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कहीं महिलाओं को हर महीने कैश, कहीं बसों में मुफ्त सफर! ‘आधी आबादी’ को खुश करने के लिए आजमाए जा रहे कितने दांव?

Bharat Ek Soch: भारतीय लोकतंत्र में महिलाएं कैसे मजबूत वोट बैंक हैं? इसका पता इसी बात से चलता है कि लोकसभा चुनाव से पहले कोई सरकार महिलाओं को हर महीने कैश, देने का ऐलान कर रही है तो किसी ने बसों में मुफ्त सफर की सुविधा दी है। इसी पर आज का हमारा स्पेशल कार्यक्रम 'महिला वोट की माया'

Edited By : Anurradha Prasad | Updated: Mar 10, 2024 21:10
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Bharat Ek Soch, Anurradha Prasad
Anurradha Prasad

Bharat Ek Soch: 2019 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को 224 सीटों पर 50 फीसदी से अधिक वोट मिले। इस बार बीजेपी का टारगेट 370 प्लस का है। ऐसे में बीजेपी रणनीतिकारों की कोशिश होगी 300 प्लस सीटों पर 50 फीसदी से अधिक वोट हासिल करना। बीजेपी के टॉप लीडर्स की सोच है कि अगर आधी आबादी का पूरा साथ मिला तो जीत के सभी पुराने रिकॉर्ड ध्वस्त होना बड़ी बात नहीं है। साल 2019 के आम चुनाव में बीजेपी को 23 करोड़ से थोड़ा कम वोट मिले। इस बार महिला वोटरों की तादाद ही 47 करोड़ से अधिक है। मतलब, देश में सत्ता की असली चाबी महिला वोटरों के हाथ में है। वो किसी को भी सत्ता में बनाए रख सकती हैं और किसी को भी सत्ता से बेदखल कर सकती हैं। यही, वजह है कि सभी सियासी पार्टियां अपने-अपने तरीके से महिला वोटरों को साधने में लगी हुई हैं।

सियासी पार्टियों को अपना कल्याण दिख रहा 

दिल्ली के बजट में अरविंद केजरीवाल की सरकार ने 18 साल से ऊपर की महिलाओं को हर महीने एक हजार रुपये देने वाली स्कीम लॉन्च करने का ऐलान किया है। इस योजना का फायदा दिल्ली की करीब 50 लाख महिलाओं को मिलने का अनुमान लगाया जा रहा है। इसी तरह हिमाचल की सुक्खू सरकार ने भी प्रदेश की 18 साल से ऊपर की महिलाओं को 15 सौ रुपये महीना देने का फैसला लिया है। खुद प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी कहते हैं कि विकसित भारत का संकल्प चार अमृत स्तंभों पर टिका है। जिसमें से एक नारी शक्ति है। ऐसे में सबसे पहले ये समझते हैं कि महिला वोटरों को खुश करने में देश की सभी बड़ी सियासी पार्टियों को अपना कल्याण क्यों दिख रहा है?

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टेलीविजन ने बदली सोच

अगर किसी राजनीतिक दल को महिला वोटरों में से आधा का भी साथ मिल जाए तो सत्ता की राह आसान हो जाएगी। महिलाएं तेजी से देश की राजनीतिक धारा बदल रही हैं और खुद की जिंदगी भी पर मिडिल क्लास की महिलाओं और बेटियों की जिंदगी में सही मायनों में बदलाव की शुरुआत कब और कैसे हुई? उनकी सोच को नया आकार मिलना कब से शुरू हुआ। क्या आपने कभी इस बारे में सोचा है ? एक पत्रकार के रूप में जब भी मैं इस सवाल पर सोचती हूं, लोअर मिडिल क्लास परिवार से ऊंचे ख्वाब लिए दिल्ली-मुंबई जैसे शहरों में संघर्ष करने वाली लड़कियों से पूछती हूं तो जवाब आता है टेलीविजन ने उनके मम्मी-पापा की सोच में बदलाव किया।

