Sankashti Chaturthi 2022: मार्गशीर्ष माह में आने वाली कृष्ण पक्ष की चतुर्थी को संकष्टी चतुर्थी कहा जाता है। इस दिन का विशेष महत्व है। यह दिन विशेष रूप से गजानन गणेश को समर्पित किया गया है। इस दिन भगवान विनायक की महागणपति रूप में पूजा की जाती है। पौराणिक मान्यताओं के अनुसार इस दिन भगवान श्रीगणेश की पूजा करने से व्यक्ति की हर इच्छा पूरी होती है। आप भी इस दिन गणपति की पूजा कर अपनी मनोकामनाओं के पूर्ण होने की प्रार्थना कर सकते हैं।
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कब है संकष्टी चतुर्थी व्रत (Sankashti Chaturthi Vrat 2022)
संकष्टी चतुर्थी तिथि : 12 नवंबर, 2022 (शनिवार)
चतुर्थी तिथि का आरंभ: 11 नवंबर, 2022 (शुक्रवार) को सायं 08:17 बजे
चतुर्थी तिथि का समापन: 12 नवंबर, 2022 (शनिवार) को रात 10:25 बजे
संकष्टी दिवस पर चंद्रोदय: 12 नवंबर, 2022 (शनिवार) को रात्रि 08:21 बजे
संकष्टी चतुर्थी का महत्व
संकष्टी चतुर्ती का दिन समस्त देवताओं में प्रथम पूज्य भगवान गणेश को समर्पित है। हिंदू धर्म में किसी भी शुभ कार्य से पूर्व उनकी आराधना की जाती है। जो भी भक्त संकष्टी चतुर्थी के दिन व्रत रखते हैं और महागणपति एवं शिव की पूजा करते हैं, उनके कष्ट दूर होते हैं। उनके जीवन में आने वाले समस्त कष्टों को स्वयं गणेश ही दूर कर देते हैं।
विद्वान ज्योतिषियों के अनुसार इस दिन व्रत करने से नि:संतान दंपतियों को संतान सुख मिलता है। यदि कोई आर्थिक संकटों में घिरा हुआ हो तो इस दिन गणपति की पूजा एवं हवन करने से भी धनवान बन सकता है। यदि जन्मकुंडली में नवग्रहों में से कोई भी एक या अधिक ग्रह बुरा प्रभाव दे रहे हैं तो गणपति के आशीर्वाद से उनका बुरा प्रभाव दूर होता है और व्यक्ति को सुख की प्राप्ति होती है।
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ऐसे करें संकष्टी चतुर्थी पर गणपति की पूजा (Sankashti Chaturthi Puja Vidhi)
इस दिन सुबह जल्दी उठकर स्नान कर साफ, धुले हुए श्वेत या पीले वस्त्र पहनें। घर के पूजा कक्ष अथवा पास के किसी मंदिर में जाकर गणेशजी को पंचामृत (दूध, दही, चीनी, शहर और घी) से अभिषेक कर सिंदूर मिश्रित चोला चढ़ाएं। उन्हें चंदन का तिलक लगाएं, पीले पुष्प अर्पित करें। उनके आगे दीपक एवं धूप जलाएं एवं उनकी प्रिय दूर्वा (हरी घास) अर्पित करें। गणपति की आरती कर उन्हें प्रसाद के रूप में मोदक अर्पित करें। पूजा पूरी होने के बाद बाद गणपति गायत्री मंत्र ‘ॐ एकदन्ताय विद्महे वक्रतुंडाय धीमहि तन्नो बुदि्ध प्रचोदयात’ अथवा ‘ॐ गं गणपतये नम:’ का 108 बार जप करें। शाम को गणपति के प्रसाद को ग्रहण कर अपना व्रत खोलें तथा एक समय भोजन करें।
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