Shabri Katha in Ramayan Hindi: शबरी और श्रीराम से जुड़ी कथा का वर्णन रामायण में भी किया गया है। शबरी को लेकर पौराणिक कथा है कि श्रीराम ने शबरी के हाथों जूठे बेर खाए थे। आज भी लोगों में मन में यह सवाल उठता है कि शबरी माता ने प्रभु श्रीराम को आखिर जूठे बेर क्यों खिलाए थे। इसके पीछे वजह क्या थी। रामायण से जुड़ी इस रोचक और ज्ञानवर्धक कथा के बारे में जानिए।
जंगल क्यों चली गई थीं शबरी माता
एक पौराणिक कथा के अनुसार, शबरी का विवाह शराबी के साथ हो गया। यही वजह थी कि शबरी घर छोड़कर जंगल में चली गईं। वहां माता शबरी प्रेम से रहने लगीं और पशु-पक्षियों की सेवा करने लगीं। साथ ही रास्ते से आते-जाते लोगों को बेर खिलातीं। इस तरह उसका जीवन चल रहा था। शबरी के जंगल में निवास करने के पीछे एक वजह यह भी बताई जाती है कि वह जिस समाज से आती थीं, उसमें पशु-पक्षियों की बलि दी जाती थी। ऐसे में इन्होंने पशु-पक्षियों की सेवा का निर्णय किया।
ऋषियों की करती थी सेवा
दिनचर्या के तौर पर शबरी जंगल में ऋषि मुनियों की सेवा करने लगी। वह रोज सुबह उठकर ऋषियों के आश्रम (झोपड़ीनुमा) को बुहारती। साथ ही ऋषि-मुनियों को हवन के लिए लकड़ी लाकर देती। इस बात को लेकर ऋषि-मुनि भी सोच में पड़ गए कि आखिर जंगल में उनके काम खुद ही क्यों हो रहे हैं। कुछ समय के बाद एक दिन ऋषि ने शबरी को देख लिया। शबरी के बारे में जानकर ऋषियों ने कहा कि वो भील जाति से आती हैं, ऐसे में ऋिषियों की सेवा का अधिकार उन्हें नहीं है। फिर एक ऋषि ने शबरी माता को श्राप दे दिया कि श्रीराम जब उनके हाथों बेर खाएंगे तो उन्हें श्राप से मुक्ति मिल जाएगी। इसके बाद ऋषि ने शबरी माता से उनके बारे में पूछा।
ऋषि के पूछने पर माता शबरी ने बताया कि उनका संबंध भील जाति से है। इस बात पर ऋषि-मुनि क्रोधित हो गए और शबरी को भला-बुरा कहने लगे। कहा जाता है कि ऋषि-मुनियों के श्राप से उद्धार के लिए मतंग ऋषि ने शबरी को बताया कि श्रीराम के हाथों उनका उद्धार होगा।
भरत भू की समरस सांस्कृतिक विशिष्टता ने व अपने पराए का भेद ना करने वाली भक्ति ने, माता शबरी को अमर बना दिया। श्रीराम की बात होगी, तो चर्चा शबरी की भी होगी।
राम शबरी के भी हैं, राम निषाद के भी हैं, राम केवट के भी हैं, राम सबके है…
जय श्रीराम!! #SabkeRam… pic.twitter.com/P9WmEH21aU
— Vishva Hindu Parishad -VHP (@VHPDigital) January 16, 2024
शबरी ने क्यों खिलाए श्रीराम को जूठे बेर
शबरी की श्रीराम के प्रति गहरी आस्था थी। वे अपने प्रभु श्रीराम को बहुत मानती थीं। उन्होंने, एक-एक बेर को पहले चखा। फिर उसमें से जो बेर मीठे थे उसको श्रीराम के लिए रखा। शबरी ने जान बूझकर श्रीराम को झूठे बेर नहीं खिलाए। बल्कि, श्रीराम के प्रति उनका अटूट समर्पण था। जब श्रीराम, कुटिया में पहुंचकर शबरी के बेर खाए तो उनका उद्धार हो गया। साथ ही ऋषि के श्राप से भी मुक्ति मिल गई।
डिस्क्लेमर: यहां दी गई जानकारी धार्मिक ग्रंथों पर आधारित है तथा केवल सूचना के लिए दी जा रही है।News24 इसकी पुष्टि नहीं करता है। किसी भी उपाय को करने से पहले संबंधित विषय के एक्सपर्ट से सलाह अवश्य लें।