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वो मंद‍िर जहां अयोध्‍या से चोरी करके लाई गई भगवान राम की सोने की मूर्ति, हर साल लाखों करते हैं दर्शन

Raghunathji Mandir Kullu History in Hindi : ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति पाने के लिए कुल्लू के राजा जगत सिंह ने एक महात्मा की सलाह पर इस मंदिर का निर्माण कराया था।

Edited By : News24 हिंदी | Updated: Jan 19, 2024 14:14
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Raghunathji Mandir Kullu
रघुनाथ जी मंदिर कुल्लू

Raghunathji Mandir Kullu History : हिमाचल प्रदेश को देवताओं की भूमि कहा जाता है, जोकि नि:संदेह इस धरा पर स्वर्ग से कम नहीं है। क्योंकि यह पूरी तरह से प्राकृतिक सौन्दर्य से भरा हुआ स्थान है। इस क्षेत्र का समृद्ध और पौराणिक अतीत है।

कई पर्यटक स्थल के साथ ही यहां प्रसिद्ध और आकर्षक तीर्थस्थल के साथ-साथ अनेक मंदिर भी हैं। जोकि दुनिया भर के श्रद्धालुओं और तीर्थयात्रियों और पर्यटकों की आस्था और श्रद्धा के साथ ही उनके आकर्षण का केंद्र हैं। ऐसे ही अनेक मंदिरों की श्रृंखला में कुल्लू का रघुनाथ मंदिर भी शामिल है।

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यहां स्थित हैं रघुनाथ जी का मंदिर

श्रीरघुनाथ जी का प्राचीन मंदिर सुलतान पुर में राजमहल के साथ में स्थित है। शिल्पकला की दृष्टि से यह मंदिर यहां के अन्य मंदिरों के समान नहीं है, लेकिन इस मंदिर का कुल्लू के इतिहास और धर्म के क्षेत्र में विशेष महत्व है। हिमाचल प्रदेश के कुल्लू के दशहरे का आगाज भी भगवान रघुनाथ जी की रथयात्रा के बाद ही होता है। कुल्लू में दशहरे का प्रोग्राम सात दिनों तक चलता है।

राजा जगत सिंह ने बनवाया था

इस मंदिर के इतिहास के बारे में कहा जाता है कि विक्रम संवत 1637 से 1662 तक राजा जगत सिंह का शासन था। उन्होंने ही अपने शासन काल में इस मंदिर का निर्माण कराया था। वहीं इस मंदिर के निर्माण और यहां प्रतिष्ठित रघुनाथ जी की प्रतिमा के बारे में एक अत्यंत रोचक कथा जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि राजा जगत सिंह के शासन काल में कुल्लू के टिपरी गांव में एक ब्राह्मण दुर्गादत्त अपने परिवार के संग रहता था।

यह ब्राह्मण बहुत प्रसिद्ध था और इस ब्राह्मण के पास लोग आते जाते रहते थे। वहीं राजा के कुछ दरबारी इस ब्राह्मण से ईष्या रखते थे। एक दिन राजा कहीं यात्रा पर जा रहे थे। तो ब्राह्मण से ईष्या रखने वाले दरबारियों ने उसके खिलाफ राजा के कान भर दिए और ब्राह्मण के पास एक विशाल खजाना होने की शिकायत की।

इसके बाद राजा ने खजाना जब्त करने के लिए ब्राह्मण के घर दो सिपाहियों को भेज दिया। इसके बाद ब्राह्मण ने खजाने के बारे में सहज भाव से अनभिज्ञता जताई और प्रशासन को गलतफहमी होने की आशंका व्यक्ति की। परंतु राजा के सिपाहियों ने उसकी बात नहीं सुनीं। इसके बाद सिपाहियों के दबाव में आकर ब्राह्मण ने उनसे कहा कि राजा जब तीर्थयात्रा से लौटकर वापस आ जाएंगे तो मैं उनके सामने स्वयं मोतियों का खजाना उन्हें भेंट कर दूंगा।

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ब्राह्मण ने किया आत्मदाह

तीर्थयात्रा से लौटते ही राजा ब्राह्मण के पास पहुंचा तो ब्राह्मण ने सहपरिवार आत्मदाह करने के उद्देश्य से अपने घर को आग लगा दी। उसने आग में जलते अपने शरीर के मांस के लोथड़े को राजा की ओर फेंकते हुए कहा कि राजन ये मोती ले लो और सपरिवार अपना प्राणांत कर लिया। यह देखकर राजा बहुत दुखी हुआ, उसके सामने हमेशा ही यह दृश्य आने लगा। राजा के आंखों की नींद और दिल का सुकून सब छूमंतर हो गया।

भोजन-पानी में खून और कीड़े

एक दिन राजा भोजन कर रहा था तो उसे भोजन में कीड़े और पानी में खून दिखाई देने लगा। यहां तक कि उसकी अंगूठी में भी कीड़ा लग गया। वहीं राजा जगत सिंह को कई प्रकार के रोगों ने घेर लिया। राजा ने रोग मुक्ति के कई उपाय किए, लेकिन उसे कोई लाभ ना हुआ। इसके बाद राजा झीड़ी नामक स्थान में रहने वाले एक महात्मा के पास पहुंचा। महात्मा ने राजा से कहा कि आप ब्राह्मण हत्या के दोषी हैं।

महात्मा ने बताया उपाय

इसके बाद महात्मा ने राजा को ब्रह्म हत्या के दोष से मुक्ति के लिए अयोध्या से भगवान राम की मूर्ति लाने, मंदिर बनवाने और उनकी आराधना करने को कहा। राजा के लिए रामभक्त बनना आसान था, लेकिन अयोध्या से राम की प्रतिमा लाना संभव न था। इसके बाद राजा ने महात्मा से सहायता मांगी, राजा के अनुरोध पर महात्मा ने अपने शिष्य दामोदर को प्रतिमा लाने के लिए अयोध्या भेज दिया।

इन प्रतिमाओं को देखकर महात्मा और राजा दोनों ही बहुत खुश हुए। इन प्रतिमाओं को विक्रम संवत 1653 में मणिकर्ण मंदिर में प्रतिष्ठित किया गया। वहीं विक्रम संवत 1660 में कुल्लू राजमहल के पास स्थित इस मंदिर का निर्माण कार्य संपन्न हुआ। तब श्रीराम और जानकी जी की प्रतिमाओं को मणिकर्ण से लाकर विधिपूर्वक कुल्लू के रघुनाथ मंदिर में प्रतिष्ठित किया गया। राजा जगत सिंह ने अपना सारा राजपाठ भगवान रघुनाथ जी के नाम कर दिया। तथा स्वयं उनके छड़िवदार बन गए।

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देवी-देवताओं ने माना इष्ट

कुल्लू के 365 देवी-देवताओं ने भी श्री रघुनाथ जी को अपना ईष्ट मान लिया। कहा जाता है कि इसके बाद राजा जगत सिंह को कुष्ठ रोग से मुक्ति मिल गई। कहा जाता है कि महात्मा का शिष्य दामोदर इन प्रतिमाओं को अयोध्या से चुरा कर लाया था। आज भी इस रधुनाथ जी के मंदिर में लाखों भक्त दर्शनों के लिए आते हैं।

First published on: Jan 18, 2024 02:18 PM

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