Bharat Ek Soch: किसी भी मुल्क को आगे बढ़ाने में सबसे बड़ा योगदान वहां की Active Work Force का होता है। किसी भी समाज को आगे बढ़ाने में सबसे बड़ी भूमिका काबिल लोगों की होती है, लेकिन एक दौर ऐसा भी आता है जब काबिलियत के साथ संख्या यानी हाथ की भी जरूरत पड़ती है। आज की तारीख में जापान जैसे देश की सबसे बड़ी समस्या वहां की दिनों-दिन कम होती आबादी है…यूरोप के कई देशों में बुर्जुगों की तादाद बहुत ज्यादा बढ़ चुकी है। दुनिया के नक्शे पर कई ऐसे देश हैं – जो युवा आबादी यानी Active Work Force के लिए तरस रहे हैं।
अब सवाल उठता है कि ये स्थिति आई कैसे? भारत जैसे बड़ी आबादी वाले देश के लिए इसमें किस तरह के संदेश छिपे हैं? क्या हम दो, हमारे दो और छोटा परिवार, सुखी परिवार वाली सोच से आगे बढ़ने का समय आ चुका है? क्या वो दिन भी आएगा– जब भारत में भी जापान और यूरोपीय देशों की तरह लोगों से कहा जाएगा कि बड़ा परिवार, बेहतर परिवार। आज की तारीख में बड़ी आबादी ताकत है या कमजोरी? क्या भारत अपनी विशालकाय युवा आबादी की क्षमताओं का सही इस्तेमाल कर पा रहा है या मुफ्त की योजनाएं निठल्ला और मुफ्तखोर बना रही हैं? ऐसे सभी सवालों के जवाब तलाशने की कोशिश करेंगे…
भारत ‘सोने की चिड़िया’?
क्या आपने कभी खुले मन से इस पर सोचा है? भले ही भारत आबादी के मामले में दुनिया में नंबर वन पर हों…भले ही यहां दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी रहती हो…भले ही युवा आबादी को भारत की सबसे बड़ी ताकत बताया जाता हो… लेकिन, सच ये है कि बड़ी आबादी को बोझ की तरह देखा जाता है। इसकी बड़ी वजह ये है कि भारत में युवाओं को Skilled यानी काबिल बनाने पर उतना जोर नहीं रहा। यही, वजह है कि भारत को अपनी विशाल आबादी का Demographic Dividend उतना नहीं मिल रहा, जितना मिलना चाहिए था।
भारत की Active Work Force का सिर्फ 5 फीसदी ही किसी Formal Skilled Training से गुजरी है। हालांकि, इसके पीछे एक दलील ये भी जाती है कि भारत की बड़ी Workforce असंगठित क्षेत्र से जुड़ी है…जहां परिवार से हुनर ट्रांसफर होता रहा या कामकाज के दौरान ही ट्रेनिंग मिलती है… India Skill Report 2021 के मुताबिक 47 फीसदी बीटेक में रोजगार लायक स्किल नहीं थीं।
यही हाल एमबीए डिग्री होल्डर का भी रहा। आईटीआई से डिग्री लेकर जॉब मार्केट में घूमने वाले 75 फीसदी युवाओं में भी स्किल की भारी कमी देखी गई। एक अनुमान के मुताबिक, हर साल भारत के लेबर मार्केट में एंट्री लेने वाले हर तीन में से दो युवा बेरोजगार है।
इस समस्या को दो तरह से देखा जा सकता है – पहला, Quality education की कमी। दूसरा, Economy बढ़ने के साथ Industry में आए बदलाव। ऐसे में Economy में आए transformation के हिसाब से देश की विशालकाय युवा आबादी को Skilled और Reskilled करने का बड़ी चुनौती है।
खेती से आगे की सोच
पूर्व राष्ट्रपति डॉक्टर एपीजे अब्दुल कलाम अक्सर कहा करते थे कि अगर ग्रामीण भारत खेती से आगे सोचे तो बहुत हद तक बेरोजगारी की समस्या से निपटा जा सकता है। वो दलील देते कि स्थानीय शिल्पकारी, ग्रामीण पर्यटन, ज्ञान आधारित उत्पाद और सेवा को बढ़ावा देने जैसे रास्ते आजमा कर युवाओं के लिए रोजगार पैदा किया जा सकता है।