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वोट की ताकत का इस्तेमाल

टीवी चैनलों पर प्रसारित न्यूज़ और दूसरे कार्यक्रमों की वजह से उनके मम्मी-पापा ने समाज की जकड़न तोड़ते हुए उन्हें बाहर भेज कर पढ़ाया-लिखाया और आंखों में पल रहे सपनों को पूरा करने लिए आजादी दी। ये Indian Democracy को भीतर एक नया क्लास है। महिलाओं का क्लास, जो स्कूल-कॉलेज गया है, जो रोजमर्रा की चुनौतियों और बेहतर कल की उम्मीद में देश, काल और राजनीति पर खुलकर चर्चा करता है। जो बहुत सोच-समझकर वोट की ताकत का इस्तेमाल करता है। वो भी पूरी तरह से स्वतंत्र होकर, बिना किसी पारिवारिक दबाव या प्रभाव के।

मजबूत और टिकाऊ वोट बैंक 

महिला वोटरों को इस बात कोई फर्क नहीं पड़ता है कि उनके परिवार के दूसरे सदस्यों की राजनीतिक पसंद या नापसंद क्या है? वो किस आधार पर अपने जनप्रतिनिधि का चुनाव करते हैं। हाल में हुए मध्य प्रदेश विधानसभा चुनाव में बीजेपी की प्रचंड जीत की वजह शिवराज सिंह चौहान की लाड़ली बहना योजना को माना गया तो छत्तीसगढ़ और राजस्थान में भी कांग्रेस ने महिला वोटरों को साधने की बहुत कोशिश की लेकिन, सत्ता से चूक गई। पिछले कुछ वर्षों में देश की ज्यादातर राजनीतिक दल महिलाओं को बहुत मजबूत और टिकाऊ वोट बैंक के तौर पर देख रहे हैं।

वोट की शक्ति का इस्तेमाल

प्रधानमंत्री मोदी अपनी सभाओं में अक्सर बताते हैं कि सामान्य महिला की सुविधा, सुरक्षा और सम्मान के लिए उनकी सरकार ने क्या-क्या किया है? हर घर शौचालय से उज्ज्वला योजना तक, बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ से सुकन्या समृद्धि तक, तीन तलाक के खिलाफ कानून लाने जैसी बातें गिनाई और बताई जा रही हैं। महिलाओं को संसद और विधानसभाओं में एक-तिहाई प्रतिनिधित्व देने के लिए नारी शक्ति वंदन अधिनियम भी पास हो चुका है। पंचायत में महिलाओं को प्रतिनिधित्व देने का रास्ता पहले से खुला हुआ है। लेकिन, देश की सामान्य महिला के भीतर राजनीतिक चेतना बढ़ी, जिसमें वो अपने नफा-नुकसान के हिसाब से वोट की शक्ति का इस्तेमाल कर रही है।

कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया

यही वजह है कि उत्तर से दक्षिण तक महिलाओं को एक बहुत मजबूत वोट बैंक के रूप में देखने की राजनीतिक संस्कृति आगे बढ़ी है। अब थोड़ा फ्लैशबैक में चलते हैं। करीब दो साल पहले यूपी विधानसभा चुनाव के दौरान कांग्रेस ने अपनी रणनीति में बड़ा बदलाव किया और महिला वोटरों पर खासतौर से फोकस किया। प्रियंका गांधी की इस रणनीति के तहत महिलाओं को 40 फीसदी टिकट दिए गए। पंजाब विधानसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने महिलाओं पर खास तौर से फोकस किया। भले ही यूपी और पंजाब चुनाव में कांग्रेस को कामयाबी नहीं मिली। लेकिन, दूसरी पार्टियों को भी कांग्रेस ने महिलाओं के मुद्दों पर खास तवज्जो देने के लिए मजबूर कर दिया ।

महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत तेजी से बढ़ा

महिलाएं बहुत सोच-समझकर अपनी वोट की ताकत का इस्तेमाल कर रही हैं। इस बात से इनकार नहीं किया जा सकता है कि महिलाओं के वोट का बड़ा हिस्सा उस राजनीतिक पार्टी के खाते में ज्यादा जा रहा है, जो उनकी रोजमर्रा की मुश्किलों को कम करने में मददगार की भूमिका में है। Centre for the Study of Developing Societies यानी CSDS की स्टडी के मुताबिक, 2019 में लोकसभा चुनाव के दौरान यूपी में बीजेपी को 49 फीसदी वोट मिले। जिसमें से महिला वोटरों की तादाद 51 फीसदी थी। पिछले कुछ वर्षों में चुनाव को दौरान महिलाओं का वोटिंग प्रतिशत तेजी से बढ़ा है, जो अब पुरुषों के बराबर आ चुका है।

लोकसभा में 78 महिलाएं

साल 1962 में पुरुष वोटरों का Turnout 63.3% था तो महिलाओं का 46.6 फीसदी। मतलब, पुरुष और महिला वोटरों के बीच गैप 16.7 फीसदी का था। ये अंतर 1991 में घटकर 10.2 फीसदी पर आ गया और 2019 में ये अंतर 0.4 % पर आ चुका है। लेकिन, ये भी एक कड़वा सच है कि आजादी के अमृत काल में भी संसद में महिलाओं का प्रतिधित्व बहुत कम है। 542 सदस्यों वाली लोकसभा में 78 महिलाएं हैं। भले ही संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को एक तिहाई प्रतिनिधित्व देने के लिए बना नारी शक्ति वंदन अधिनियम कानून बन चुका है। जिसके 2029 में लागू होने की उम्मीद है। लेकिन, राजनीतिक दल महिलाओं को टिकट देने में अभी भी हिचक रहे हैं ।

फॉरवर्ड पोस्ट से सरहद की निगेहबानी

भारतीय लोकतंत्र और यहां की चुनावी राजनीति उस दौर से बहुत आगे निकल चुकी है  जिसमें महिलाओं की पहचान किसी की पत्नी किसी की बेटी किसी की बहू किसी की मां के रूप में होती थी। महिलाओं का वोट उसी को जाता है, जहां परिवार के पुरुष चाहते थे। 1980-90 के दशक में अक्सर कहा जाता था कि अगर बेटी पढ़ लेगी तो भी क्या होगा। घर ही तो संभालना है। लेकिन, उन्हीं पढ़ी-लिखी महिलाओं ने अपनी बेटियों को इस काबिल बनाया कि पुरुषों के वर्चस्व वाले हर क्षेत्र में महिलाओं की दमदार मौजूदगी दिख रही है। चाहे फाइटर जेट उड़ाना हो या फॉरवर्ड पोस्ट से सरहद की निगेहबानी। चाहे मिसाइल बनाना हो या बिजनेस बढ़ाना महिलाएं कहीं पीछे नहीं हैं। यही महिलाएं और बेटियां अब एक मुखर और बड़ा वोट बैंक बन गई हैं जो स्वतंत्र रूप से अपनी राजनीतिक पसंद और नापसंद का इजहार EVM का बटन दबाकर कर रही हैं।  ऐसे में राजनीतिक दलों को पार्टियों महिला वोटरों में बड़ी संभावना दिख रही है। संभवत:, इसलिए महिला वोटरों को लुभाने के लिए हर महीने मुफ्त राशन से कैश मदद तक मुफ्त दवाई से बच्चों के मुफ्त पढ़ाई तक जैसी योजनाएं तूफानी रफ्तार से चलाई जा रही हैं। ऐसे में चुनाव के दौरान महिला वोटरों को लुभाने के लिए नए-नए वादे सुनाई दे सकते हैं ।

ये भी पढ़ें: लोकतंत्र के लिए ‘डीपफेक’ किस तरह बना बड़ा खतरा, चुनावी प्रक्रिया को कैसे करने लगा प्रभावित?

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Edited By

Anurradha Prasad

First published on: Mar 10, 2024 09:02 PM

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