Bharat Ek Soch: देश के हर हिस्से में सुबह हो या शाम सबसे ज्यादा जिस बात को लेकर चर्चा हो रही है- वो है अयोध्या में राम मंदिर प्राण प्रतिष्ठा कार्यक्रम। इस साल लोकसभा चुनाव के दौरान जिस मुद्दे की सबसे ज्यादा गूंज सुनाई देगी- संभवत: वो होगा अयोध्या में बना राम मंदिर…अयोध्या का विकास मॉडल। ऐसे में अगले कुछ हफ्ते तक मैं भारतीय जनमानस और उसकी सोच में बसे श्रीराम और अयोध्या की बात करेंगे। कहा जाता है कि श्रीराम हमारे देश की प्राणशक्ति हैं…राम से सब हैं, सब में राम हैं। राम आरंभ हैं…राम अंत हैं। राम जीवन हैं…राम जीवन की पूर्णता हैं। यही, वजह है कि इस प्रचंड ठंड में भी 80 की उम्र पार कर चुके…चलने-फिरने में असमर्थ कई बुजुर्गों की आखिरी इच्छा है कि एक बार अयोध्या जी का दर्शन कर लें।
ये हमारे देश के आम आदमी की अयोध्या में आस्था है…तीर्थों के तीर्थ अयोध्या जी को लेकर सोच है। अयोध्या किनारे सरयू की धारा में डुबकी लगाने से इकलोक और परलोक सुधरने वाली सोच है। उस राम के प्रति अटूट आस्था है- जो अयोध्या की मिट्टी पर पैदा हुए…जो हजारों साल से समाज को जोड़ने का रास्ता दिखाते आ रहे हैं। जो मर्यादा पुरुषोत्तम हैं, जिनके जीवन में चमत्कार नहीं, संघर्ष है। श्रीराम रास्ता सबके कल्याण का है। उसी श्रीराम का भव्य-दिव्य मंदिर अयोध्या में बनकर तैयार है। जहां प्राण प्रतिष्ठा की तैयारियां आखिरी दौर में हैं।
क्या वाकई अयोध्या का त्रेतायुग वाला वैभव वापस लौट आया है? (Ultram)
उत्तर में हिमाचल घाटी में रहने वाले लोगों से लेकर दक्षिण में समंदर किनारों पर आखिरी छोर तक..बच्चों से बुजुर्गों तक सभी के मन में एक ही सवाल उठ रहा है कि 22 जनवरी को अयोध्या में श्री रामलला की प्राण प्रतिष्ठा का कार्यक्रम कितना भव्य-दिव्य होगा। इस कार्यक्रम में शामिल होने के लिए कितने लोग अयोध्या पहुंचेंगे? क्या वाकई अयोध्या का त्रेतायुग वाला वैभव वापस लौट आया है? अयोध्या का इतिहास क्या कहता है…ये कितना पुराना है? किसने इसे सबसे पहले बसाया, किसने अयोध्या के वैभव को चरम पर पहुंचाया। श्रीराम के बाद इस शक्तिशाली साम्राज्य का क्या हुआ? इक्ष्वाकु नगरी से अयोध्या तक इस शहर ने बदलाव के कितने रंग देखे? कभी दुनिया की सत्ता केंद्र रही अयोध्या कैसे एक तीर्थ स्थल में सिमट कर रह गई। राजनीति का इतना बड़ा केंद्र होने के बावजूद अयोध्या सदियों तक एक छोटे शहर जैसी क्यों रही? ऐसे ही सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे- अयोध्या अध्याय…कल, आज और कल में।
किसी भी शहर के कई चेहरे होते हैं। कई रंग और उतार-चढ़ाव को हर शहर अपने भीतर समेटे रहता है, लेकिन भारतीय जनमानस के लिए अयोध्या सिर्फ जमीन पर बसा एक भौगोलिक क्षेत्र नहीं, एक शहर या नगर भर नहीं। तीर्थों में तीर्थ भर नहीं। एक जीवित पुरुष की तरह है। जिसमें संवेदना है, सरोकार है..दूसरों को प्रभावित करने की क्षमता है। सरयू किनारे बसी अयोध्या किसी मार्गदर्शक की तरह हज़ारों साल से दुनियाभर के लोगों को बेहतरी का रास्ता दिखाती रही है।
अयोध्या की जड़ें गहरी