डॉक्टर कलाम के आइडिया ऑफ इंडिया को दो तरह से देखा जा सकता है- एक युवा शक्ति के लिए स्थानीय स्तर पर रोजगार का मौका पैदा कर उनकी क्षमताओं का पूरा इस्तेमाल । दूसरा, विकास का विकेंद्रीकरण यानी रोजगार के मौके सिर्फ शहरों तक सीमित न रहकर देश के आखिरी गांव और आखिरी व्यक्ति तक पहुंचे।
तीसरा, रोजगार के लिए परिवार से विस्थापित और दूर होने से रोकना। डॉक्टर कलाम की सोच को महात्मा गांधी के ग्राम स्वराज की सोच के करीब भी देखा जा सकता है। आज जिस युवा आबादी पर भारत गर्व कर रहा है- वो हमेशा युवा तो रहेगा नहीं । कभी बुजुर्ग भी होगा । दरअसल, हमारे देश में विकास के साथ पढ़े- लिखे और समझदार लोगों ने खुद आबादी को कंट्रोल करना शुरू किया… हम दो, हमारे दो तो कल की बात हो चुकी है।
TFR में लगातार गिरावट जारी
ज्यादातर अपर मिडिल क्लास परिवार अब हम दो, हमारे एक में ही खुश है। इससे Total Fertility Rate यानी TFR में लगातार गिरावट जारी है। आजादी के समय TFR यानी प्रजनन दर 5.9 थी…जो अब गिरकर 2 पर आ चुकी है। संयुक्त राष्ट्र का पॉपुलेशन डिजिवन 2.1 प्रजनन दर को बिलो रिप्लेसमेंट लेवल मानता है। मतलब, भारत में जिस रफ्तार से लोग मर रहे हैं… उस रफ्तार से पैदा नहीं हो रहे हैं।
United Nations Population Fund की इंडिया एजिंग रिपोर्ट 2023 में अनुमान लगाया गया है कि आज का युवा भारत आने वाले दशकों में तेजी से बूढ़ा होता जाएगा । एक जुलाई 2022 तक देश में 60 साल से अधिक उम्र वाले लोगों की तादाद 10.5% है, जिसके 2036 तक बढ़कर 15 फीसदी और 2050 तक 20.8% तक पहुंचने की भविष्यवाणी की गयी है।
मतलब, भारत जब आजादी की 100वीं सालगिरह की ओर बढ़ रहा होगा … तब देश में हर पांचवां व्यक्ति बुजुर्ग होगा। ऐसे में मौजूदा समय में युवा आबादी के कम होने से जिस तरह की समस्याओं से यूरोपीय देश जूझ रहे हैं…कल की तारीख में वैसी ही स्थिति भारत के सामने भी आनी तय है। लेकिन, एक दूसरी बड़ी समस्या की ओर भी ध्यान देना बहुत जरूरी है…पिछले कुछ वर्षों में सरकारों ने वोट के लिए मुफ्त की योजनाओं की बाढ़ ला दी है। इसमें किसी को मुफ्त अनाज मिल रहा है…किसी को कैश मदद मिल रही है…किसी को मुफ्त में स्मार्टफोन मिल रहा है। ऐसे में सवाल उठता है कि जब घर बैठे खाने को अनाज, जेब खर्च के लिए रुपये और मनोरंजन के लिए स्मार्टफोन या टैबलेट मिल रहा है…तो युवाओं का एक बड़ा फिर वर्ग काम क्यों करना चाहेगा? कहीं उन्हें मुफ्तखोरी में ही तो मजा नहीं आने लगा है?
राजनेताओं को पूरी ईमानदारी से सोचना होगा
आजादी की 100वीं वर्षगांठ तक भारत को वाकई और सशक्त, महाशक्ति और विकसित राष्ट्र बनाने के लिए हमारे राजनेताओं को पूरी ईमानदारी से तीन बातों की ओर सोचना होगा। पहली, देश की युवा आबादी के ज्यादा से ज्यादा Skilled कैसे बनाया जाए। दूसरी, युवाओं को मुफ्तखोर बनाने की जगह आत्मनिर्भर बनाते हुए किस तरह से देश की तरक्की में हिस्सेदार बनाया जाए और तीसरी … हम दो, हमारे एक वाली स्थिति न आए … इस तरह के रास्ते भी निकाले जाने चाहिए जिसमें पढ़ी-लिखी और कामकाजी महिलाओं पर ही सिर्फ बच्चों को पालन-पोषण की जिम्मेदारी न हो…इसमें पुरुषों की भी बराबर की हिस्सेदारी हो।