंदी Updated: Dec 6, 2024 13:07

Space Agency: क्या आपने कभी सोचा है कि भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (ISRO) पर खर्च की जाने वाली राशि का समाज को किस अनुपात में रिटर्न मिलता है? ISRO के अध्यक्ष एस. सोमनाथ (S. Somanath) ने हाल ही में इस सवाल का जवाब दिया। उन्होंने बताया कि इसका पता लगाने के लिए एक अध्ययन किया गया था कि इसरो पर खर्च की गई धनराशि से सोसाइटी को क्या और कितना फायदा हुआ। स्टडी से पता चला कि अंतरिक्ष एजेंसी पर जितना खर्चा हुआ है, उससे ज्यादा अनुपात में समाज को फायदा मिला।

ये है ISRO का लक्ष्य

इसरो चीफ सोमनाथ ने बताया कि स्टडी में यह पाया गया कि संगठन पर खर्च हर 1 रुपए पर समाज को 2.50 रुपए का रिटर्न मिला है। सोमनाथ ने कहा कि इसरो का लक्ष्य अंतरिक्ष क्षेत्र में सक्रिय देशों के साथ वर्चस्व की लड़ाई में शामिल होना नहीं है, बल्कि हम देश की सेवा के लक्ष्य के साथ आगे बढ़ रहे हैं। और इसके लिए इसरो को वह करने की आजादी चाहिए, जो वह करना चाहता है। यह आजादी स्पेस टेक्नोलॉजी में व्यावसायिक अवसरों के लिए एक पारिस्थितिकी तंत्र विकसित करने हासिल की जा सकती है।

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मून मिशन काफी महंगा

उन्होंने मिशन मून के बारे में बात करते हुए कहा कि चंद्रमा से जुड़े अभियान काफी महंगे होते हैं। फंड जुटाने के लिए हम केवल सरकार पर निर्भर नहीं रह सकते। हमें व्यावसायिक अवसर उत्पन्न करने होंगे। अगर हमें इसे जारी रखना है, तो इसकी उपयोगिता साबित करनी होगी। अन्यथा, जब हम कुछ करेंगे, तब सरकार हमसे उसे बंद करने के लिए कह सकती है। उन्होंने यह बातें कर्नाटक सरकार के समाज कल्याण विभाग और विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग द्वारा आयोजित एक कार्यक्रम में कहीं।

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लोगों को सीधा फायदा

इसरो प्रमुख ने कहा कि यह संगठन अंतरिक्ष अन्वेषण के अलावा भी बहुत कुछ करता है। हम सोसाइटी की भलाई के लिए लगातार काम कर रहे हैं। हम कई तरह से लोगों को सीधा लाभ पहुंचाते हैं। मिसाल के तौर पर, मछुआरों को हमारी सलाह को ही ले लीजिये। हमारी सलाह की मदद से उन्हें पता चलता है कि मछली पकड़ने के लिए सबसे उपयुक्त स्थान कहां है। एस. सोमनाथ ने कहा कि हम समुद्री स्थिति का आकलन करने के लिए ‘ओशनसैट’ का इस्तेमाल करते हैं और विभिन्न मापदंडों के आधार पर सलाह जारी करते हैं।

कैसे होती है बचत?

उन्होंने कहा कि हमारी सलाह से मछुआरे न केवल ज्यादा मछली पकड़ पाते हैं, डीजल की कम खपत से पैसा भी बचाते हैं। दरअसल, समुद्र में पछली पकड़ने के लिए मछुआरों को काफी घूमना पड़ता है, ऐसे में डीजल पर दौड़ने वाली नाव का खर्चा काफी हो जाता है। लेकिन ISRO की सलाह से उनके लिए काम आसान हो गया है। वह बताए गए स्थान पर जाते हैं, उन्हें यहां-वहां ज्यादा घूमना नहीं पड़ता और डीजल की खपत अपने आप कम हो जाती है। इसरो चीफ ने और भी कई उदाहरण दिए कि कैसे यह अंतरिक्ष एजेंसी समाज की बेहतरी के लिए काम कर रही है।

First published on: Dec 06, 2024 01:07 PM

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