एक शासक को कैसा होना चाहिए इसका पाठ पढ़ाती रही है। दुनिया में लोकतंत्रीय शासन प्रणाली का सूत्रपात भी अयोध्या की जमीन से ही हुआ है। प्रजा के लिए राजा के कर्तव्य का दर्शन भी दुनिया को अयोध्या ने सिखाया है। ऐसे में अयोध्या अध्याय…कल, आज और कल की पहली किस्त में आज हम आपको बताएंगे कि अयोध्या की जड़ें कितनी गहरी हैं। श्रीराम की अयोध्या पर दो हजार साल पहले रचे गए वेद और पुराणों में क्या-क्या कहा गया…लिखा गया है। मान्यता के मुताबिक, अयोध्या की स्थापना प्रथम पुरुष मनु ने की..जिनके पुत्र हुए इक्ष्वाकु। सूर्यवंश में कई प्रतापी राजा हुए। इसी वंश के 63वें शासक थे श्रीराम के पिता दशरथ। 1500 ईसा पूर्व से 500 ईसा पूर्व तक वेदों की रचना हुई। अथर्ववेद में अयोध्या को ईश्वर का नगर बताया है और इसकी भव्यता की तुलना स्वर्ग से की गई है। स्कंद पुराण के मुताबिक, अयोध्या भगवान विष्णु के चक्र पर विराजमान हैं।
वेद-पुराण गवाही देते हैं कि अयोध्या का अस्तित्व प्राचीन काल से ही था। वहीं, अगर ग्रह मंजरी जैसे ग्रंथों को आधार माना जाए तो साढ़े चार हजार साल पहले भी अयोध्या वजूद में थी। श्रीराम का जन्म कब हुआ था- इसे लेकर रिसचर्स के बीच बहुत मतभेद है। सबके अपने-अपने दावे हैं, लेकिन श्रीराम अयोध्या में पैदा हुए थे और तब इस नगरी का वैभव चरम पर था। इसे लेकर कोई विवाद नहीं है। वाल्मीकि को श्रीराम का समकालीन माना जाता है। वहीं, इतिहासकारों का एक वर्ग वाल्मीकि रामायण की रचना का समय ईसा से 300 साल पूर्व मानते हैं। मतलब, वाल्मीकि रामायण की रचना 2300 साल पहले हुई..महर्षि वाल्मीकि ने अपनी रामायण में श्रीराम के अश्वमेध यज्ञ का जिक्र किया है। उस दौर में उसके सूर्यवंश की पताका चारों ओर फहरा रही थी…अयोध्या जैसा शक्तिशाली साम्राज्य धरती पर नहीं था। अयोध्या ने पूरी दुनिया को शासन का एक अद्भुत मॉडल दिया। जिसका भी जिक्र करना जरूरी है।
अयोध्या में श्रीराम का शासन मॉडल
अयोध्या एक मर्यादित, अनुशासित, अधिकार और कर्तव्य के आधार पर चलने वाली शासन व्यवस्था थी। ये शासन का एक ऐसा मॉडल था- जिसमें जिसे राजसिंहासन पर बैठना था, वो पिता की आज्ञा का पालन करने के लिए जंगल चला गया। जिसके लिए राजसिंहासन पर बैठने का रास्ता बनाया गया- वो एक संन्यासी की तरह रहते हुए शासन-व्यवस्था को संभालने लगा। ये अयोध्या में श्रीराम का शासन मॉडल था-जिसमें भावनाओं के समंदर में गोता लगाते जनमत को भी सही करने का दर्शन छिपा है।
ये वही अयोध्या है- जिसमें राजा श्रीराम समाज के एक शख्स की बात पर गौर करते हुए अपनी पत्नी को वन में छोड़ देते हैं। अयोध्या की इस मिट्टी में त्याग का दर्शन है। सबको अपने में समाहित करने का विचार है। इसीलिए सबने अयोध्या में अपना कल्याण देखा।
अयोध्या के रास्ते आदर्श शासन प्रणाली स्थापित करने का फॉर्मूला सैकड़ों साल से दुनिया खोजती रही है, लेकिन क्या कभी आपके मन में ये सवाल आया है कि श्रीराम के बैकुंठ धाम जाने के बाद अयोध्या साम्राज्य का क्या हुआ? इसे लेकर कई मान्यताएं हैं। एक मान्यता के मुताबिक, श्रीराम ने अयोध्या साम्राज्य को 8 हिस्सों में बांट दिया। श्रीराम ने अपने पुत्र लव को उत्तर कौशलपुरी का राजा बनाया… कुश को दक्षिण कौशल नगरी का। अपने भाइयों के पुत्रों को भी एक-एक क्षेत्र सौंप दिया।
अयोध्या पर 31 राजाओं ने राज किया
कहा जाता है कि महाभारत के बाद अयोध्या पर 31 राजाओं ने राज किया। उन राजाओं के राजनीतिक और सांस्कृतिक क्रिया कलापों ने भारतीय समाज को नया रास्ता दिखाया। उनकी शासन प्रणाली भले ही वंशानुगत थी, लेकिन नीतियां प्रजा हितकारी यानी लोक-कल्याणकारी थीं। कुछ इतिहासकार ये भी दलील देते हैं कि महाभारत के बाद अयोध्या एक तरह से उजड़ सी गई, लेकिन श्रीराम जन्मभूमि का अस्तित्व बना रहा। जैन धर्म के हिसाब से देखा जाए तो अयोध्या के पहले राजा ऋषभदेव जी हैं।
जिनको आदिनाथ भी कहा जाता है। जैन परंपरा के मुताबिक 24 तीर्थंकरों में से 22 इक्ष्वाकु वंश के थे, जिससे श्रीराम का नाता था। जैन परंपरा के 24 तीर्थंकरों में से पांच की जन्मभूमि अयोध्या रही है। इतिहास के कई घुमावदार पड़ावों को गुजरते हुए अयोध्या आगे बढ़ती रही। तीर्थों का तीर्थ मानी जाने वाली अयोध्या से भारतीय जनमानस का आध्यात्मिक सरोकार ठीक उसी तरह रहा…जैसे किसी नदी का जल प्रवाह से होता है। ईसा पूर्व 322 से 185 तक यानी मौर्य काल तक अयोध्या का महत्व कायम रहा। इतिहासकारों के मुताबिक, गौतम बुद्ध के दौर में जिसे साकेत कहा गया…वो अयोध्या नगरी ही थी।
अयोध्या में कई मंदिरों का जिक्र
7 वीं सदी में चीनी यात्री ह्वेनसांग भारत आया। तब भारत पर प्रतापी राजा हर्षवर्धन का शासन था। ह्वेनसांग करीब 15 साल तक भारत में रहा, अपने अनुभवों को सी-यू-की नाम की किताब में लिखा..जिसे एक प्रामाणिक ऐतिहासिक दस्तावेज के तौर पर देखा जाता है। ह्वेन्सांग ने अपनी किताब में अयोध्या में कई मंदिरों का जिक्र किया है। हर्षवर्धन के बाद छोटे-छोटे इलाकों पर राजपूत राजाओं का प्रभुत्व कायम हुआ..जिसके पूज्य थे- क्षत्रिय कुलश्रेष्ठ श्रीराम। राजाओं के आराध्य श्रीराम आम लोगों में भी परमपूज्य हो गए। मर्यादा पुरुषोत्तम राम ने तेजी से सामाजिक जीवन में जगह बनानी शुरू कर दी। तेरहवीं सदी में रामानंद संप्रदाय ने श्रीराम को सामाजिक क्रांति का सूत्रधार बना दिया। बाद में इसी धारा से कबीर और तुलसीदास निकले। श्रीराम के चरित्र को आगे कर सामाजिक व्यवस्था की कमियों को दुरुस्त करने का काम भी बड़े पैमाने पर शुरू हुआ।
भले ही मध्यकाल में अयोध्या का वैसा वैभव नहीं रहा..जिसका जिक्र महर्षि वाल्मीकि ने अपनी रामायण में किया, लेकिन तीर्थों के तीर्थ के रूप में अयोध्या हमेशा लोग के दिलो-दिमाग पर छाई रही। मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम के चरित्र से अपने लिए बेहतर तत्व निकलते रहे। श्रीराम की अयोध्या साम्राज्य के लिए भाई का खून बहाने की नहीं, त्याग का संदेश देती थी। पारिवारिक रिश्तों को सींचने, आगे बढ़ाने का रास्ता अयोध्या लोगों को सिखाती रही है। मध्यकाल में मर्यादा पुरुषोत्तम श्रीराम ने हिंदुओं के सांस्कृतिक एकीकरण में सीमेंट का रोल अदा किया, अयोध्या इसकी बुनियाद बनी।
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